Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 24
    ऋषिः - भुवनपुत्रो विश्वकर्मा ऋषिः देवता - विश्वकर्मा देवता छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    3

    विश्व॑कर्मन् ह॒विषा॒ वर्द्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम्। तस्मै॒ विशः॒ सम॑नमन्त पू॒र्वीर॒यमु॒ग्रो वि॒हव्यो॒ यथास॑त्॥२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑कर्म॒न्निति॒ विश्व॑ऽकर्मन्। ह॒विषा॑। वर्द्ध॑नेन। त्रा॒तार॑म्। इन्द्र॑म्। अ॒कृ॒णोः॒। अ॒व॒ध्यम्। तस्मै॑। विशः॑। सम्। अ॒न॒म॒न्त॒। पू॒र्वीः। अ॒यम्। उ॒ग्रः। वि॒हव्य॒ इति॑ वि॒ऽहव्यः॑। यथा॑। अस॑त् ॥२४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वकर्मन्हविषा वर्धनेन त्रातारमिन्द्रमकृणोरवध्यम् । तस्मै विशः समनमन्त पूर्वीरयमुग्रो विहव्यो यथासत् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वकर्मन्निति विश्वऽकर्मन्। हविषा। वर्द्धनेन। त्रातारम्। इन्द्रम्। अकृणोः। अवध्यम्। तस्मै। विशः। सम्। अनमन्त। पूर्वीः। अयम्। उग्रः। विहव्य इति विऽहव्यः। यथा। असत्॥२४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    Translation -
    O Universa! Architect, with strengthening libation you have made the resplendent one (indra) protector of people and inviolable. The people from the earliest bow to him so tha the may become strong and worthy of adoration. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top