Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 89
    ऋषिः - कण्व ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    1

    प्रैतु॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॒ प्र दे॒व्येतु सू॒नृता॑।अच्छा॑ वी॒रं नर्य्यं॑ प॒ङ्क्तिरा॑धसं दे॒वा यज्ञं॒ न॑यन्तु नः॥८९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। ए॒तु॒। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। प्र। दे॒वी। ए॒तु॒। सू॒नृता॑ ॥ अच्छ॑। वी॒रम्। नर्य्य॑म्। प॒ङ्क्तिरा॑धस॒मिति॑ प॒ङ्क्तिऽरा॑धसम्। दे॒वाः। य॒ज्ञम्। न॒य॒न्तु॒। नः॒ ॥८९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रैतु ब्रह्मणस्पतिः प्र देव्येतु सूनृता । अच्छा वीरन्नर्यम्पङ्क्तिराधसन्देवा यज्ञन्नयन्तु नः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। एतु। ब्रह्मणः। पतिः। प्र। देवी। एतु। सूनृता॥ अच्छ। वीरम्। नर्य्यम्। पङ्क्तिराधसमिति पङ्क्तिऽराधसम्। देवाः। यज्ञम्। नयन्तु। नः॥८९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 89
    Acknowledgment

    Translation -
    May the high Preceptor come to us. May brilliant divine virtues come to us. May Nature's bounties lead us to glory and drive away every adversary, and help us in the cause, beneficial to men, and measures leading to respectable prosperity. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top