Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 33/ मन्त्र 42
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - सूर्यो देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    1

    अ॒द्या दे॑वा॒ऽउदि॑ता॒ सूर्य्य॑स्य॒ निरꣳह॑सः पिपृ॒ता निर॑व॒द्यात्।तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑तिः॒ सिन्धुः॑ पृथि॒वीऽउ॒त द्यौः॥४२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒द्य। दे॒वाः॒। उदि॒तेत्युत्ऽइ॑ता। सूर्य्य॑स्य। निः। अꣳह॑सः। पि॒पृ॒त। निः। अ॒व॒द्यात् ॥ तत्। नः॒। मि॒त्रः। वरु॑णः। मा॒म॒ह॒न्ता॒म्। म॒म॒ह॒न्ता॒मिति॑ ममहन्ताम्। अदि॑तिः। सिन्धुः॑। पृ॒थि॒वी। उ॒त। द्यौः ॥४२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अद्या देवाऽउदिता सूर्यस्य निरँहसः पिपृता निरवद्यात् । तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अद्य। देवाः। उदितेत्युत्ऽइता। सूर्य्यस्य। निः। अꣳहसः। पिपृत। निः। अवद्यात्॥ तत्। नः। मित्रः। वरुणः। मामहन्ताम्। ममहन्तामिति ममहन्ताम्। अदितिः। सिन्धुः। पृथिवी। उत। द्यौः॥४२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 33; मन्त्र » 42
    Acknowledgment

    Translation -
    O bounties of Nature, this day at the time of sun-rise may you make us free from sin and ill-repute. May the Lord friendly and venerable, and also the Eternity, the ocean, the earth and the heaven grant us this prayer of ours. (1)

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top