अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 21
सूक्त - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
भू॒तं ब्रू॑मो भूत॒पतिं॑ भू॒ताना॑मु॒त यो व॒शी। भू॒तानि॒ सर्वा॑ सं॒गत्य॒ ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठभू॒तम् । ब्रू॒म॒: । भू॒त॒ऽपति॑म् । भू॒ताना॑म् । उ॒त । य: । व॒शी । भू॒तानि॑ । सर्वा॑ । स॒म्ऽगत्य॑ । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
भूतं ब्रूमो भूतपतिं भूतानामुत यो वशी। भूतानि सर्वा संगत्य ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठभूतम् । ब्रूम: । भूतऽपतिम् । भूतानाम् । उत । य: । वशी । भूतानि । सर्वा । सम्ऽगत्य । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.२१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 21
भाषार्थ -
(भूतम्) सद्य सत्ता वाले, (भूतपतिम्) सत्तावाले, पञ्चभूतों की स्वामी, (उत) तथा (यः) जो (भूतानाम्) सत्ता वाले पञ्चभूतों का (वशी) वशयिता है, उसे (ब्रूमः) हम प्रार्थना करते हैं कि आप की कृपा से (सर्वा भूतानि) सब पञ्चभूत (संगत्य) मिल कर, एकमत से हो कर, (नः) हमें (अंहसः) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।
टिप्पणी -
[भूतम् = भवतीति, त्रैकालिक सत्ता वाला, सदा सद्रूप से वर्तमान, सद्रूप परमेश्वर। कर्तरि क्तः। परमेश्वर सत्, चित्, आनन्दस्वरूप है। मन्त्र में परमेश्वर के सद्रूप का कथन किया है। मन्त्र में "ब्रूमः" का अभिप्राय है "प्रार्थना करते हैं"। पञ्चभूत= पृथिवी, अप, तेज, वायु, आकाश। ये प्रायः अपने उग्ररूप में हमारा हनन भी करते रहते हैं; पृथिवी भूचाल द्वारा, अप् जल-विप्लाव, अति वर्षा और अवर्षा द्वारा; तेज जलाने द्वारा; वायु प्रबल प्रवाह द्वारा; और प्रकाश कर्कश, कठोर ध्वनियों तथा शब्दों द्वारा। परमेश्वर से प्रार्थना की गई है कि आप इन के पति हैं, स्वामी हैं, ये आप के वश में हैं, अतः इन में प्रेरणाएं दीजिये कि ये इस ढंग से वर्ते, जिस से हमारा हनन न हो। वे परस्पर मिल कर हमें हनन से मुक्त करते रहें, इन में से एक भी अपने में उग्ररूप न हो]।