अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
सूक्त - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
अ॑होरा॒त्रे इ॒दं ब्रू॑मः सूर्याचन्द्र॒मसा॑वु॒भा। विश्वा॑नादि॒त्यान्ब्रू॑म॒स्ते नो॑ मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । इ॒दम् । ब्रू॒म॒: । सू॒र्या॒च॒न्द्र॒मसौ॑ । उ॒भा । विश्वा॑न् । आ॒दि॒त्यान् । ब्रू॒म॒: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.५॥
स्वर रहित मन्त्र
अहोरात्रे इदं ब्रूमः सूर्याचन्द्रमसावुभा। विश्वानादित्यान्ब्रूमस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठअहोरात्रे इति । इदम् । ब्रूम: । सूर्याचन्द्रमसौ । उभा । विश्वान् । आदित्यान् । ब्रूम: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(अहोरात्रे) दिन और रात (उभा सूर्याचन्द्रमसौ) तथा सूर्य और चन्द्र दोनों का (इदं ब्रूमः) हम यह कथन करते हैं, तथा (विश्वान्) सभी (आदित्यान्) अदिति अर्थात् अनश्वर प्रकृति से उत्पन्न सब का (ब्रूमः) हम कथन करते हैं कि (ते) वे (हे परमेश्वर!) (नः) हमें (अहंस) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।
टिप्पणी -
[प्राकृतिक पदार्थों, भिन्न-भिन्न कालों तथा प्राणियों द्वारा सम्भाव्यमान कष्टों तथा मृत्युओं से वचे रहने की प्रार्थनाएं परमेश्वर से इन मन्त्रों में की गई हैं। इन प्रार्थनाओं द्वारा प्रार्थियों की आस्तिक भावनाओं को प्रदर्शित किया है। अदिति = अ + दो (अवखण्डने)= न खण्डित अर्थात् विनष्ट न होने वाली प्रकृति]।