अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 22
सूक्त - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
या दे॒वीः पञ्च॑ प्र॒दिशो॒ ये दे॒वा द्वाद॑श॒र्तवः॑। सं॑वत्स॒रस्य॒ ये दंष्ट्रा॒स्ते नः॑ सन्तु॒ सदा॑ शि॒वाः ॥
स्वर सहित पद पाठया: । दे॒वी: । पञ्च॑ । प्र॒ऽदिश॑: । ये । दे॒वा: । द्वाद॑श । ऋ॒तव॑: । स॒म्ऽव॒त्स॒रस्य॑ । ये । दंष्ट्रा॑ । ते । न॒: । स॒न्तु॒ । सदा॑ । शि॒वा: ॥८.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
या देवीः पञ्च प्रदिशो ये देवा द्वादशर्तवः। संवत्सरस्य ये दंष्ट्रास्ते नः सन्तु सदा शिवाः ॥
स्वर रहित पद पाठया: । देवी: । पञ्च । प्रऽदिश: । ये । देवा: । द्वादश । ऋतव: । सम्ऽवत्सरस्य । ये । दंष्ट्रा । ते । न: । सन्तु । सदा । शिवा: ॥८.२२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 22
भाषार्थ -
(या) जो (देवीः) दिव्य (पञ्चदिशः) विस्तृत दिशाएं हैं, (ये च) और जो (देवाः) दिव्य (द्वादशर्तवः) १२ मास हैं, तथा (संवत्सरस्य) सौरवर्ष की (ये) जो दाढ़े हैं, (ते) वे (हे परमेश्वर!) (नः) हमें (सदा शिवाः सन्तु) सदा कल्याणकारी हों।
टिप्पणी -
[पञ्च= पचि विस्तारे। यथा प्रपञ्च, पञ्चास्य अर्थात् विस्तृत मुखवाला शेर। दिशाएं और १२ मास तो देवीः और देव हैं, अतः कल्याणकारी हैं। परमेश्वर से प्रार्थना की गई है कि ये सदा दिव्य रूप रहकर हमारे लिये कल्याणकारी हों। तथा संवत्सरकाल में जो दंशनकारी सर्प, वृश्चिक, मच्छर आदि हों वे भी हमारे लिये कष्टप्रद न हों। ऋतवः = मासाः, यथा "मधुश्च माधवश्च वासन्तिकावृतू" (यजु० १३-२५) में ऋतुपद मासवाचक है।]