अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
सूक्त - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
ग॑न्धर्वाप्स॒रसो॑ ब्रूमो अ॒श्विना॒ ब्रह्म॑ण॒स्पति॑म्। अ॑र्य॒मा नाम॒ यो दे॒वस्ते॑ नो मुञ्च॒न्त्वंह॑सः ॥
स्वर सहित पद पाठग॒न्ध॒र्व॒ऽअ॒प्स॒रस॑: । ब्रू॒म॒: । अ॒श्विना॑ । ब्रह्म॑ण: । पति॑म् । अ॒र्य॒मा । नाम॑ । य: । दे॒व: । ते । न॒: । मु॒ञ्च॒न्तु॒ । अंह॑स: ॥८.४॥
स्वर रहित मन्त्र
गन्धर्वाप्सरसो ब्रूमो अश्विना ब्रह्मणस्पतिम्। अर्यमा नाम यो देवस्ते नो मुञ्चन्त्वंहसः ॥
स्वर रहित पद पाठगन्धर्वऽअप्सरस: । ब्रूम: । अश्विना । ब्रह्मण: । पतिम् । अर्यमा । नाम । य: । देव: । ते । न: । मुञ्चन्तु । अंहस: ॥८.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(गन्धर्वाप्सरसः) अग्नि गन्धर्व है, ओषधियां अप्सराएं हैं; सूर्य गन्धर्व है, मरीचियां अप्सराएं हैं, चन्द्रमा गन्धर्व है, नक्षत्र अप्सराएं हैं; वात गन्धर्व है, (आपः) जल अप्सराएं हैं; यज्ञ गन्धर्व है, दक्षिणाएँ अप्सराएं हैं; मन गन्धर्व है, ऋक और साम अप्सराएं हैं (यजु० १८।३८-४३); (अश्विना) द्युलोक और पृथिवी लोक; (बृहस्पतिः) जल स्वामी तथा (यः अर्यमा नाम देवः) जो अर्यमा नाम देव है, (ब्रूमः) इन का हम कथन करते हैं, (ते) वे [हे परमेश्वरः] (नः) हमें (अंहसः) हनन से (मुञ्चन्तु) मुक्त करें, हमारा हनन न करें।
टिप्पणी -
[अश्विना= द्यावापृथिव्यौ (निरुक्त १२॥१॥१)। ब्रह्मणस्पतिः = ब्रह्म उदकम्, अन्नम्, धनम् (निघं० १।१२; २।७; २।१०)। अर्यमा= आदित्योऽरीम नियच्छति (निरुक्त ११।३।२३)]। अथवा- गन्धर्वाप्सरसः= गो (पृथिवी निघं० १।१) + धर्व (धृत्र् धारणे) =राजवर्ग। अप्सराएं= राजवर्ग की रूपवती स्त्रियां। अप्स इति रूपनाम, तद्रा भवति, रूपवती (निरुक्त ५।३।१३)। अश्विना१= सैनिक, नागरिकविभागों के दो अधिपति, ब्रह्मणस्पतिः=वैदिक महाविद्वान् अर्यमा२= राष्ट्र के अरियों, शत्रुओं का नियमन करने वाला आदित्य सम तेजस्वी न्यायाधीश। राष्ट्र के ये शासक भी अज्ञान वश, धन के लोभ, तथा पक्षपात द्वारा हमारा हनन न करें-यह प्रार्थना परमेश्वर से की है]।[१. अश्विना= राजानौ पुण्यकृतौ (निरुक्त १२।१।१)। २. “अर्यमाऽऽदित्योऽरीन्नियच्छति” (निरुक्त ११।३।२३); मन्त्र में "अरीन् नियच्छति" के आधार पर न्यायाधीश अर्थ किया है।]