अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
सूक्त - शन्तातिः
देवता - चन्द्रमा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - पापमोचन सूक्त
मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्यादहोरा॒त्रे अथो॑ उ॒षाः। सोमो॑ मा दे॒वो मु॑ञ्चतु॒ यमा॒हुश्च॒न्द्रमा॒ इति॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमु॒ञ्चन्तु॑ । मा॒ । श॒प॒थ्या᳡त् । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । अथो॒ इति॑ । उ॒षा: । सोम॑: । मा॒ । दे॒व: । मु॒ञ्च॒तु॒ । यम् । आ॒हु: । च॒न्द्रमा॑: । इति॑ ॥८.७॥
स्वर रहित मन्त्र
मुञ्चन्तु मा शपथ्यादहोरात्रे अथो उषाः। सोमो मा देवो मुञ्चतु यमाहुश्चन्द्रमा इति ॥
स्वर रहित पद पाठमुञ्चन्तु । मा । शपथ्यात् । अहोरात्रे इति । अथो इति । उषा: । सोम: । मा । देव: । मुञ्चतु । यम् । आहु: । चन्द्रमा: । इति ॥८.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(अहोरात्रे) दिन और रात (अथो) तथा (उषाः) उषः काल, (शपथ्यात्) शपथजन्य दुष्परिणामों से (मा) मुझे (मुञ्चन्तु) मुक्त करें तथा (देव) प्रकाशमान (सोमः) सोम, (यम्) जिसे कि (चन्द्रमाः इति) चन्द्रमा इस नाम से (आहुः) कहते हैं वह भी (मा) मुझे (मुञ्चतु) उन दुष्परिणामों से मुक्त करे।
टिप्पणी -
[शपथ्यात् = मनुष्य प्रायः अपने आप को निरपराधी साबित करने के लिए शपथें खाते हैं, जो कि झूठी होती हैं, सत्यरूप नहीं होतीं। इन शपथों के कारण चित्तवृत्तियां दूषित हो जाती हैं,- यह दुष्परिणाम है। व्यक्ति इस बात को समझ कर शपथों और उन के दुष्परिणामों से अपने आप को मुक्त करना चाहता है। दिन-रात तथा उषः काल में मनुष्य झूठी शपथें खाता रहता है। वह इन्हें त्यागने का अभिलाषी है। अतः इन्हें त्यागने का वह संकल्प करता है, और इस निमित्त परमेश्वर से शक्ति की याचना करता है। चन्द्रमा शब्द द्वारा रात्रि का काल सूचित किया है, और उषाः शब्द द्वारा दिन का काल। “शपथ्य" परिणाम है, और "शपथ" उस का कारण है। परिणाम से छुटकारा चाहने वाला व्यक्ति, सुतरां कारण से भी छुटकारे का अभिलाषी है]।