अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 18
सूक्त - अथर्वा
देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त
समृ॑द्धि॒रोज॒ आकू॑तिः क्ष॒त्रं रा॒ष्ट्रं षडु॒र्व्यः। सं॑वत्स॒रोऽध्युच्छि॑ष्ट॒ इडा॑ प्रै॒षा ग्रहा॑ ह॒विः ॥
स्वर सहित पद पाठसम्ऽऋ॑ध्दि: । ओज॑: । आऽकू॑ति: । क्ष॒त्रम् । रा॒ष्ट्रम् । षट् । उ॒र्व्य᳡: । स॒म्ऽव॒त्स॒र: । अधि॑ । उत्ऽशि॑ष्टे । इडा॑ । प्र॒ऽए॒षा: । ग्रहा॑: । ह॒वि: ॥९.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
समृद्धिरोज आकूतिः क्षत्रं राष्ट्रं षडुर्व्यः। संवत्सरोऽध्युच्छिष्ट इडा प्रैषा ग्रहा हविः ॥
स्वर रहित पद पाठसम्ऽऋध्दि: । ओज: । आऽकूति: । क्षत्रम् । राष्ट्रम् । षट् । उर्व्य: । सम्ऽवत्सर: । अधि । उत्ऽशिष्टे । इडा । प्रऽएषा: । ग्रहा: । हवि: ॥९.१८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 18
भाषार्थ -
(समृद्धिः) सफलता, (ओजः) शारीरिक वल, (आकृतिः) संकल्प (क्षत्रम) क्षात्रतेज, (राष्ट्रम्) राज्य, (षट्उर्व्यः) ६ विस्तार वाली पृथिवियां, (संवत्सरः) अर्थात् पृथिवी द्वारा सूर्य की प्रदक्षिणा, (इडा) वेदवाणी, (प्रैषाः) प्रेरणाएँ, (ग्रहाः) विषयों का ग्रहण करने वाली इन्द्रियां, (हविः) तथा दानादान के व्यवहार (उच्छिष्टे अधि) प्रलय में भी अवशिष्ट रहने वाले परमेश्वर में आश्रित हैं।
टिप्पणी -
[षड् उर्व्यः= पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ध्रुवा तथा ऊर्ध्वा दिशाएं या पृथिवी से लेकर नेपच्यून तक के ६ ग्रह। ये ६ अतिविस्तृत हैं, बुध, शुक्र परिणाम में अत्यल्प है, चन्द्रमा ग्रह नहीं, और परिणाम में भी अत्यल्प है। पृथिवी यह नाम दर्शा रहा है कि बुध, शुक्र की अपेक्षा यह अधिक विस्तृत है।पृथिवी= प्रथ विस्तारे। संवत्सरः= सूर्य के चारों ओर पृथिवी की एक प्रदक्षिणा का काल। इडा= वाङ्नाम (निघं० १।७)। प्रैषः= गुरु द्वारा शिष्य को, स्वामी द्वारा भृत्य को, मातापिता द्वारा सन्तानों को, राजा द्वारा प्रजा को प्रेरणाएं। ग्रहाः = इन्द्रियाणि organs (आप्टे)। हविः =हु दाने, आदाने, अदने। याज्ञिक पक्ष में:- इडा= देवता के लिये यज्ञशेष में से भाग दिया जाता है। प्रैषाः = ऋत्विजों को प्रेरित करने वाले मन्त्र भाग। ग्रहाः-सोम को ग्रहण करने के ऊर्ध्वाकार पात्र]।