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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 26
    सूक्त - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त

    आ॑न॒न्दा मोदाः॑ प्र॒मुदो॑ऽभिमोद॒मुद॑श्च॒ ये। उच्छि॑ष्टाज्जज्ञिरे॒ सर्वे॑ दि॒वि दे॒वा दि॑वि॒श्रितः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽन॒न्दा: । मोदा॑: । प्र॒ऽमुद॑: । अ॒भि॒ऽमो॒द॒ऽमुद॑: । च॒ । ये । उत्ऽशि॑ष्टात् । ज॒ज्ञि॒रे॒ । सर्वे॑ । दि॒वि । दे॒वा: । दि॒वि॒ऽश्रित॑: ॥९.२६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आनन्दा मोदाः प्रमुदोऽभिमोदमुदश्च ये। उच्छिष्टाज्जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽनन्दा: । मोदा: । प्रऽमुद: । अभिऽमोदऽमुद: । च । ये । उत्ऽशिष्टात् । जज्ञिरे । सर्वे । दिवि । देवा: । दिविऽश्रित: ॥९.२६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 26

    भाषार्थ -
    (आनन्दाः) समृद्धि के द्वारा उत्पन्न सुख विशेष या ब्रह्मोपासना द्वारा उत्पन्न आनन्दमयी चित्तवृत्तियां, (मोदाः प्रमोदाः) मानसिक मोद प्रमोद अर्थात् हर्ष, (ये) जो (अभीमोदमुदः च) और संमुख प्राप्तविषयजन्य हर्षातिरेक, (सर्वे देवाः) तथा सब देव (दिवि) जो कि द्युलोक में हैं, (दिविश्रितः) और द्युलोक में जिन का आश्रय है- (उच्छिष्टात्) प्रलय में भी अवशिष्ट परमेश्वर से (जज्ञिरे) पैदा हुए हैं।

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