अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 1
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - साम्न्येकावसानोष्णिक्
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
आ॑ङ्गिर॒साना॑मा॒द्यैः पञ्चा॑नुवा॒कैः स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ङ्गि॒र॒साना॑म्। आ॒द्यैः। पञ्च॑। अ॒नु॒ऽवा॒कैः। स्वाहा॑ ॥२२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
आङ्गिरसानामाद्यैः पञ्चानुवाकैः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठआङ्गिरसानाम्। आद्यैः। पञ्च। अनुऽवाकैः। स्वाहा ॥२२.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 1
भाषार्थ -
(आङ्गिरसानाम्) शारीरिक अङ्ग, शरीर अङ्गी, और शारीरिक रसों सम्बन्धी ओषधों का वर्णन करनेवाले (आद्यैः) प्रारम्भ के (पञ्च अनुवाकैः) पांच अनुवाकों द्वारा (स्वाहा) रोगनिवारणार्थ आहुतियां हों।
टिप्पणी -
[अङ्गिराः= आङ्गिरसं मन्यन्तेऽङ्गानां हि यद् रसः (छा० १.२.१०); आङ्गिरसोऽङ्गानां हि रसः (बृहदा० १।३।८)। तथा अङ्गिराः= जङ्गिड औषध, यथा—“तमु त्वाङ्गिरा इति ब्राह्मणाः पूर्व्या विदुः” (अथर्व० १९.३४.६)। तथा आङ्गिरसीः= ओपधयः,यथा—“आथर्वणीराङ्गिरसीर्दैवीर्मनुष्यजा उत। ओषधयः प्र जायन्ते यदा त्वं प्राण जिन्वसि” (अथर्व० ११.४.१६)। इन प्रमाणों द्वारा प्रतीत होता है कि “अङ्गिराः” शब्द द्वारा शरीर और शारीरिक रसों तथा ओषधियों का ग्रहण सम्भव है। अथर्ववेद के प्रथमकाण्ड में ६ अनुवाक हैं, जिनमें से प्रथम के ५ अनुवाकों में रोगों और रोगोपचारों का वर्णन हुआ है। भिन्न-भिन्न ओषधों द्वारा यज्ञ करने पर रोगनिवारण वेदानुमोदित है। औषधों की आहुतियों द्वारा यज्ञोत्थ धूम फेफड़ों में जाकर, रक्त में मिलकर, रक्तसंचार द्वारा रोगों का विनाशक होता है।]