अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 6
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
क्षु॒द्रेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्षु॒द्रेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.६॥
स्वर रहित मन्त्र
क्षुद्रेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठक्षुद्रेभ्यः। स्वाहा ॥२२.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 6
भाषार्थ -
(क्षुद्रेभ्यः) क्षुद्र अर्थात् अल्पकाय रोगजन्तुओं अर्थात् कीटाणुओं के निवारणार्थ (स्वाहा) आहुतियां हों।
टिप्पणी -
[रोग-क्रिमि दो प्रकार के हैं—दृष्ट तथा अदृष्ट (अथर्व० २.३१.२)। ये क्रिमी आन्तों, सिर, छाती आदि स्थानों में रहकर रोग पैदा करते हैं। (अथर्व० २.३१.४-५) क्षुद्र शब्द द्वारा अदृष्ट अर्थात् सूक्ष्म कीटाणुओं का वर्णन किया गया है। क्षुद्र कीटाणुओं की विनाशक ओषधियों की आहुतियों से उत्पन्न यज्ञिय धूम्र इन का विनाश करता है।]