अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 5
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
ह॑रि॒तेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठह॒रि॒तेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
हरितेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठहरितेभ्यः। स्वाहा ॥२२.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(हरितेभ्यः) हरित रोगों के निवारण के लिए (स्वाहा) आहुतियां हों।
टिप्पणी -
[“हरितेभ्यः” में चतुर्थी विभक्ति के लिए देखो मन्त्र ४ की व्याख्या। इसी प्रकार अगले मन्त्रों में भी चतुर्थी विभक्ति की उपपत्ति जाननी चाहिए। हरित या हरिमा (अथर्व० १.२२.१-४; ९.८.९; १९.४४.२) सम्भवतः एक ही रोग है। कई इसे Jaundice अर्थात् पाण्डु कामला या पीलिया रोग कहते हैं। अथर्ववेद में “हरितभेषजम्” द्वारा “आञ्जन” का निर्देश किया है। यथा “उतामृतस्य त्वं वेत्थाथो असि जीवभोजनमथो हरितभेषजम्” (४.९.३)। “जीवभोजनम्” पद द्वारा जीवन के लिए भोजनरूप में आञ्जन के प्रयोग का विधान प्रतीत होता है। यह जाठराग्नि में स्वाहा अर्थात् आहुति है। हरित रोग के निवारण के लिए हरिमा-सूक्त में निम्नलिखित उपचार कहे हैं। यथा— (१) सूर्योदय के पश्चात् सूर्य रश्मियों का सेवन का स्नान, “अनु सूर्यमुदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते” (अथर्व० १.२२.१), (२) “गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परि दध्मसि” (१.२२.१), अर्थात् लाल गौ या लाल बैल की गोरोचना द्वारा लेप। (३) लाल वस्त्र पहिनना, “परि त्वा रोहितैर्वर्णैर्दीर्घायुत्वाय दध्मसि। यथायमरपा असदथो अहरितो भुवत्” (१.२२.२); अथवा लाल रश्मियों द्वारा रश्मिस्नान। इसी भाव को “या रोहिणीर्देवत्या गावः....ताभिष्ट्वा परि दध्मसि” (१.२२.३) द्वारा दर्शाया है। अर्थात् जो दैवत लाल गौएं (=रश्मियां) हैं, उन द्वारा तुझे घेर देते हैं। “देवत्याः गावः” द्वारा आधिदैविक गौओं का वर्णन हुआ है। गावः=रश्मिनाम (निघं० १.५)।