अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 2
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
ष॒ष्ठाय॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठष॒ष्ठाय॒। स्वाहा॑ ॥२२.२॥
स्वर रहित मन्त्र
षष्ठाय स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठषष्ठाय। स्वाहा ॥२२.२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 2
भाषार्थ -
(षष्ठाय) छठी संख्यावाले मन के स्वास्थ्य के लिए (स्वाहा) आहुतियां हों।
टिप्पणी -
[मन्त्र १ में शारीरिक रोगों की निवृत्ति के लिए आहुतियों का विधान किया है। मन्त्र २ में मानसिक स्वास्थ्य के लिए आहुतियों का विधान किया है। “षष्ठ” शब्द द्वारा “मन” का ग्रहण किया है। यथा “इमानि यानि पञ्चेन्द्रियाणि मनः षष्ठानि मे हृदि ब्रह्मणा संशितानि। यैरेव ससृजे घोरं तैरेव शान्तिरस्तु नः” (अथर्व० १९.९.५)।]