अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 13
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
उ॑त्त॒रेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त्ऽत॒रेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्तरेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठउत्ऽतरेभ्यः। स्वाहा ॥२२.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 13
भाषार्थ -
(उत्तरेभ्यः) अगले पाशों को शिथिल करने के लिए (स्वाहा) समर्पण हो॥ १३॥
टिप्पणी -
[मन्त्रों में उत्तम और उत्तर शब्दों द्वारा उत्तम मध्यम और अधम पाशों का वर्णन प्रतीत होता है। यथा “उदुत्तमं वरुण पाशमदवाधमं वि मध्यमं श्रथाय। अधा वयमादित्य व्रते तवानागसो अदितये स्याम”॥ (अथर्व० ७.८८.३)। इस मन्त्र में वरुण अर्थात् पापनिवारक परमेश्वर से प्रार्थना की गई है कि वह हमारे इन पाशों (फंदों) को शिथिल करे, ताकि हम अदिति अर्थात् अविनाश=मोक्ष के अधिकारी बन सकें। “स्वाहा” पदों द्वारा वरुण के प्रति आत्मसमर्पण सूचित किया है। स्वाहा=सु+आ+हा (ओहाक् त्यागे)। जीवात्मा को उत्तम मध्यम तथा अधम पाशों ने बान्ध रखा है। कारणशरीर सूक्ष्मशरीर और स्थूलशरीर या बुद्धि मन और शरीर ये बन्धन क्रम से उत्तम मध्यम और अधम, अथवा उत्तम उपोत्तम तथा उत्तर बन्धन या पाश हैं। पाश भी आत्मा के लिए रोगरूप हैं।]