अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 4
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी जगती
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
नी॑लन॒खेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनी॒ल॒ऽन॒खेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.४॥
स्वर रहित मन्त्र
नीलनखेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठनीलऽनखेभ्यः। स्वाहा ॥२२.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 4
भाषार्थ -
(नीलनखेभ्यः) नखों के नीलेपन के निवारणार्थ (स्वाहा) आहुतियाँ हो।
टिप्पणी -
[नीलनखेभ्यः= नीलनखान् निवारयितुं स्वाहा। “क्रियार्थोपपदस्य च कर्मणि स्थानिनः” (अष्टा० २.३.१४) द्वारा, अथवा वारणार्थ को बुद्धिगत करके “वारणार्थानामीप्सितः” (अष्टा० १.४.२७) द्वारा चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग हुआ है। यथा “मशकाय धूमः”= मशकनिवारणार्थो धूमः। नखों का नीलपन यक्ष्मरोगजन्य अभिप्रेत है। यथा—“अस्थिभ्यस्ते मञ्जभ्यः स्नावभ्यो धमनिभ्यः। यक्ष्मं पाणिभ्यामङ्गुलिभ्यो नखेभ्यो वि वृहामि ते॥ (अथर्व० २.३३.६; तथा २०.९६.२२)। अथर्व० २.३३.६) में यक्ष्मरोग का निवारण “कश्यपस्य वीवर्हेण” द्वारा निर्दिष्ट किया है। यथा—“कश्यपस्य वीवर्हेण वि वृहामसि” (अथर्व० २.३३.७)। कश्यपस्य वीवर्ह= पश्यक अर्थात् द्रष्टा सूर्य की रश्मियों द्वारा। कश्यप=सूर्य (अथर्व० १७.१.२७, २८); तथा (अथर्व० २.३२.१)।]