अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 7
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी जगती
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
प॑र्यायि॒केभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप॒र्या॒यि॒केभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.७॥
स्वर रहित मन्त्र
पर्यायिकेभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठपर्यायिकेभ्यः। स्वाहा ॥२२.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
(पर्यायिकेभ्यः) पर्याय अर्थात् वारी से उत्पन्न रोगों के निवारण के लिए, तदुचित औषधों की (स्वाहा) आहुतियां हों।
टिप्पणी -
[पर्याय=Occasionally; now and then (आप्टे)। पर्यायिक का अभिप्राय “पर्यायोक्त रोगों की निवृत्ति के लिए”—भी सम्भव है। “पर्याय”=सूक्त के अवान्तर विभाग। यथा—अथर्ववेद (१६.१.१-३२) का एक ही विषय है—“दुःखमोचन”। और इसके अवान्तर विभाग या पर्याय हैं (४)। इन पर्यायों में दुःस्वप्न तथा इसके दुष्परिणामों, और अन्य भी कतिपय रोगों का वर्णन है।]