अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 15
सूक्त - अङ्गिराः
देवता - मन्त्रोक्ताः
छन्दः - दैवी पङ्क्तिः
सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त
शि॒खिभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒खिऽभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
शिखिभ्यः स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठशिखिऽभ्यः। स्वाहा ॥२२.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 15
भाषार्थ -
(शिखिभ्यः) शिखाओं अर्थात् ज्वालाओंवाली अग्नियों के प्रति (स्वाहा) घृत तथा हव्यों की आहुतियां हों।
टिप्पणी -
[शिखा=A flame, यथा “प्रभामहत्या शिखयेव दीपः” (आप्टे)। अतः “शिखिभ्यः” द्वारा सम्भवतः गार्हपत्य, आहवनीय, और दक्षिणा आदि अग्नियां अभिप्रेत हों। इनमें आहुतियों द्वारा गृहशुद्धि, वायुशुद्धि, स्वास्थ्य, तथा रोगविनाश होता है।