अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 126/ मन्त्र 16
सूक्त - वृषाकपिरिन्द्राणी च
देवता - इन्द्रः
छन्दः - पङ्क्तिः
सूक्तम् - सूक्त-१२६
न सेशे॒ यस्य॒ रम्ब॑तेऽन्त॒रा स॒क्थ्या॒ कपृ॑त्। सेदी॑शे॒ यस्य॑ रोम॒शं नि॑षे॒दुषो॑ वि॒जृम्भ॑ते॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥
स्वर सहित पद पाठन । स: । ई॒शे॒ । यस्य॑ । रम्ब॑ते । अ॒न्त॒रा । स॒क्थ्या॑ । कपृ॑त् ॥ स: । इत् । ई॒शे॒ । यस्य॑ । रो॒म॒शम् । नि॒ऽसेदुष॑: । वि॒ऽजृम्भ॑ते । विश्व॑स्मात् । इन्द्र॑: । उत्ऽत॑र ॥१२६.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
न सेशे यस्य रम्बतेऽन्तरा सक्थ्या कपृत्। सेदीशे यस्य रोमशं निषेदुषो विजृम्भते विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः ॥
स्वर रहित पद पाठन । स: । ईशे । यस्य । रम्बते । अन्तरा । सक्थ्या । कपृत् ॥ स: । इत् । ईशे । यस्य । रोमशम् । निऽसेदुष: । विऽजृम्भते । विश्वस्मात् । इन्द्र: । उत्ऽतर ॥१२६.१६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 126; मन्त्र » 16
भाषार्थ -
(सः) वह इन्द्र अर्थात् विद्युत् (न ईशे) वर्षा की अधीश्वरी नहीं, (यस्य) जिसका कि (कपृत्) जल की पूर्त्ति करनेवाला मेघ, (सक्थ्या) आकर्षण द्वारा परस्पर संसक्त द्युलोक और भूलोक के (अन्तरा) मध्य में अर्थात् अन्तरिक्ष में (रम्बते) गर्जता रहता है। (स इत्) अपितु वह ही (ईशे) वर्षा का अधीश्वर है (निषेदुषः यस्य) एक स्थान में स्थित जिसका कि (रोमशम्) लोकसमूह जैसा रश्मिसमूह (विजृम्भते) विशेषरूप में सर्वत्र विचरता है, अर्थात् सूर्य का रश्मिसमूह। रश्मियों की गर्मी के कारण बादल बनते, और बरसते हैं। (विश्वस्मात्০) पूर्ववत्।
टिप्पणी -
[रम्बते=रबि शब्दे। सक्थ्यौ=सजतीति सक्थि (उणादि कोश ३.१५४)। कपृत्=क (जल)+पृत् (पॄ पूरणे); जल के अभाव की पूर्ति करनेवाला मेघ। रोमशम्=इसके द्वारा वृषाकपि अर्थात् सूर्य का वर्णन है, जिसे कि उपनिषदों में हिरण्यकेश और हिरण्यश्मश्रू कहा है। सूर्य की किरणें ही “हिरण्यमय-केश” और “हिरण्यमय-श्मश्रू” है, जिन्हें मन्त्र में “रोमश” अर्थात् रोम-समूह कहा है। (निषेदुषः) वैदिक विज्ञान के अनुसार सूर्य चलता नहीं, अपितु वह सौर-मण्डल में सापेक्ष स्थिति की दृष्टि से सदा एक स्थान में स्थित है। मन्त्र में पुनः “इन्द्र और वृषाकपि” का वर्णन है। इन्द्र का यहाँ अभिप्राय—विद्युत् है, और वृषाकपि का अभिप्राय है—सूर्य। इन्द्र=विद्युत् (पूर्व मन्त्र ९)। वृषाकपि=सूर्य (निरु০ १२.३.२७)। “वृषाकपि” शब्द में “वृषा” पद स्पष्ट दर्शा रहा है कि सूर्य वर्षा का कारण है। वर्तमान मन्त्र में भी इसकी पुष्टि की गई है। मेघ में गर्जना का कारण विद्युत् है। यह प्रसिद्ध उक्ति है कि—“जो गर्जते हैं वे बरसते नहीं”।]