अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 12
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
ये सूर्यं॒ न तिति॑क्षन्त आ॒तप॑न्तम॒मुं दि॒वः। अ॒राया॑न्बस्तवा॒सिनो॑ दु॒र्गन्धीं॒ल्लोहि॑तास्या॒न्मक॑कान्नाशयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठये । सूर्य॑म् । न । तिति॑क्षन्ते । आ॒ऽतप॑न्तम् । अ॒मुम् । दि॒व: । अ॒राया॑न् । ब॒स्त॒ऽवा॒सिन॑: । दु॒:ऽगन्धी॑न् । लोहि॑तऽआस्यान् । मक॑कान् । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥६.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
ये सूर्यं न तितिक्षन्त आतपन्तममुं दिवः। अरायान्बस्तवासिनो दुर्गन्धींल्लोहितास्यान्मककान्नाशयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठये । सूर्यम् । न । तितिक्षन्ते । आऽतपन्तम् । अमुम् । दिव: । अरायान् । बस्तऽवासिन: । दु:ऽगन्धीन् । लोहितऽआस्यान् । मककान् । नाशयामसि ॥६.१२॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 12
भाषार्थ -
(ये) जो (दिवः) द्युलोक से (आतपन्तम्) सर्वत्र ताप करते हुए (अमु१) इस (सूर्यम्) सूर्य को (न तितिक्षन्ते) नहीं सह सकते, उन (अरायान्) अरातियों दुश्मनों को, जोकि (बस्तवासिनः) भेड़ के चमड़ की वास वाले (दुर्गन्धीन्) दुर्गन्ध वाले, तथा (लोहितास्यान) खूनी मुखों वाले (मककान्) मकक१ नामक श्वापद हैं, उन्हें (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं।
टिप्पणी -
[यह मन्त्र भी वानप्रस्थियों तथा वनवासियों सम्बन्धी है। श्वापद सूर्य के प्रकाश को नहीं सह सकते, अतः ये दिन के समय छिपे रहते हैं। श्वापदों के शरीरों से दुर्गन्ध आती है। शिकार को खाने से इन के मुख रक्त से लिपे रहते हैं। इन श्वापदों को मन्त्र में मकक कहा है]। [१. मककान्= मा + ककान्; कक लौल्ये (भ्वादिः), लौल्य= चञ्चलता। श्वापद दिन में सूर्य के प्रकाश में छिपे रहते हैं, चञ्चल अर्थात् चलते नहीं, विचरते नहीं,। लौल्य= Roam about (आप्टे)।]