अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
यः कृ॒ष्णः के॒श्यसु॑र स्तम्ब॒ज उ॒त तुण्डि॑कः। अ॒राया॑नस्या मु॒ष्काभ्यां॒ भंस॒सोऽप॑ हन्मसि ॥
स्वर सहित पद पाठय: । कृ॒ष्ण: । के॒शी । असु॑र: । स्त॒म्ब॒ऽज: । उ॒त । तुण्डि॑क: । अ॒राया॑न् । अ॒स्या॒: । मु॒ष्काभ्या॑म् । भंस॑स: । अप॑ । ह॒न्म॒सि॒ ॥६.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यः कृष्णः केश्यसुर स्तम्बज उत तुण्डिकः। अरायानस्या मुष्काभ्यां भंससोऽप हन्मसि ॥
स्वर रहित पद पाठय: । कृष्ण: । केशी । असुर: । स्तम्बऽज: । उत । तुण्डिक: । अरायान् । अस्या: । मुष्काभ्याम् । भंसस: । अप । हन्मसि ॥६.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
भाषार्थ -
(यः) जो (कृष्णः) काला (केशो) रोमों वाला, (असुरः) प्राणवान् अर्थात् शक्तिमान् [रोगकीटाणु है] (स्तम्बजः) झाड़ियों में पैदा हुआ (उत) तथा (तुण्डिकः) अल्पमुख वाला [रोगकीटाणु है]; (अरायान्) उन शत्रुरूप, अरातिरूप कीटाणुओं को (अस्याः) इस स्त्री के (मुष्काभ्याम्) दोनों अण्डकोशों से, (भंससः) तथा कटिप्रदेश [योनि] से (अप हन्मसि) हम अलग करते हैं और मार देते हैं।
टिप्पणी -
[मुष्काभ्याम् = स्त्रियों के भी दो अण्डकोश होते हैं, परन्तु वे छिपे हुए, अनभिव्यक्तावस्था में रहते हैं। वे समय पाकर अभिव्यक्तावस्था में भी कभी-कभी प्रकट हो जाते हैं]।