अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 25
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
पिङ्ग॒ रक्ष॒ जाय॑मानं॒ मा पुमां॑सं॒ स्त्रियं॑ क्रन्। आ॒ण्डादो॒ गर्भा॒न्मा द॑भ॒न्बाध॑स्वे॒तः कि॑मी॒दिनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपिङ्ग॑ । रक्ष॑ । जाय॑मानम् । मा । पुमां॑सम् । स्त्रिय॑म् । क्र॒न् । आ॒ण्ड॒ऽअद॑:। गर्भा॑न् । मा । द॒भ॒न् । बाध॑स्व । इ॒त: । कि॒मी॒दिन॑: ॥६.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
पिङ्ग रक्ष जायमानं मा पुमांसं स्त्रियं क्रन्। आण्डादो गर्भान्मा दभन्बाधस्वेतः किमीदिनः ॥
स्वर रहित पद पाठपिङ्ग । रक्ष । जायमानम् । मा । पुमांसम् । स्त्रियम् । क्रन् । आण्डऽअद:। गर्भान् । मा । दभन् । बाधस्व । इत: । किमीदिन: ॥६.२५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 25
भाषार्थ -
(पिङ्ग) हे पिङ्ग सर्षप ! (जायमानम्) पैदा होते हुए शिशु को (रक्ष) सुरक्षित कर (पुमांसम्) गर्भस्थ पुमान् को [रोगकारी शक्तियां] (स्त्रियम) स्त्रीरूप में (मा क्रन्) न परिणत कर दें। तथा (आण्डादः) अण्डभक्षक रोगकीटाणु (गर्भान्) गर्भस्थ शिशुओं की (मा दभन्) हिंसा न करें, (किमीदिनः) पिशुन [मन्त्र २१] शक्तियों को (इतः) इस गर्भिणी से (बाधस्व) हे पिङ्ग ! तू पीड़ित कर ।
टिप्पणी -
[मनुष्य समाज में कभी-कभी यह घटना हो जाती है कि जो पहले पुमान् था वह कालान्तर में स्त्री घोषित किया जाता है, और जो स्त्री थी वह पुमान् घोषित की जाती है। इन में लिंग परिवर्तन हो जाता है। सायण ने निम्नलिखित अर्थ भी दिया है, "जायमानं पुमासं, जायमानां स्त्रियं वा मा कुर्वन्तु, पीडायामिति शेषः"। लिङ्गपरिवर्तन सम्बन्धी यह अर्थ "पिङ्ग" अर्थात् गौर सर्षप सम्बन्धित है। "पिङ्ग" का अर्थ राज्यरक्षक [मन्त्र २१] तथा “किमीदिनः" का अर्थ "पिशुन" होने पर मन्त्र का भाव निम्नलिखित होगा। हे पिङ्ग ! तू जायमान शिशु की रक्षा कर ताकि कोई माता उत्पन्न होते हुए शिशु की हत्या न कर पाए, तथा कोई व्यक्ति पुमान् को डरा-धमका कर स्त्री न करे, उसे निःशक्त अबलारूप न कर दे, अर्थात् बली निर्बल को दबा न सके। तथा अण्ड-भक्षक, पक्षियों की उत्पत्ति के कारण रूप, अण्डों को न खाएं]।