अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 15
सूक्त - मातृनामा
देवता - ब्रह्मणस्पति
छन्दः - सप्तपदा शक्वरी
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
येषां॑ प॒श्चात्प्रप॑दानि पु॒रः पार्ष्णीः॑ पु॒रो मुखा॑। ख॑ल॒जाः श॑कधूम॒जा उरु॑ण्डा॒ ये च॑ मट्म॒टाः कु॒म्भमु॑ष्का अया॒शवः॑। तान॒स्या ब्र॑ह्मणस्पते प्रतीबो॒धेन॑ नाशय ॥
स्वर सहित पद पाठयेषा॑म् । प॒श्चात् । प्रऽप॑दानि । पु॒र: । पार्ष्णी॑: । पु॒र: । मुखा॑ । ख॒ल॒ऽजा: । श॒क॒धू॒म॒ऽजा: । उरु॑ण्डा: । ये । च॒ । म॒ट्म॒टा: । कु॒म्भऽमु॑ष्का: । अ॒या॒शव॑: । तान् । अ॒स्या: । ब्र॒ह्म॒ण॒: । प॒ते॒ । प्र॒ति॒ऽबो॒धेन॑ । ना॒श॒य॒ ॥६.१५॥
स्वर रहित मन्त्र
येषां पश्चात्प्रपदानि पुरः पार्ष्णीः पुरो मुखा। खलजाः शकधूमजा उरुण्डा ये च मट्मटाः कुम्भमुष्का अयाशवः। तानस्या ब्रह्मणस्पते प्रतीबोधेन नाशय ॥
स्वर रहित पद पाठयेषाम् । पश्चात् । प्रऽपदानि । पुर: । पार्ष्णी: । पुर: । मुखा । खलऽजा: । शकधूमऽजा: । उरुण्डा: । ये । च । मट्मटा: । कुम्भऽमुष्का: । अयाशव: । तान् । अस्या: । ब्रह्मण: । पते । प्रतिऽबोधेन । नाशय ॥६.१५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 15
भाषार्थ -
(येषाम्) जिन के (प्रपदानि) पादाग्र प्रदेश (पश्चात्) पीछे की ओर, और (पार्ष्णीः) एड़ियां (पुरः) आगे की ओर हैं, (पुरः मुखाः) और मुख पुरस्तात् अर्थात् आगे की ओर हैं। (खलजाः) जो खलों के परिवारों में पैदा हुए हैं, (शकधूमजाः) पशुओं के शकृत् अर्थात् गोबर के धूम्र से धूमिल गृहों में पैदा हुए हैं। (उरुण्डाः) और उरु अण्डों वाले हैं, (ये च) और जो (मट्मटा) मटक-मटक कर चलते या शृङ्गार से विभूषित [मडि भूषायाम्] हुए [चलते हैं] (कुम्भमुष्काः) जो कुम्भ१ सदृश अण्डकोशों वाले हैं (अयाशवः) आशु गतिवाले हैं (ब्रह्मणस्पते) हे वेदज्ञ ! [न्यायाधीश] (अस्याः) इस स्त्री सम्बन्धी (तान्) उन्हें (प्रतीबोधन) उनके अपराधों का बोध करा कर (नाशय) नष्ट कर।
टिप्पणी -
[इस मन्त्र में भी लुटेरों आदि का वर्णन हैं जो कि "सामाजिक मानुष-कीट" हैं। "प्रपद पीछे की ओर, और एड़ियां आगे की ओर द्वारा" इन की उल्टी चालों का कथन हुआ है। तथा “पुरोमुखाः" द्वारा यह दर्शाया है कि ये उल्टी चालें चलते हुए निज स्वार्थ साधन के लिये, दृष्टि को आगे की ओर करके चलते हैं। ख़लजाः ; खलः२ = A wicked mischierous (आप्टे) "सर्पः क्रूरः खलः क्रूरः सर्पात् क्रूरतरः खलः" । "शकधूमजाः” द्वारा गरीबी सूचित की है। कुम्भमुष्काः द्वारा शारीरिक बल सूचित किया है। "अयाशवः"= अय (गतौ) + आशु। हिन्दी में "अय्याश" स्वभाव वाले। “ब्रह्मणस्पते" द्वारा उग्रदण्ड को, ब्रह्मज्ञ अर्थात् वेदज्ञ [न्यायाधीश] द्वारा अनुमोदित दर्शाया है]। [१. इस द्वारा पूर्ण यौवनावस्था सूचित की है। जैसे पूर्णब्रह्मचारी को "बृहच्छेपः" कहा है (अथर्व० ११।७।११)। २. यथा "विद्या विवादाय धनं मदाय। शक्तिः परेषां परिपीडनाय" खलस्य।]