अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 23
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
य आ॒मं मां॒समदन्ति॒ पौरु॑षेयं च॒ ये क्र॒विः। गर्भा॒न्खाद॑न्ति केश॒वास्तानि॒तो ना॑शयामसि ॥
स्वर सहित पद पाठये । आ॒मम् । मां॒सम् । अ॒दन्ति॑ । पौरु॑षेयम् । च॒ । ये । क्र॒वि: । गर्भा॑न् । खाद॑न्ति । के॒श॒ऽवा: । तान् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ ॥६.२३॥
स्वर रहित मन्त्र
य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये क्रविः। गर्भान्खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि ॥
स्वर रहित पद पाठये । आमम् । मांसम् । अदन्ति । पौरुषेयम् । च । ये । क्रवि: । गर्भान् । खादन्ति । केशऽवा: । तान् । इत: । नाशयामसि ॥६.२३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 23
भाषार्थ -
(ये) जो (आमम्) [स्त्री के] कच्चे (मांसम्) मांस को (अदन्ति) खाते हैं, (च) और (ये) जो (पौरुषेयम्) पुरुष के (क्रविः) हिंसा प्राप्त मांस को खाते हैं, तथा (केशवाः) जल, वायु तथा शरीर में गति करने वाले जो कीटाणु (गर्भान खादन्ति) स्त्री के गर्भस्थ शिशुओं को खाते हैं, (तान्) उन कीटाणुओं को (इतः) इस उत्पत्ति स्थान से (नाशयामसि) हम नष्ट करते हैं।
टिप्पणी -
[स्त्री और पुरुष के कच्चे मांस के खाने का अभिप्राय है– उन्हें रुग्ण करके उन्हें सुखा देना। इसी प्रकार गर्भस्थ बच्चे को पुष्ट न होने देने द्वारा उसे सुखा देना। ये काम रोगजनक कीटाणुओं [germs] के हैं। ये रोगजनक कीटाणु जल आदि में पैदा होते तथा गति करते रहते हैं। केशवः = क (Air, Body, water, आप्टे) + शवाः (शु गतौ, भ्वादिः)। क्रविः= हिंसाकरणयोश्च (भ्वादिः)]।