अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 7
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
यस्त्वा॒ स्वप्ने॑ नि॒पद्य॑ते॒ भ्राता॑ भू॒त्वा पि॒तेव॑ च। ब॒जस्तान्त्स॑हतामि॒तः क्ली॒बरू॑पांस्तिरी॒टिनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठय: । त्वा॒ । स्वप्ने॑ । नि॒ऽपद्य॑ते । भ्राता॑ । भू॒त्वा । पि॒ताऽइ॑व । च॒ । ब॒ज: । तान् । स॒ह॒ता॒म् । इ॒त: । क्ली॒बऽरू॑पान् । ति॒री॒टिन॑: ॥६.७॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्त्वा स्वप्ने निपद्यते भ्राता भूत्वा पितेव च। बजस्तान्त्सहतामितः क्लीबरूपांस्तिरीटिनः ॥
स्वर रहित पद पाठय: । त्वा । स्वप्ने । निऽपद्यते । भ्राता । भूत्वा । पिताऽइव । च । बज: । तान् । सहताम् । इत: । क्लीबऽरूपान् । तिरीटिन: ॥६.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 7
भाषार्थ -
[हे स्त्री !] (भ्राता भूत्वा) भाई की तरह हो कर (च) और (पिता इव) पिता की तरह होकर, (यः) जो (स्वप्ने) स्वप्नावस्था में (त्वा) तुझे (निपद्यते) [कामवासना से] प्राप्त होता है, (तान्) ऐसे उन सब (क्लीबरूपान्) नपुंसकरूपी, (तिरीटिनः) टेढ़ी अर्थात् कपट चालों वालों को, (इतः) इस तेरे मस्तिष्क से, (बजः) वज [सर्षप] (सहताम्) पराभूत कर दे।
टिप्पणी -
[मन्त्र में स्वप्नावस्था के दृश्य का वर्णन है। कामवासना सर्वप्राणि साधारण है। यह मानुषपुरुषों तथा मानुषस्त्रियों में भी है। स्वप्नावस्था में जैसे पुरुषों में कामवासना उद्बुद्ध हो जाती है वैसे स्त्रियों में भी उद्बुद्ध हो जाती है। स्वप्न में उद्बुद्ध घटनाएं वास्तविक नहीं होतीं। वे प्रायः उल्टी-पुल्टी होती हैं। स्त्री को पहले तो स्वप्न हुआ कि भाई और पिता आए हैं परन्तु स्वप्नावस्था में वे कामी कपटी पुरुषों के रूप में बदल गए। ऐसी स्वाप्निक मस्तिष्कावस्था को स्वस्थ करने के लिये वज-औषध का विधान मन्त्र में हुआ है। स्वप्नावस्था में प्राप्त ऐसे काल्पनिक व्यक्तियों को क्लीब कहा है, जोकि वस्तुतः भोग करने में अशक्त होते हैं, शक्तिविहीन होते हैं। इस प्रकार की अवस्था को आपन्न हुए अर्जुन को भी गीता में क्लीब कहा है। यथा “क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत् त्वय्युपयुज्यते" (गीता अध्याय २, श्लोक ३)। तिरीटिनः = तिरस् (कुटिल) +इट (गतौ) +इन्। मन्त्र में स्वाप्निक रोग के विनाश का वर्णन हुआ है]।