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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 9/ मन्त्र 12
    सूक्त - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त

    उद्वे॑पय॒ सं वि॑जन्तां भिया॒मित्रा॒न्त्सं सृ॑ज। उ॑रुग्रा॒हैर्बा॑ह्व॒ङ्कैर्विध्या॑मित्रान्न्यर्बुदे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । वे॒प॒य॒ । सम् । वि॒ज॒न्ता॒म् । भि॒या । अ॒मित्रा॑न् । सम् । सृ॒ज॒ । उ॒रु॒ऽग्रा॒है: । बा॒हु॒ऽअ॒ङ्कै: । विध्य॑ । अ॒मित्रा॑न् । नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒ ॥११.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्वेपय सं विजन्तां भियामित्रान्त्सं सृज। उरुग्राहैर्बाह्वङ्कैर्विध्यामित्रान्न्यर्बुदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । वेपय । सम् । विजन्ताम् । भिया । अमित्रान् । सम् । सृज । उरुऽग्राहै: । बाहुऽअङ्कै: । विध्य । अमित्रान् । निऽअर्बुदे ॥११.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 12

    मन्त्रार्थ -
    (अभित्रान् उदवेपय) शत्रुओं को कम्पा दे (भिया संसृज) भय से संयुक्त कर (संविजन्ताम्) वे उद्विग्न हो जावें घबरा जावें (न्यर्वुदे े) हे स्फोटकास्त्र प्रयोक्ता सेनानायक जन तू ! (अमित्रान्) शत्रुओं को (उरुग्राहै:) बहुत पकडने वाले (बाह्रङ्कः-विध्य) वाहु जैसे लक्षणों वाले शस्त्रास्त्रो से वीन्ध-तडित कर 'ये बाहवः' (१) पूर्व जैसे कहा है ॥१२॥

    विशेष - ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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