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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 9/ मन्त्र 14
    सूक्त - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त

    प्र॑तिघ्ना॒नाः सं धा॑व॒न्तूरः॑ पटू॒रावा॑घ्ना॒नाः। अ॑घा॒रिणी॑र्विके॒श्यो रुद॒त्यः पुरु॑षे ह॒ते र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ति॒ऽघ्ना॒ना: । सम् । धा॒व॒न्तु॒ । उर॑: । प॒टू॒रौ । आ॒ऽघ्ना॒ना: । अ॒घा॒रिणी॑: । वि॒ऽके॒श्य᳡: । रु॒द॒त्य᳡: । पुरु॑षे । ह॒ते । र॒दि॒ते ।अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतिघ्नानाः सं धावन्तूरः पटूरावाघ्नानाः। अघारिणीर्विकेश्यो रुदत्यः पुरुषे हते रदिते अर्बुदे तव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतिऽघ्नाना: । सम् । धावन्तु । उर: । पटूरौ । आऽघ्नाना: । अघारिणी: । विऽकेश्य: । रुदत्य: । पुरुषे । हते । रदिते ।अर्बुदे । तव ॥११.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 14

    मन्त्रार्थ -
    (अर्बुदे तव रहिते हते पुरुषे) हे विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष ! तेरे मर्दन करने पर शत्रुजन हृत हो जाने पर (प्रतिध्नानाः) प्रतिघात करती हुई स्त्रियां (उर:) छाती (पटूरौ) जङघाओं को "पट गतौ" [भ्वादि उणादि १।६७] (आन्नानाः) पीटती हुई (अघारिणी:) अघ-आघात को प्राप्त हुई "अयं हन्तेनिर्ह सितोपसर्गः आहन्तीति" (निरु० ६।११) (विकेश्यः) विरुद्ध केशों वाली-विखरे केशों वाली (रुदत्यः) रोती हुई (संधावन्तु) घूमती फिरें ॥१४॥

    विशेष - ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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