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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 9/ मन्त्र 5
    सूक्त - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त

    उत्ति॑ष्ठ॒ त्वं दे॑वज॒नार्बु॑दे॒ सेन॑या स॒ह। भ॒ञ्जन्न॒मित्रा॑णां॒ सेनां॑ भो॒गेभिः॒ परि॑ वारय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ति॒ष्ठ॒ । त्वम् । दे॒व॒ऽज॒न॒ । अर्बु॑दे । सेन॑या । स॒ह । भ॒ञ्जन् । अ॒मित्रा॑णाम् । सेना॑म् । भो॒गेभि॑: । परि॑ । वा॒र॒य॒ ॥११.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठ त्वं देवजनार्बुदे सेनया सह। भञ्जन्नमित्राणां सेनां भोगेभिः परि वारय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । तिष्ठ । त्वम् । देवऽजन । अर्बुदे । सेनया । सह । भञ्जन् । अमित्राणाम् । सेनाम् । भोगेभि: । परि । वारय ॥११.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 5

    मन्त्रार्थ -
    (देवजन-अर्बुदे) हे विजिगीषु जयेच्छुक विद्युदस्त्रप्रोक्ता सेनाध्यक्ष ! (त्वं सेनया सह-उत्तिष्ठ) तू सेना के साथ उठ (अमित्राणां सेनां भञ्जन्) शत्रुओं की सेना का भञ्जन-मर्दन करने के हेतु (भोगेभिः परिवारय) क्रुद्ध-तीक्ष्ण वैद्युत पार्शी से घेर ले 'आजकल माइन फैलाने जैसे ढंग से "भोजते कुध्यतिकर्मा" [निघ० २।१२] ॥५॥

    विशेष - ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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