Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
    सूक्त - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - परोष्णिक् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त

    उत्ति॑ष्ठत॒मा र॑भेथामादानसंदा॒नाभ्या॑म्। अ॒मित्रा॑णां॒ सेना॑ अ॒भि ध॑त्तमर्बुदे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । ति॒ष्ठ॒त॒म् । आ । र॒भे॒था॒म् । आ॒दा॒न॒ऽसं॒दा॒नाभ्या॑म् । अ॒मित्रा॑णाम् । सेना॑: । अ॒भि । ध॒त्त॒म् । अ॒र्बु॒दे॒ ॥११.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत्तिष्ठतमा रभेथामादानसंदानाभ्याम्। अमित्राणां सेना अभि धत्तमर्बुदे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । तिष्ठतम् । आ । रभेथाम् । आदानऽसंदानाभ्याम् । अमित्राणाम् । सेना: । अभि । धत्तम् । अर्बुदे ॥११.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 3

    मन्त्रार्थ -
    (अबु दे-उत्तिष्ठतम्) हे र्बुदे ! विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष एवं न्यर्बुदे! 'न्यर्बुदे द्विवचन प्रयोगात्' स्फोटक पदार्थ प्रयोक्ता सेनानायक तुम दोनों उठ खडे हो प्रो (आरभेथाम्) युद्ध आरम्भ कर दो (आदान सन्दानाभ्याम्) छेदन- चूर्ण करने वाले तथा तोड 'फोडने वाले साधनों द्वारा "दो अवखण्डने" [दिवादि०] (अमित्राणां सेनाः) शत्रुओं की सेनाओं को (अभिधत्तम्) वश में धारण करो- अधिकार में ले लो ॥३॥

    विशेष - ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top