अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 9/ मन्त्र 17
सूक्त - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - त्रिपदा गायत्री
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
चतु॑र्दंष्ट्राञ्छ्या॒वद॑तः कु॒म्भमु॑ष्काँ॒ असृ॑ङ्मुखान्। स्व॑भ्य॒सा ये चो॑द्भ्य॒साः ॥
स्वर सहित पद पाठचतु॑:ऽदंष्ट्रान् । श्या॒वऽद॑त: । कु॒म्भऽमु॑ष्कान् । असृ॑क्ऽमुखान् । स्व॒ऽभ्य॒सा: । ये । चे॒ । उ॒त्ऽभ्य॒सा: ॥११.१७॥
स्वर रहित मन्त्र
चतुर्दंष्ट्राञ्छ्यावदतः कुम्भमुष्काँ असृङ्मुखान्। स्वभ्यसा ये चोद्भ्यसाः ॥
स्वर रहित पद पाठचतु:ऽदंष्ट्रान् । श्यावऽदत: । कुम्भऽमुष्कान् । असृक्ऽमुखान् । स्वऽभ्यसा: । ये । चे । उत्ऽभ्यसा: ॥११.१७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 17
मन्त्रार्थ -
(चतुर्दष्टान्) चार दंष्ट्र वाले (श्यावदतः) काले दान्तों वाले (कुम्भमुष्कान्) घडे जैसे अण्डकोश वाले (असृङमुखान्) रक्त मुख वाले (च) और (स्वभ्यसाः) अपना भय रखने वाले (च) और (उद्भयसाः) दूसरे पर भय डालने वाले उन ऐसे पशु आकृति वालों तोप आदि धातुओं को प्रदर्शित कर† ॥१७॥
विशेष - ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
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