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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 17
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - आपो देवताः छन्दः - निचृत् ब्राह्मी अनुष्टुप्, स्वरः - गान्धारः
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    इ॒दमा॑पः॒ प्रव॑हताव॒द्यं च॒ मलं॑ च॒ यत्। यच्चा॑भिदु॒द्रोहानृ॑तं॒ यच्च॑ शे॒पेऽअ॑भी॒रुण॑म्। आपो॑ मा॒ तस्मा॒देन॑सः॒ पव॑मानश्च मुञ्चतु॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम्। आ॒पः॒। प्र। व॒ह॒त॒। अ॒व॒द्यम्। च॒ मल॑म्। च॒। यत्। यत्। च॒। अ॒भि॒दु॒द्रोहेत्य॑भिऽदु॒द्रोह॑। अनृ॑तम्। यत्। च॒। शे॒पे। अभी॒रुण॑म्। आपः॑। मा॒। तस्मा॑त्। एन॑सः। पव॑मानः। च॒। मु॒ञ्च॒तु॒ ॥१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदमापः प्रवहतावद्यञ्च मलञ्च यत् । यच्चाभिदुद्रोहानृतं यच्च शेपे अभीरुणम् । आपो मा तस्मादेनसः पवमानश्च मुञ्चतु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इदम्। आपः। प्र। वहत। अवद्यम्। च मलम्। च। यत्। यत्। च। अभिदुद्रोहेत्यभिऽदुद्रोह। अनृतम्। यत्। च। शेपे। अभीरुणम्। आपः। मा। तस्मात्। एनसः। पवमानः। च। मुञ्चतु॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 17
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    पदार्थ -
    भो (आपः) सर्वविद्याव्यापक विद्वान् लोगो! आप जैसे (आपः) जल शुद्धि करते हैं, वैसे मेरा (यत्) जो (अवद्यम्) अकथनीय निन्द्यकर्म (च) और विकार तथा (यत्) जो (मलम्) अविद्यारूपी मल है, (इदम्) इस को (प्रवहत) बहाइये अर्थात् दूर कीजिये। (च) और (यत्) जो मैं (अनृतम्) झूंठ-मूंठ किसी से (दुद्रोह) द्रोह करता होऊं (च) और (यत्) जो (अभीरुणम्) निर्भय निरपराधी पुरुष को (शेपे) उलाहने देता हूं (तस्मात्) उस उक्त (एनसः) पाप से (मा) मुझे अलग रक्खो (च) और जैसे (पवमानः) पवित्र व्यवहार (मा) मुझसे पाप से अलग रखता है, वैसे (च) अन्य मनुष्यों को भी रक्खे॥१७॥

    भावार्थ - जैसे जल सांसारिक पदार्थों का शुद्धि का निदान है, वैसे विद्वान् लोग सुधार का निदान हैं, इस से वे अच्छे कामों को करें। मनुष्यों को चाहिये कि ईश्वर की उपासना और विद्वानों के संग से दुष्टाचरणों को छोड़ सदा धर्म में प्रवृत्त रहें॥१७॥

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