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  • यजुर्वेद - अध्याय 6/ मन्त्र 34
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - स्वराट् आर्षी पंथ्याबृहती, स्वरः - मध्यमः
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    श्वा॒त्रा स्थ॑ वृत्र॒तुरो॒ राधो॑गूर्त्ताऽअ॒मृत॑स्य॒ पत्नीः॑। ता दे॑वीर्देव॒त्रेमं य॒ज्ञं न॑य॒तोप॑हूताः॒ सोम॑स्य पिबत॥३४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्वा॒त्राः। स्थ॒। वृ॒त्र॒तुर॒ इति॑ वृत्र॒ऽतुरः॑। राधो॑गूर्त्ता॑ इति॑ राधः॑ऽगूर्त्ताः। अ॒मृत॑स्य। पत्नीः॑। ताः। दे॒वीः॒। दे॒व॒त्रेति॑ देव॒ऽत्रा। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। न॒य॒त॒। उप॑हूता॒ इत्यु॑पऽहूताः। सोम॑स्य। पि॒ब॒त॒ ॥३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्वात्रा स्थ वृत्रतुरो राधोगूर्ता अमृतस्य पत्नीः । ता देवीर्देवत्रेमँयज्ञन्नयतोपहूताः सोमस्य पिबत ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    श्वात्राः। स्थ। वृत्रतुर इति वृत्रऽतुरः। राधोगूर्त्ता इति राधःऽगूर्त्ताः। अमृतस्य। पत्नीः। ताः। देवीः। देवत्रेति देवऽत्रा। इमम्। यज्ञम्। नयत। उपहूता इत्युपऽहूताः। सोमस्य। पिबत॥३४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 6; मन्त्र » 34
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    पदार्थ -
    हे (देवीः) विद्यायुक्त स्त्रियो! तुम (वृत्रतुरः) बिजुली के सदृश, मेघ की वर्षा के तुल्य, सुखदायक की गति तुल्य चलने (राधोगूर्त्ताः) धन का उद्योग करने (पत्न्यः) और यज्ञ में सहाय देने वाली (स्थ) हो (देवत्रा) तथा अच्छे-अच्छे गुणों से प्रकाशित विद्वान् पतियो में प्रीति से स्थित हो, (इमम्) इस यज्ञ को (नयत) सिद्धि को प्राप्त किया कीजिये और (उपहूताः) बुलाई हुई पतियों के साथ (अमृतस्य) अति स्वाद-युक्त सोम आदि ओषधियों के रस को (पिबत) पीओ॥३४॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्वानों की पत्नी स्त्रीजन स्वधर्म व्यवहार से अपने पतियों को प्रसन्न करती हैं, उसी प्रकार पुरुष उन अपनी स्त्रियों को निरन्तर प्रसन्न करें, ऐसे परस्पर अनुमोद से गृहाश्रमधर्म को पूर्ण करें॥३४॥

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