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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
    सूक्त - अथर्वा, क्षुद्रः देवता - स्कन्धः, आत्मा छन्दः - उपरिष्टाद्बृहती सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त

    यत्र॒ ऋष॑यः प्रथम॒जा ऋचः॒ साम॒ यजु॑र्म॒ही। ए॑क॒र्षिर्यस्मि॒न्नार्पि॑तः स्क॒म्भं तं ब्रू॑हि कत॒मः स्वि॑दे॒व सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑ । ऋष॑य: । प्र॒थ॒म॒ऽजा: । ऋच॑: । साम॑ । यजु॑: । म॒ही । ए॒क॒ऽऋ॒षि: । यस्मि॑न् । आर्पि॑त: । स्क॒म्भम् । तम् । ब्रू॒हि॒ । क॒त॒म: । स्वि॒त् । ए॒व । स: ॥७.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्र ऋषयः प्रथमजा ऋचः साम यजुर्मही। एकर्षिर्यस्मिन्नार्पितः स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र । ऋषय: । प्रथमऽजा: । ऋच: । साम । यजु: । मही । एकऽऋषि: । यस्मिन् । आर्पित: । स्कम्भम् । तम् । ब्रूहि । कतम: । स्वित् । एव । स: ॥७.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 14

    पदार्थ -
    (यत्र) जिस [परमेश्वर] में (प्रथमजाः) प्रथम उत्पन्न (ऋषयः) ऋषिः [मन्त्रों के अर्थ जाननेवाले महात्मा], (ऋचः) स्तुतिविद्याएँ [ऋग्वेद], (साम) मोक्षविद्या [सामवेद], (यजुः) सत्सङ्गविद्या [यजुर्वेद] और (मही) पूजनीय वाणी [ब्रह्मविद्या अर्थात् अथर्ववेद] वर्तमान है। (यस्मिन्) जिसमें (एकर्षिः) एकदर्शी [समदर्शी स्वभाव] (आर्पितः) भली-भाँति जमा हुआ है, (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥१४॥

    भावार्थ - परमेश्वर की सत्ता में सृष्टि की आदि में उत्पन्न वेदार्थद्रष्टा ऋषि और समस्त वेदविद्याएँ और समदर्शी स्वभाव स्थित हैं। सृष्टि की आदि में जिनको वेदों का प्रकाश हुआ था, वे चार ऋषि ये हैं−अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा, महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृ० १६ ॥१४॥

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