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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 17
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - वायुर्देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    तन्नो॒ वातो॑ मयो॒भु वा॑तु भेष॒जं तन्मा॒ता पृ॑थि॒वी तत्पि॒ता द्यौः।तद्ग्रावा॑णः सोम॒सुतो॑ मयो॒भुव॒स्तद॑श्विना शृणुतं धिष्ण्या यु॒वम्॥१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत्। नः॒। वातः॑। म॒यो॒भ्विति॑। मयः॒ऽभु। वा॒तु॒। भे॒ष॒जम्। तत्। मा॒ता। पृ॒थि॒वी। तत्। पि॒ता। द्यौः। तत्। ग्रावा॑णः। सो॒म॒सुत॒ इति॑ सोम॒ऽसुतः॑। म॒यो॒भुव॒ इति॑ मयः॒ऽभुवः॑। तत्। अ॒श्वि॒ना॒। शृ॒णु॒त॒म्। धि॒ष्ण्या॒। यु॒वम् ॥१७ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजञ्तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः । तद्ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतन्धिष्ण्या युवम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तत्। नः। वातः। मयोभ्विति। मयःऽभु। वातु। भेषजम्। तत्। माता। पृथिवी। तत्। पिता। द्यौः। तत्। ग्रावाणः। सोमसुत इति सोमऽसुतः। मयोभुव इति मयःऽभुवः। तत्। अश्विना। शृणुतम्। धिष्ण्या। युवम्॥१७॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 17
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে (অশ্বিনা) অধ্যাপক ও উপদেশকগণ! (ধিষ্ণ্যা) ভূমি সমান ধারকগণ (য়ুবম্) তোমরা উভয়ে আমরা যাহা পড়িয়াছি তাহাকে (শৃনুতম্) শ্রবণ কর যেমন (নঃ) আমাদিগের জন্য (বাতঃ) পবন (তৎ) সেই (ময়োভু) সুখদায়ক (ভেষজম্) ওষধির (বাতু) প্রাপ্তি করুক্ (তৎ) সেই ওষধিকে (মাতা) মান্য দাত্রী (পৃথিবী) বিস্তারযুক্ত ভূমি তথা (তৎ) তাহাকে (পিতা) পালনের হেতু (দ্যৌঃ) সূর্য্যমণ্ডল প্রাপ্ত করে তথা (তৎ) তাহাকে (সোমসুতঃ) ঔষধি ও ঐশ্বর্য্যকে উৎপন্ন করিবার এবং (ময়োভুবঃ) সুখের ভাবনাকারক (গ্রাবাণঃ) মেঘ প্রাপ্ত করে (তৎ) এই সমস্ত ব্যবহার তোমাদের জন্যও হউক ॥ ১৭ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যাহার পৃথিবীর সমান মাতা এবং সূর্য্যের সমান পিতা হয় সে সব দিক দিয়া কুশলী সুখী হইয়া সকলকে নীরোগ ও চতুর করে ॥ ১৭ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - তন্নো॒ বাতো॑ ময়ো॒ভু বা॑তু ভেষ॒জং তন্মা॒তা পৃ॑থি॒বী তৎপি॒তা দ্যৌঃ ।
    তদ্গ্রাবা॑ণঃ সোম॒সুতো॑ ময়ো॒ভুব॒স্তদ॑শ্বিনা শৃণুতং ধিষ্ণ্যা য়ু॒বম্ ॥ ১৭ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - তন্ন ইত্যস্য গোতম ঋষিঃ । বায়ুর্দেবতা । ভুরিক্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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