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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 33
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - यज्ञो देवता छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    यदूव॑ध्यमु॒दर॑स्याप॒वाति॒ यऽआ॒मस्य॑ क्र॒विषो॑ ग॒न्धोऽअस्ति॑।सु॒कृ॒ता तच्छ॑मि॒तारः॑ कृण्वन्तू॒त मेध॑ꣳ शृत॒पाकं॑ पचन्तु॥३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। ऊव॑ध्यम्। उ॒दर॑स्य। अ॒प॒वातीत्य॑प॒ऽवाति॑। यः। आ॒मस्य॑। क्र॒विषः॑। ग॒न्धः। अस्ति॑। सु॒कृ॒तेति॑ सुऽकृ॒ता। तत्। श॒मि॒तारः॑। कृ॒ण्व॒न्तु॒। उ॒त। मेध॑म्। शृ॒त॒पाक॒मिति॑ शृत॒ऽपाक॑म्। प॒च॒न्तु॒ ॥३३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदूवध्यमुदरस्यापवाति यऽआमस्य क्रविषो गन्धोऽअस्ति । सुकृता तच्छमितारः कृण्वन्तूत मेधँ शृतपाकम्पचन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। ऊवध्यम्। उदरस्य। अपवातीत्यपऽवाति। यः। आमस्य। क्रविषः। गन्धः। अस्ति। सुकृतेति सुऽकृता। तत्। शमितारः। कृण्वन्तु। उत। मेधम्। शृतपाकमिति शृतऽपाकम्। पचन्तु॥३३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 33
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (উদরস্য) পেটের কোষ্ঠ হইতে যে (ঊবধ্যম্) মলীন মল (অপবাতি) বাহির হয় এবং (য়ঃ) যাহাতে (আমস্য) অপরিপক্ব (ক্রবিষঃ) ভক্ষিত পদার্থের (গন্ধঃ) গন্ধ (অস্তি) আছে (তৎ) তাহাকে (শমিতারঃ) শান্তিকারী অর্থাৎ আরামদায়ী (সুকৃতা) উত্তম সিদ্ধ (কৃবন্তু) করিবে (উত) এবং (মেধম্) পবিত্র (শৃতপাকম্) যাহার সুন্দর পাক হয় (পচন্তু) রন্ধন করিবে ॥ ৩৩ ॥

    भावार्थ - ভবার্থঃ–যাহারা যজ্ঞ করিতে ইচ্ছুক তাহারা দুর্গন্ধযুক্ত পদার্থ ত্যাগ করিয়া সুগন্ধি আদি যুক্ত সুন্দরতা পূর্বক রন্ধন করিয়া অগ্নিতে হোম করে, তাহারা জগতের হিতাকাঙ্ক্ষী হইয়া থাকে ॥ ৩৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়দূব॑ধ্যমু॒দর॑স্যাপ॒বাতি॒ য়ऽআ॒মস্য॑ ক্র॒বিষো॑ গ॒ন্ধোऽঅস্তি॑ ।
    সু॒কৃ॒তা তচ্ছ॑মি॒তারঃ॑ কৃণ্বন্তূ॒ত মেধ॑ꣳ শৃত॒পাকং॑ পচন্তু ॥ ৩৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়দূবধ্যমিত্যস্য গোতম ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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