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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 39
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    यदश्वा॑य॒ वास॑ऽउपस्तृ॒णन्त्य॑धीवा॒सं या हिर॑ण्यान्यस्मै।स॒न्दान॒मर्व॑न्तं॒ पड्वी॑शं प्रि॒या दे॒वेष्वा या॑मयन्ति॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्। अश्वा॑य। वासः॑। उ॒प॒स्तृ॒णन्तीत्यु॑पऽस्तृ॒णन्ति॑। अ॒धी॒वा॒सम्। अ॒धि॒वा॒समित्य॑धिऽवा॒सम्। या। हिर॑ण्यानि। अ॒स्मै॒। स॒न्दान॒मिति॑ स॒म्ऽदान॑म्। अर्व॑न्तम्। पड्वी॑शम्। प्रि॒या। दे॒वेषु॑। आ। या॒म॒य॒न्ति॒। य॒म॒य॒न्तीति॑ यमयन्ति ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदश्वाय वासऽउपस्तृणन्त्यधीवासँया हिरण्यान्यस्मै । सन्दानमर्वन्तम्पड्वीशम्प्रिया देवेष्वा यामयन्ति ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्। अश्वाय। वासः। उपस्तृणन्तीत्युपऽस्तृणन्ति। अधीवासम्। अधिवासमित्यधिऽवासम्। या। हिरण्यानि। अस्मै। सन्दानमिति सम्ऽदानम्। अर्वन्तम्। पड्वीशम्। प्रिया। देवेषु। आ। यामयन्ति। यमयन्तीति यमयन्ति॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 39
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! তোমরা (অস্মৈ) এই (অশ্বায়) অশ্বের জন্য (য়ৎ) যে (বাসঃ) বস্ত্র (অধীবাসম্) উপরে স্থাপন করিবার বস্ত্র (সন্দানম্) শিরোবন্ধনাদি এবং (য়াঃ) যে সব (হিরণ্যানি) সুবর্ণ নির্মিত আভূষণগুলিকে (উপস্তৃণন্তি) আচ্ছাদন কর অথবা যে (পড্বীশম্) পদ দ্বারা প্রবেশ করে এবং (অর্বন্তম্) গমনশীল অশ্বকে (আ, য়াময়ন্তি) উত্তম প্রকার নিয়মে রাখ সেই সব পদার্থ ও কর্ম্ম (দেবেষু) বিদ্বান্দিগের মধ্যে (প্রিয়া) প্রীতিদায়ক হউক ॥ ৩ঌ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–যে মনুষ্য অশ্বাদি পশুগুলির যথাবৎ রক্ষা করিয়া উপকার লইবে তাহা হইলে বহু কার্য্যের সিদ্ধি দ্বারা উপকারযুক্ত হইবে ॥ ৩ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - য়দশ্বা॑য়॒ বাস॑ऽউপস্তৃ॒ণন্ত্য॑ধীবা॒সং য়া হির॑ণ্যান্যস্মৈ ।
    স॒ন্দান॒মর্ব॑ন্তং॒ পড্বী॑শং প্রি॒য়া দে॒বেষ্বা য়া॑ময়ন্তি ॥ ৩ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - য়দশ্বায়েত্যস্য গোতম ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । বিরাট্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
    পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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