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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - इन्द्रादयो देवताः छन्दः - भुरिक् कृतिः स्वरः - निषादः
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    म॒शका॒न् केशै॒रिन्द्र॒ स्वप॑सा॒ वहे॑न॒ बृह॒स्पति॑ꣳशकुनिसा॒देन॑ कू॒र्म्माञ्छ॒फैरा॒क्रम॑ण स्थू॒राभ्या॑मृ॒क्षला॑भिः क॒पिञ्ज॑लाञ्ज॒वं जङ्घा॑भ्या॒मध्वा॑नं बा॒हुभ्यां॒ जाम्बी॑ले॒नार॑ण्यम॒ग्निम॑ति॒रुग्भ्यां॑ पू॒षणं॑ दो॒र्भ्याम॒श्विना॒वꣳ सा॑भ्या रु॒द्रꣳ रोरा॑भ्याम्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒शका॑न्। केशैः॑। इन्द्र॑म्। स्वप॒सेति॑ सु॒ऽअप॑सा। वहे॑न। बृह॒स्पति॑म्। श॒कु॒नि॒सा॒देनेति॑ शकुनिऽसा॒देन॑। कू॒र्मान्। श॒फैः। आ॒क्रम॑णमित्या॒ऽक्रम॑णम्। स्थू॒राभ्या॑म्। ऋ॒क्षला॑भिः। क॒पिञ्ज॑लान्। ज॒वम्। जङ्घा॑भ्याम्। अध्वा॑नम्। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। जाम्बी॑लेन। अ॒ग्निम्। अ॒ति॒रुग्भ्या॒मित्य॑ति॒रुग्ऽभ्या॑म्। पूषण॑म्। दो॒र्भ्यामिति॑ दोः॒ऽभ्याम्। अ॒श्विनौ॑। अꣳसा॑भ्याम्। रु॒द्रम्। रोरा॑भ्याम् ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मशकान्केशैरिन्द्रँ स्वपसा वहेन बृहस्पतिँ शकुनिसादेन कूर्माञ्छपैराक्रमनँ स्थूराभ्यामृक्षलाभिः कपिञ्जलान्जवञ्जङ्घाभ्यामध्वानम्बाहुभ्याञ्जाम्बीलेनारण्यमग्निमतिरुग्भ्याम्पूषणन्दोर्भ्यामश्विनावँसाभ्याँ रुद्रँ रोराभ्याम्॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मशकान्। केशैः। इन्द्रम्। स्वपसेति सुऽअपसा। वहेन। बृहस्पतिम्। शकुनिसादेनेति शकुनिऽसादेन। कूर्मान्। शफैः। आक्रमणमित्याऽक्रमणम्। स्थूराभ्याम्। ऋक्षलाभिः। कपिञ्जलान्। जवम्। जङ्घाभ्याम्। अध्वानम्। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। जान्बीलेन। अग्निम्। अतिरुग्भ्यामित्यतिरुग्ऽभ्याम्। पूषणम्। दोर्भ्यामिति दोःऽभ्याम्। अश्विनौ। अꣳसाभ्याम्। रुद्रम्। रोराभ्याम्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 3
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! তোমরা (কেশৈঃ) শিরের কেশ দ্বারা (ইন্দ্রম্) ঐশ্বর্য্যকে (শকুনিসাদেন) যদ্দ্বারা পক্ষিকুলকে স্থির করায় সেই ব্যবহার দ্বারা (কূর্মান্) কচ্ছপ এবং (মশকান্) মশককে (স্বপসা) উত্তম কর্ম এবং (বহেন) প্রাপ্তি করানোর দ্বারা (বৃহস্পতিম্) বৃহৎ বাণীর স্বামী বিদ্বান্কে (স্থূরাভ্যাম্) স্থূল (ঋক্ষলাভিঃ) চলন এবং গ্রহণ করা আদি ক্রিয়াগুলির দ্বারা (কপিঞ্জলান্) কপিঞ্জল নামক পক্ষীদেরকে (জঙ্ঘাভ্যাম্) জঙ্ঘাগুলির দ্বারা (অধ্বানম্) মার্গ এবং (জবম্) বেগকে (অংসাভ্যাম্) ভুজদের মূল অর্থাৎ বগল (বাহুভ্যাম্) ভুজগুলি এবং (শফৈঃ) ক্ষুরগুলির দ্বারা (আক্রমণম্) আক্রমণকে (জাম্বীলেন) জামাদি ফল দ্বারা (অরণ্যম্) বন এবং (অগ্নিম্) অগ্নিকে (অতিরুগ্ভ্যাম্) অতীব রুচি প্রীতি ও ইচ্ছা দ্বারা (পূষণম্) পুষ্টিকে তথা (দোর্ভ্যাম্) ভুজদণ্ড দ্বারা (অশ্বিনৌ) প্রজা ও রাজাকে প্রাপ্ত হও এবং (রোরাভ্যাম্) কথন শ্রবণ দ্বারা (রুদ্রম্) রোদন করায় যে তাহাকে প্রাপ্ত হও ॥ ৩ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, বহু উপায় দ্বারা উত্তম গুণগুলির প্রাপ্তি ও বিঘ্নকে নিবারণ করুক ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ম॒শকা॒ন্ কেশৈ॒রিন্দ্র॒ᳬं স্বপ॑সা॒ বহে॑ন॒ বৃহ॒স্পতি॑ꣳশকুনিসা॒দেন॑ কূ॒র্ম্মাঞ্ছ॒ফৈরা॒ক্রম॑ণᳬं স্থূ॒রাভ্যা॑মৃ॒ক্ষলা॑ভিঃ ক॒পিঞ্জ॑লাঞ্জ॒বং জঙ্ঘা॑ভ্যা॒মধ্বা॑নং বা॒হুভ্যাং॒ জাম্বী॑লে॒নার॑ণ্যম॒গ্নিম॑তি॒রুগ্ভ্যাং॑ পূ॒ষণং॑ দো॒র্ভ্যাম॒শ্বিনা॒বꣳসা॑ভ্যাᳬं রু॒দ্রꣳ রোরা॑ভ্যাম্ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - মশকানিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । ইন্দ্রাদয়ো দেবতাঃ । ভুরিক্কৃতিশ্ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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