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यजुर्वेद अध्याय - 25

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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 3
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - इन्द्रादयो देवताः छन्दः - भुरिक् कृतिः स्वरः - निषादः
    534

    म॒शका॒न् केशै॒रिन्द्र॒ स्वप॑सा॒ वहे॑न॒ बृह॒स्पति॑ꣳशकुनिसा॒देन॑ कू॒र्म्माञ्छ॒फैरा॒क्रम॑ण स्थू॒राभ्या॑मृ॒क्षला॑भिः क॒पिञ्ज॑लाञ्ज॒वं जङ्घा॑भ्या॒मध्वा॑नं बा॒हुभ्यां॒ जाम्बी॑ले॒नार॑ण्यम॒ग्निम॑ति॒रुग्भ्यां॑ पू॒षणं॑ दो॒र्भ्याम॒श्विना॒वꣳ सा॑भ्या रु॒द्रꣳ रोरा॑भ्याम्॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒शका॑न्। केशैः॑। इन्द्र॑म्। स्वप॒सेति॑ सु॒ऽअप॑सा। वहे॑न। बृह॒स्पति॑म्। श॒कु॒नि॒सा॒देनेति॑ शकुनिऽसा॒देन॑। कू॒र्मान्। श॒फैः। आ॒क्रम॑णमित्या॒ऽक्रम॑णम्। स्थू॒राभ्या॑म्। ऋ॒क्षला॑भिः। क॒पिञ्ज॑लान्। ज॒वम्। जङ्घा॑भ्याम्। अध्वा॑नम्। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। जाम्बी॑लेन। अ॒ग्निम्। अ॒ति॒रुग्भ्या॒मित्य॑ति॒रुग्ऽभ्या॑म्। पूषण॑म्। दो॒र्भ्यामिति॑ दोः॒ऽभ्याम्। अ॒श्विनौ॑। अꣳसा॑भ्याम्। रु॒द्रम्। रोरा॑भ्याम् ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मशकान्केशैरिन्द्रँ स्वपसा वहेन बृहस्पतिँ शकुनिसादेन कूर्माञ्छपैराक्रमनँ स्थूराभ्यामृक्षलाभिः कपिञ्जलान्जवञ्जङ्घाभ्यामध्वानम्बाहुभ्याञ्जाम्बीलेनारण्यमग्निमतिरुग्भ्याम्पूषणन्दोर्भ्यामश्विनावँसाभ्याँ रुद्रँ रोराभ्याम्॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मशकान्। केशैः। इन्द्रम्। स्वपसेति सुऽअपसा। वहेन। बृहस्पतिम्। शकुनिसादेनेति शकुनिऽसादेन। कूर्मान्। शफैः। आक्रमणमित्याऽक्रमणम्। स्थूराभ्याम्। ऋक्षलाभिः। कपिञ्जलान्। जवम्। जङ्घाभ्याम्। अध्वानम्। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। जान्बीलेन। अग्निम्। अतिरुग्भ्यामित्यतिरुग्ऽभ्याम्। पूषणम्। दोर्भ्यामिति दोःऽभ्याम्। अश्विनौ। अꣳसाभ्याम्। रुद्रम्। रोराभ्याम्॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यूयं केशैरिन्द्रं शकुनिसादेन कूर्मान् मशकान् स्वपसा वहेन बृहस्पतिं स्थूराभ्यामृक्षलाभिः कपिञ्जलाञ्जङ्घाभ्यामध्वानं जवमंसाभ्यां बाहुभ्यां शफैराक्रमणं जाम्बीलेनारण्यमग्निमतिरुग्भ्यां पूषणं दोर्भ्यामश्विनौ प्राप्नुत रोराभ्यां रुद्रं च॥३॥

    पदार्थः

    (मशकान्) (केशैः) शिरस्थैर्बालैः (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (स्वपसा) सुष्ठु कर्मणा (वहेन) प्रापणेन (बृहस्पतिम्) बृहत्या वाचः स्वामिनं विद्वांसम् (शकुनिसादेन) येन शकुनीन् सादयति तेन (कूर्मान्) कच्छपान् (शफैः) खुरैः (आक्रमणम्) (स्थूराभ्याम्) स्थूलाभ्याम् (ऋक्षलाभिः) गत्यादानैः (कपिञ्जलान्) पक्षिविशेषान् (जवम्) वेगम् (जङ्घाभ्याम्) (अध्वानम्) मार्गम् (बाहुभ्याम्) भुजाभ्याम् (जाम्बीलेन) फलविशेषेण (अरण्यम्) वनम् (अग्निम्) पावकम् (अतिरुग्भ्याम्) रुचीच्छाभ्याम् (पूषणम्) पुष्टिम् (दोर्भ्याम्) भुजदण्डाभ्याम् (अश्विनौ) प्रजाराजानौ (अंसाभ्याम्) भुजमूलाभ्याम् (रुद्रम्) रोदयितारम् (रोराभ्याम्) कथनश्रवणाभ्याम्॥३॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्बहुभिरुपायैरुत्तमा गुणाः प्रापणीया विघ्नाश्च निवारणीयाः॥३॥

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    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    सपदार्थान्वयः

    हे मनुष्या यूयं केशैरिन्द्रं शकुनिसादेन कूर्मान् मशकान् स्वपसा वहेन बृहस्पतिं स्थूराभ्यामृक्षलाभिः कपिञ्जलाञ् जङ्घाभ्यामध्वानं जवमंसाभ्यां बाहुभ्याम् शफैराक्रमणं जाम्बीलेनारण्यमग्निमतिरुग्भ्यां पूषणं दोर्म्यामश्विनौ प्राप्नुत रोराभ्यां रुद्रं च ॥ ३ ॥ सपदार्थान्वयः--हे मनुष्याः ! यूयं केशैः शिरस्थैर्बालैः इन्द्रम् ऐश्वर्यं, शकुनिसादेन येन शकुनीन् सादयति तेन कूर्मान् कच्छपान् मशकान्, स्वपसा सुष्ठुकर्मणावहेन प्रापणेन बृहस्पतिं बृहत्या वाचः स्वामिनं विद्वांसं, स्थूराभ्यां स्थूलाभ्याम् ऋक्षलाभिः गत्यादानैः कपिञ्जलान्, पक्षिविशेषान्,जङ्घाभ्यामध्वानं मार्गंजवं वेगम्,अंसाभ्यां भुजमूलाभ्यां बाहुभ्यां भुजाभ्यां शफैः खुरैः आक्रमणं, जाम्बीलेन फलविशेषेण अरण्यं वनम् अग्निं पावकम्, अतिरुग्भ्यां रुचीच्छाभ्यां पूषणं पुष्टिं, दोर्भ्यां भुजदण्डाभ्याम् अश्विनौ प्रजाराजानौ प्राप्नुत;रोराभ्यां कथनश्रवणाभ्यां रुद्रं रोदयितारंच॥ २५ । ३ ॥

    पदार्थः

    (मशकान्) (केशै:) शिरस्थैर्बालैः (इन्द्रम्) ऐश्वर्यम् (स्वपसा) सुष्ठुकर्मणा (वहेन) प्रापणेन (बृहस्पतिम्) बृहत्या वाचः स्वामिनं विद्वांसम् (शकुनिसादेन) येन शकुनीन्सादयति तेन (कूर्मान्) कच्छपान् (शफैः:) खुरै: (आक्रमणम्) (स्थूराभ्याम्) स्थूलाभ्याम् (ऋक्षलाभिः) गत्यादानैः (कपिञ्जलान्) पक्षिविशेषान् (जवम्) वेगम् (जङ् घाभ्याम्) (अध्वानम्) मार्गम् (बाहुभ्याम्) भुजाभ्याम् (जाम्बीलेन) फलविशेषेण (अरण्यम्) वनम् (अग्निम्) पावकम् (अतिरुग्भ्याम्) रुचीच्छाभ्याम् (पूषणम्) पुष्टिम् (दोर्भ्याम्) भुजदण्डाभ्याम् (अश्विनौ) प्रजाराजानौ (अंसाभ्याम्) भुजमूलाभ्याम् (रुद्रम्) रोदयितारम् (रोराभ्याम्) कथनश्रवणाभ्याम् ॥३॥

    भावार्थः

    मनुष्यैर्बहुभिरुपायैरुत्तमा गुणा: प्रापणीया, विघ्नाश्च निवारणीयाः ॥ २५ । ३ ॥

    विशेषः

    प्रजापतिः । इन्द्रादयः=ऐश्वर्यादयः। भुरिक्कृतिः । निषादः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो (केशैः) शिर के बालों से (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को (शकुनिसादेन) जिससे पक्षियों को स्थिर कराता उस व्यवहार से (कूर्मान्) कछुओं और (मशकान्) मशकों को (स्वपसा) उत्तम काम और (वहेन) प्राप्ति कराने से (बृहस्पतिम्) बड़ी वाणी के स्वामी विद्वान् को (स्थूराभ्याम्) स्थूल (ऋक्षलाभिः) चाल और ग्रहण करने आदि क्रियाओं से (कपिञ्जलान्) कपिञ्जल नामक पक्षियों को (जङ्घाभ्याम्) जङ्घाओं से (अध्वानम्) मार्ग और (जवम्) वेग को (अंसाभ्याम्) भुजाओं के मूल अर्थात् बगलों (बाहुभ्याम्) भुजाओं और (शफैः) खुरों से (आक्रमणम्) चाल को (जाम्बीलेन) जमुनी आदि के फल से (अरण्यम्) वन और (अग्निम्) अग्नि को (अतिरुग्भ्याम्) अतीव रुचि, प्रीति और इच्छा से (पूषणम्) पुष्टि को तथा (दोर्भ्याम्) भुजदण्डों से (अश्विनौ) प्रजा और राजा को प्राप्त होओ और (रोराभ्याम्) कहने-सुनने से (रुद्रम्) रुलानेहारे को प्राप्त होओ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये कि बहुत उपायों से उत्तम गुणों की प्राप्ति और विघ्नों की निवृति करें॥३॥

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    विषय

    बाह्य जगत् की शक्तियों की देहगत शक्तियों से तुलना।

    भावार्थ

    राष्ट्र में स्थित (मशकान् ) मशक, मच्छर आदि क्षुद्र जन्तुओं की शरीर में स्थित (केशैः) केशों से तुलना करे । (वहेन स्वपसा) उत्तम कर्म करने और भार उठाने में समर्थ स्कन्ध देश से ( इन्द्रम् ) राष्ट्र के इन्द्र या मुख्य राजा की तुलना करो, (शकुनिसादेन) पक्षी या शक्तिशाली पुरुष के समान पैर जमाकर बैठने की शक्ति से (बृहस्पतिम् ) राष्ट्र के बृहस्पति पद, महामात्य की तुलना करो। (शफैः कूर्मान्) पैर के खुरों से राष्ट्र के कूर्मों या क्रियाशील पुरुषों की लतुना करो ( स्थूराभ्याम् आक्रमणम् ) स्थूल चूतड़ों से राष्ट्र के दूसरे राष्ट्र पर आक्रमण कर उसे दबा बैठने की तुलना करो । अर्थात् जैसे मनुष्य चूतड़ों से आसन पर बैठ जाता है और उस जगह को घेर लेता है उसी प्रकार एक राष्ट्र दूसरे पर आक्रमण करके उसे अपने वश कर लेता है । (ऋक्षलाभिः कपिञ्जलान् ) चूतड़ के नीचे की नाड़ियों से राष्ट्र में विद्यमान कपिञ्जल अर्थात् उत्तम उपदेश देने वाले विद्वानों की तुलना करो । ( जङ्घाभ्याम् जवम् ) शरीर के जंघाओं से राष्ट्र के वेग के कार्यों की तुलना करो । ( बाहुभ्याम् अध्वानम् ) शरीर के हाथों से राष्ट्र के मार्ग की तुलना करो । ( जाम्बीलेन अरण्यम् ) गाड़ी के नीचे भाग से राष्ट्र के जंगल भाग की तुलना करो । ( अतिरुग्भ्याम् अग्निम् ) अति दीप्तिवाले सुन्दर दोनों जानु भागों से राष्ट्र के 'अग्नि' अग्रणी पद की तुलना करो । ( दोर्भ्यां पूषणम् ) बाहुओं से राष्ट्र के पूषा नामक अधिकारी की तुलना करो । ( अंसाभ्याम् अश्विनौ) कन्धों से 'अश्वी ' नामक दो मुख्य अधिकारियों की तुलना करो। (रोराभ्यां रुद्रम् ) कन्धों की गांठों से रुद्र नामक अधिकारी की तुलना करो । अथवा- ( केशैः मशकान् ) बालों की चौंभरियों से जिस प्रकार मच्छरों को दूर किया जाता है उसी प्रकार मच्छर के स्वभाव के दुखदायी जीवों को ( केशैः = क्लेशैः ) क्लेशदायी साधनों से विनष्ट करो | ( स्वपसा ) उत्तम कर्म और प्रजा से ( इन्द्रम् ) आत्मा और ऐश्वर्यवान् परमेश्वर को प्राप्त करो । ( वहेन ) उत्तम प्राप्ति के साधन रथादि से (बृहस्पतिम् ) बृहती वेद वाणी के पालक आचार्य, या बड़े राष्ट्र के पालक राजा को मानपूर्वक प्राप्त करो । ( शकुनिसादेन ) पक्षियों को पकड़ने के साधन जाल से ही कूर्म जाति के जन्तुओं को 'जल में पकड़ा जाता है उसी प्रकार प्रलोभन दिखा कर ( कूर्मान् ) कर्म करनेवाले योग्य पुरुषों को वश करों । ( शफैः आक्रमणम् ) खुरों से जिस प्रकार वेग से आक्रमण किया जाता है इसी प्रकार वेगवान् साधनों से आक्रमण करो। (स्थूराभ्यां जंघाभ्यां जवम् ) हृष्ट-पुष्ट जंघाओं से वेगपूर्वक गमन करो। (ऋक्षलाभिः कपिञ्जलान् ) 'ऋक्षरा' अर्थात् कपाटिकाओं से जिस प्रकार गौरैया जैसे छोटे-छोटे पक्षियों को पकड़ा जाता है उसी प्रकार 'ऋक्षरा' अर्थात् सत्य- प्रसारक विद्वानों की धार्मिक और ज्ञानप्रसारक वृत्तियों द्वारा उत्तम उपदेश देने वाले विद्वानों को प्राप्त करो । ( जंघाभ्याम् अध्वानम् ) जांघों से ही मार्ग को तय करो । ( जाम्बीलेन अरण्यम् ) जम्बीर जाति के कांटेदार वृक्षों से जंगल को पूर्ण करो । ( अतिरुग्भ्याम् पूषणं अग्निम् ) रुचि और पुष्टिकारक अन्न को और दीप्ति से अग्नि को प्राप्त करो। (दोर्भ्यां अंसाभ्याम्) बाहुओं और कन्धों से (अश्विनौ) राजा और प्रजा को प्राप्त करो । अर्थात् राजा अपने बाहुओं के बल को वश करे और प्रजाएं अपने कन्धों से राजा का वहन करें। (रोराभ्याम् ) श्रवण और उपदेश द्वारा ( रुद्रम् ) विद्वान् उपदेशक को प्राप्त करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    इन्द्रादयः । भुरिककृति: । निषादः ।

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    विषय

    किससे क्या करना चाहिए, यह फिर उपदेश किया है॥

    भाषार्थ

    हे मनुष्यो ! तुम--(केशै:) शिर के बालों से (इन्द्रम्) ऐश्वर्य को, (शकुनिसादेन) पक्षियों को प्राप्त करने के साधन से (कूर्मान्) कछुओं को तथा (मशकान्) मच्छरों को (स्वपसा) उत्तम कर्म एवं (वहेन) देशान्तर में पहुँचाने वाले यान से (बृहस्पतिम्) वाणी के स्वामीविद्वान् को, (स्थूराभ्याम्) स्थूल गुल्फों एवं (ऋक्षलाभिः) गति के आदान- स्वीकार से (कपिञ्जलान्) कपिञ्जल नामक पक्षियों को, (जंघाभ्याम्) जंघाओं से (अध्वानम्) मार्ग एवं (जवम्) वेग को; (अंसाभ्याम्) कंधों, (बाहुभ्याम्) भुजाओं तथा (शफैः) खुरों से (आक्रमणम्) आक्रमण को; (जाम्बीलेन) चकोतरा नामक फल विशेष से (अरण्यम्) वन को, (अतिरुग्भ्याम्) रुचि और इच्छा से (पूषणम्) पुष्टि को, (दोर्भ्याम्) हाथों से (अश्विनी) प्रजा और राजा को प्राप्त करो; और (रोराभ्याम् ) कहने और सुनने से (रुद्रम्) रुलाने वाले विघ्न को दूर करो ॥ २५ । ३ ॥

    भावार्थ

    सब मनुष्य बहुत उपायों से उत्तम गुणों को प्राप्त करें और विघ्नों का निवारण करें ॥ २५ । ३ ॥

    भाष्यसार

    -सब मनुष्य--शिर के बालों से ऐश्वर्य को, पक्षियों को प्राप्त करने योग्य साधन से कछुओं एवं मच्छरों को, उत्तम कर्म की प्राप्ति से वाणी के स्वामी विद्वान् को, गति-विज्ञानों से कपिञ्जल नामक पक्षियों को, जंघाओं से मार्ग एवं वेग को, दोनों कन्धों, भुजाओं और खुरों से आक्रमण को, जाम्बील=चकोतरा नामक फल से वन और अग्नि को, रुचि और इच्छा से पुष्टि को, हाथों से राजा और प्रजा को प्राप्त करें। कहने-सुनने से रोने वाले को शान्त करें। मनुष्य नाना उपायों से उत्तम गुणों को प्राप्त करें और विघ्नों का निवारण करें ॥ २५ । ३ ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    माणसांनी पुष्कळ उपाय योजून उत्तम गुणांची प्राप्ती करून घ्यावी व विघ्ने नाहीशी करावीत.

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    विषय

    पुन्हा, त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (तुम्ही खाली सांगितलेल्या पशु, प्राणी वा वस्तू द्वारे त्या त्या गुणांना प्राप्त करा) (केशैः) डोक्यावरच्या केसांनी (इन्द्रम्) ऐश्‍वर्य प्राप्त करा (शकुनिसादेन) पक्ष्यांना वश करण्याच्या तंत्राने (कूर्मान्) कासवांना आणि (मशकान्) डासांना वश करा. (स्वपसा) उत्तम कर्माद्वारे आणि (वहेन) प्राप्तीच्या साधनाने (बृहस्पतिम्) वाणीच्या स्वामी वाग्मी विद्वानाला अनुकूल करा. (स्थूराभ्याम्) मोठ्याना सर्वज्ञात (ऋक्षलाभिः) चालणे-वागणे आदी क्रियांद्वारे (कपिञ्जलान्) कपिंजल नावाच्या पक्ष्यांना आणि (जङ्घाभ्याम) दोन्ही जंघाद्वारे (अध्वानम्) मार्गाक्रमण आणि (वेगम्) वेगाने चालणे साध्य करून घ्या (अंकाभ्याम्) दोन्ही बाहूंचे मूल उद्गम स्थान म्हणजे बगला (काखा) द्वारे आणि (बाहुभ्याम्) बाहूद्वारे तसेच (शकैः) खुरांद्वारे (आक्रमणम्) शत्रूवर आक्रमण वा मार्ग-आक्रमण साध्य करून घ्या. (जाम्बीलेन) जांभूळ आदी फळांनी (आण्यम्) वन आणि (अग्निम्) अग्नीला परिपूर्ण करा (वन-उपवनात फळझाडें लावा) (अतिरुग्भ्याम्) अत्यंत आवडीने आणि प्रेमाने (पूषणम्) स्वतःला स्वस्थ शक्तीशाली ठेवा. (दोर्भ्याम) भुजदंडाद्वारे (अश्‍विनौ) राजा आणि प्रजेला आपलेसे वा सहाय्यक करा आणि (रोराभ्याम्) ऐकणे-ऐकविणे-सांगणे आदीद्वारे (रूद्रम्) दुष्टला रडविणार्‍या वीराला जवळ करा. आपले मित्र करा. ॥3॥

    भावार्थ

    भावार्थ - मनुष्यांनी अनेक विविध प्रयत्नांद्वारे सद्गुणांची प्राप्ती आणि विघ्नांचे निवारण करावे. ॥3॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Keep mosquitoes away with the whisk of hair. Realise soul and God through noble deeds. Approach the learned preceptor in a conveyance. Utilise the services of the learned with the allurement of money. Make an attack with full force. Finish journey with stout thighs. Get learned preachers by arranging for their livelihood. Develop speed with arms. Grow fruitful thorny jambir trees in the forest. Kindle fire with care and desire. Get strength through the exercise of arms, Serve the king and subjects with arms and shoulders. Honour a preacher by patient hearing of his sermons.

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    Meaning

    Ward off mosquitoes and insects with hair. Achieve the power and greatness of Indra with hard work and great action. Reach Brihaspati, great lord of knowledge and wisdom, by the ordeal of fire and patience. Get to the tortoise and the earth with the speed of the eagle. Shoot to the target on the hoofs of a horse and power of arms. Get to the kapinjala birds by stout action and double speed. Get to speed and cover the road with strong legs. Get to the forest with the grape fruit. Get to Agni, fire, by will and desire, to Pusha, good health, by strong arms, to Ashvins, ruler and people, by strong shoulders, and to Rudra, power of justice, by listening and discussion.

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    Translation

    Mosquitoes are associated with the hair, resplendence with the active shoulder, supremacy with the bird- like jump, tortoises with the hoofs; the approach with the fetlocks; the kapinjala bird with the veins below the ankle-bone; the speed with the shanks, path with the forelegs; the forest with the knee-pan; adoration with the knees, sustenance with the shoulders and punishment with the shoulder-joints. (1)

    Notes

    Indram, resplendence. Svapasă, active. Vahena, with the shoulder. Brhaspătim, supremacy. Śakunisadena, with a bird-like jump. Akramaṇam, approach. Sthūrābhyām, fetlocks, गुल्फाभ्याम् । Rkşalābhih, गुल्फाधस्था नाड्यः ऋक्षलाः, veins or nerves below the ankle-bone. Bāhubhyām, with the forelegs. Jambilena, जाम्बीरं तन्नामकं फलं, तत्सदृशेन शरीरभागेन, रलयोरभेद:, jāmbīra is a certain fruit, the part of the body resem bling that fruit. Ra and la are interchangeable. So it means the knee-pan. Agnim, adoration. Atirugbhyam, अतिरुचौ जानुदेशौ, the two knees. Pūṣaṇam, nourishment. Dorbhyām, with two forefeet. Aśvinau, sustenance. Rudram, punishment.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! তোমরা (কেশৈঃ) শিরের কেশ দ্বারা (ইন্দ্রম্) ঐশ্বর্য্যকে (শকুনিসাদেন) যদ্দ্বারা পক্ষিকুলকে স্থির করায় সেই ব্যবহার দ্বারা (কূর্মান্) কচ্ছপ এবং (মশকান্) মশককে (স্বপসা) উত্তম কর্ম এবং (বহেন) প্রাপ্তি করানোর দ্বারা (বৃহস্পতিম্) বৃহৎ বাণীর স্বামী বিদ্বান্কে (স্থূরাভ্যাম্) স্থূল (ঋক্ষলাভিঃ) চলন এবং গ্রহণ করা আদি ক্রিয়াগুলির দ্বারা (কপিঞ্জলান্) কপিঞ্জল নামক পক্ষীদেরকে (জঙ্ঘাভ্যাম্) জঙ্ঘাগুলির দ্বারা (অধ্বানম্) মার্গ এবং (জবম্) বেগকে (অংসাভ্যাম্) ভুজদের মূল অর্থাৎ বগল (বাহুভ্যাম্) ভুজগুলি এবং (শফৈঃ) ক্ষুরগুলির দ্বারা (আক্রমণম্) আক্রমণকে (জাম্বীলেন) জামাদি ফল দ্বারা (অরণ্যম্) বন এবং (অগ্নিম্) অগ্নিকে (অতিরুগ্ভ্যাম্) অতীব রুচি প্রীতি ও ইচ্ছা দ্বারা (পূষণম্) পুষ্টিকে তথা (দোর্ভ্যাম্) ভুজদণ্ড দ্বারা (অশ্বিনৌ) প্রজা ও রাজাকে প্রাপ্ত হও এবং (রোরাভ্যাম্) কথন শ্রবণ দ্বারা (রুদ্রম্) রোদন করায় যে তাহাকে প্রাপ্ত হও ॥ ৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, বহু উপায় দ্বারা উত্তম গুণগুলির প্রাপ্তি ও বিঘ্নকে নিবারণ করুক ॥ ৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ম॒শকা॒ন্ কেশৈ॒রিন্দ্র॒ᳬं স্বপ॑সা॒ বহে॑ন॒ বৃহ॒স্পতি॑ꣳশকুনিসা॒দেন॑ কূ॒র্ম্মাঞ্ছ॒ফৈরা॒ক্রম॑ণᳬं স্থূ॒রাভ্যা॑মৃ॒ক্ষলা॑ভিঃ ক॒পিঞ্জ॑লাঞ্জ॒বং জঙ্ঘা॑ভ্যা॒মধ্বা॑নং বা॒হুভ্যাং॒ জাম্বী॑লে॒নার॑ণ্যম॒গ্নিম॑তি॒রুগ্ভ্যাং॑ পূ॒ষণং॑ দো॒র্ভ্যাম॒শ্বিনা॒বꣳসা॑ভ্যাᳬं রু॒দ্রꣳ রোরা॑ভ্যাম্ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    মশকানিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । ইন্দ্রাদয়ো দেবতাঃ । ভুরিক্কৃতিশ্ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

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