यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 26
ए॒ष छागः॑ पु॒रोऽअश्वे॑न वा॒जिना॑ पू॒ष्णो भा॒गो नी॑यते वि॒श्वदे॑व्यः।अ॒भि॒प्रियं॒ यत्पु॑रो॒डाश॒मर्व॑ता॒ त्वष्टेदे॑नꣳ सौश्रव॒साय॑ जिन्वति॥२६॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः। छागः॑। पु॒रः। अश्वे॑न। वा॒जिना॑। पू॒ष्णः। भा॒गः। नी॒य॒ते॒। वि॒श्वदे॑व्य॒ इति॑ वि॒श्वऽदे॑व्यः॒। अ॒भि॒प्रिय॒मित्य॑भि॒ऽप्रिय॑म्। यत्। पु॒रो॒डाश॑म्। अर्व॑ता। त्वष्टा॑। इत्। ए॒नम्। सौ॒श्र॒व॒साय॑। जि॒न्व॒ति॒ ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष च्छागः पुरोऽअश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः । अभिप्रियँयत्पुरोडाशमर्वता त्वष्टेदेनँ सौश्रवसाय जिन्वति ॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः। छागः। पुरः। अश्वेन। वाजिना। पूष्णः। भागः। नीयते। विश्वदेव्य इति विश्वऽदेव्यः। अभिप्रियमित्यभिऽप्रियम्। यत्। पुरोडाशम्। अर्वता। त्वष्टा। इत्। एनम्। सौश्रवसाय। जिन्वति॥२६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
पुनः केन सह के पालनीया इत्याह॥
अन्वयः
विद्वद्भिर्य एष पुरो विश्वदेव्यः पूष्णो भागश्छागो वाजिनाऽश्वेन सह नीयते, यदभिप्रियं पुरोडाशमर्वता सह त्वष्टैनं सौश्रवसायेज्जिन्वति स सदा पालनीयः॥२६॥
पदार्थः
(एषः) (छागः) छेदकः (पुरः) पुरस्तात् (अश्वेन) (वाजिना) (पूष्णः) पोषकस्य (भागः) सेवनीयः (नीयते) प्राप्यते (विश्वदेव्यः) विश्वेषु सर्वेषु देवेषु साधु (अभिप्रियम्) सर्वतः कमनीयम् (यत्) यम् (पुरोडाशम्) (अर्वता) गंत्रा (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (इत्) (एनम्) पूर्वोक्तम् (सौश्रवसाय) शोभनं श्रवः कीर्त्तिर्यस्य स सुश्रवास्तस्य भावाय (जिन्वति) प्रीणाति॥२६॥
भावार्थः
यद्यश्वादिभिः सहान्यानजादीन् पशून् वर्धयेयुस्तर्हि ते मनुष्याः सुखमुन्नयेयुः॥२६॥
विषयः
पुनः केन सह के पालनीया इत्याह ॥
सपदार्थान्वयः
विद्वद्भिर्य एष पुरो विश्वदेव्यः पूष्णो भागश्छागो वाजिनाऽश्वेन सह नीयते यदभिप्रियं पुरोडाशमर्वता सह त्वष्टैनं सौश्रवसायेज्जिन्वति स सदा पालनीयः ॥ २६ ॥ सपदार्थान्वयः --विद्वद्भिर्य एषः पुरः पुरस्तात् विश्वदेव्यः विश्वेषु=सर्वेषु देवेषु साधुः पूष्णः पोषकस्य भागः सेवनीयः छागः छेदक: वाजिनाऽश्वेनसह नीयते प्राप्यते; यद् यम् अभिप्रियं सर्वतः कमनीयं पुरोडाशमर्वता गन्त्रा सह, त्वष्टा तनूकर्त्ता एवं पूर्वोक्तं सौश्रवसाय शोभनं श्रवः=कीर्त्तिर्यस्य स सुश्रवास्तस्य भावाय इज्जिन्वति प्रीणाति; स सदा पालनीयः ॥२५ । २६॥
पदार्थः
(एषः) (छागः) छेदक: (पुरः) पुरस्तात् (अश्वेन) (वाजिना) (पूष्णः) पोषकस्य (भागः) सेवनीयः (नीयते) प्राप्यते (विश्वदेव्यः) विश्वेषु=सर्वेषु देवेषु साधुः (अभिप्रियम्) सर्वतः कमनीयम् (यत्) यम् (पुरोडाशम्) (अर्वता) गन्त्रा (त्वष्टा) तनूकर्त्ता (इत्) (एनम्) पूर्वोक्तम् (सौश्रवसाय) शोभनं श्रवः=कीर्त्तिर्यस्य स सुश्रवास्तस्य भावाय (जिन्वति) प्रीणाति ॥ २६ ॥
भावार्थः
यद्यश्वादिभिः सहान्यानजादीन् पशून् वर्धयेयुस्तर्हि ते मनुष्याः सुखमुन्नयेयुः ॥ २५ । २६ ॥
विशेषः
गोतमः । यज्ञः=पशुपालनम् । निचृज्जगती । निषादः ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर किस के साथ कौन पालना करने योग्य हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
विद्वानों को चाहिये कि जो (एषः) यह (पुरः) प्रथम (विश्वदेव्यः) सब विद्वानों में उत्तम (पूष्णः) पुष्टि करने वाले का (भागः) सेवने योग्य (छागः) पदार्थों को छिन्न-भिन्न करता हुआ प्राणी (वाजिना) वेगवान् (अश्वेन) घोड़े के साथ (नीयते) प्राप्त किया जाता और (यत्) जिस (अभिप्रियम्) सब ओर से मनोहर (पुरोडाशम्) पुरोडाश नामक यज्ञभाग को (अर्वता) पहुंचाते हुए घोड़े के साथ (त्वष्टा) पदार्थों को सूक्ष्म करने वाला (एनम्) उक्त भाग को (सौश्रवसाय) उत्तम कीर्तिमान् होने के लिये (इत्) ही (जिन्वति) पाकर प्रसन्न होता है, वह सदैव पालने योग्य है॥२६॥
भावार्थ
यदि अश्वादिकों के साथ अन्य बकरी आदि पशुओं को बढ़ावें तो वे मनुष्य सुख की उन्नति करें॥२६॥
विषय
प्रधान वीरपुरुषों के कर्तव्य । पूषा के विश्वदेव्य भाग, छाग और उनका अश्व के साथ आगे चलने का रहस्य ।
भावार्थ
(यत्) जब (विश्वदेव्यः ) समस्त विजयी पुरुषों से, श्रेष्ठ, सब विद्वानों का हितकारी (एषः) यह (छागः) शत्रुओं का छेदन-भेदन करने हारा, राष्ट्र के भिन्न-भिन्न विभागों में बांटने वाला पुरुष ( वाजिना) ऐश्वर्य युक्त (अश्वेन) राष्ट्र के द्वारा ( पुरः) सबके आगे, सबसे प्रथम, (पूष्णः ) पूषा, सर्व राष्ट्रपोषक के पद को (भागः ) सेवन करने वाला ( नीयते) प्राप्त किया जाता है तब (त्वष्ट्रा इत्) त्वष्ट्रा, शत्रुनाशक सेनापति ही (अर्वता) व्यापक राष्ट्र के सहित विद्यमान, ( अभिप्रियम् ) सबको प्रिय लगने वाले ( पुरोडाशम् ) सबसे प्रथम देने योग्य पदाधिकार को ( सौश्रवसाय) उत्तम कीर्त्ति के लिये (जिन्वति ) पूर्ण करता या राजा को प्रदान करता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यज्ञः । निचृज्जगती । निषादः ॥
विषय
फिर किसके साथ कौन पालना करने योग्य है, इस विषय का उपदेश किया जाता है॥
भाषार्थ
विद्वानों से जो (एषः) यह (पुरस्तात्) प्रथम (विश्वदेव्यः) सब देवों में उत्तम, (पूष्ण:) पोषक पुरुष का (भागः) सेवनीय, (छाग:) बकरा (वाजिना) घोड़े के साथ (नीयते) प्राप्त किया जाता है; और (यत्) जिस (अभिप्रियम्) अत्यन्त प्रिय (पुरोडाशम्) पुरोडाश को (अर्वता) उक्त घोड़े के साथ (त्वष्टा) पदार्थों को सूक्ष्म करने वाला पुरुष (एनम्) इस पूर्वोक्त पुरोडाश को (सौश्रवसाय) उत्तम कीर्तिमान् होने के लिए (इत्) ही (जिन्वति) सेवन करता है; उसका सदा पालन करें ॥ २५ । २६ ॥
भावार्थ
यदि घोड़ों आदि के साथ अन्य बकरी आदि पशुओं को बढ़ावें तो वे मनुष्य सुख की उन्नति कर सकते हैं॥ २५ । २६ ॥
भाष्यसार
किस के साथ किन का पालन करें--विद्वान् लोग घोड़े आदि पशुओं के साथ सब देवों में श्रेष्ठ, पोषक पुरुष के लिए सेवनीय, दुःखों के छेदक बकरे आदि पशुओं का भी पालन करें। उक्त घोड़ों के साथ सब ओर से कमनीय पुरोडाश की भी रक्षा करें। पदार्थों को सूक्ष्म करने वाला त्वष्टा कीर्तिमान् होने के लिए पुरोडाश का सेवन करे तथा सुख को बढ़ावे ॥ २५ । २६ ॥
विषय
एष छागः=यह शत्रु छेदक
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार 'शुद्ध धन, शुद्ध अन्न' का सेवन करनेवाले के लिए कहते हैं कि (एषः छागः) = यह [छो छेदने] शत्रुओं का छेदन करनेवाला, (पूष्णे भागः) = पोषक अन्न का ही सेवन करनेवाला, [भज् सेवायाम्] (विश्वदेव्यः) = अपने में सब दिव्य गुणों को धारण करनेवाला मन्त्र का ऋषि 'गोतम' [प्रशस्त इन्द्रियोंवाला] (अश्वेन) = [ अश् व्याप्तौ ] सर्वत्र व्याप्त (वाजिना) = सर्वशक्तिसम्पन्न प्रभु से (पुरः नीयते) = आगे उन्नति पथ पर ले जाया जाता है। २. (अर्वता) = [अर्व हिंसायाम्] सब बुराइयों का संहार करनेवाले प्रभु से (यत्) = जब (प्रियम्) = तृप्ति व कान्ति को देनेवाले (पुरोडाशम्) = हुतशेष [Leavings of an oblation] की (अभि) = ओर [नीयते] ले जाया जाता है, अर्थात् यज्ञशेष का सेवन करने के लिए ही प्रेरित किया जाता है तब त्वष्टा यह देवशिल्पी अथवा [ त्विष् दीप्तौ] ज्ञान की दीप्तिवाला प्रभु - निश्चय से (एनम्) = इस हुतशेष [यज्ञशेष] का सेवन करनेवाले को (सौश्रवसाय) = उत्तम ज्ञान के लिए (जिन्वति) = प्रीणित करता है। उत्तम ज्ञान प्राप्त कराके उसे प्रसन्नता का लाभ कराता है। वस्तुतः यज्ञशेष का सेवन चित्तशुद्धि के लिए आवश्यक है। शुद्ध चित्त में ही ज्ञान का प्रकाश होता है। इत्
भावार्थ
भावार्थ- हम काम-क्रोधादि का छेदन करें, पोषक अन्न का सेवन करें, दिव्य गुणों की प्राप्ति हमारा लक्ष्य हो। ऐसा होने पर प्रभु हमारी उन्नति का कारण बनेंगे। हम यज्ञशेष का ही सेवन करेंगे तो ज्ञानदीप्त प्रभु हमें ज्ञान से प्रसादयुक्त करेंगे।
मराठी (2)
भावार्थ
जर अश्व वगैरे बरोबर शेळी इत्यादी इतर पशूंना बाळगले तर ती माणसे सुख वाढवितात.
विषय
कोणासह कोण पालन करण्यास पात्र आहे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - विद्वानांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी (एषाः) हा जो (पुरः) सर्वप्रथम वा प्रधान आणि (विश्वदेव्यः) सर्व विद्वानांपैकी उत्तम आणि (पूष्णः) सर्वांना शक्ती व प्रेरणा देणार्या विद्वानांचा (एषाः) हा जो (भागः) सेवनीय वा ग्रहणीय भाग (उपदेश आहे) त्याला ग्रहण करावे. (छागः) पदार्थांना छिन्न- विच्छिन्न करणारा प्राणी जो (एडका) त्याला लोक (वाजिना) वेगवान (अश्वेन) घोड्यासह (नीयंते) नेतात आणि (यत्) (अभिप्रियम्) सर्वतः) प्रिय (पुरोडाशम्) पुरोडाश नावाच्या यज्ञभागाला (अर्वतः) नेत नेत वा पुरोडाश नेणार्या घोड्यासही नेऊन माणूस प्रसन्न होतो) (त्वष्टा) पदार्थ सूक्ष्म करणार्या (एनम्) या यज्ञभागाला (सौश्रवाय) उत्तम कीर्ती प्राप्त करण्यासाठी (इत्) निश्चयाने (जिन्वति) प्राप्त करून आनंदित होतो तो प्राणी पाळण्यासाठी श्रेष्ठ आहे. ॥26॥
भावार्थ
भावार्थ - जर घोडा आदी पशूंसह लोक शेळी आदी पशूदेखील पाळतील, तर त्या पशूमुळे मनुष्यांचा अवश्यमेव उत्कर्ष होईल. ॥26॥
इंग्लिश (3)
Meaning
This perishable body made of earth, the home of all organs is created for the enjoyment of the soul. God, for the excellent enjoyment of this active soul, grants this enjoyable object.
Meaning
When this aggressive leader, distinguished among equals of divine quality and loved of Pusha (the President), is advanced to the front by the dynamic nation, then Tvashta, maker of men and nations, receives him as a lovely gift of national yajna and, alongwith the nation, refines him with sanctification for honour and glory.
Translation
A charming novice horse, representing the Commander, moves in the front line, and it is followed by the royal horse. The novice horse is put under the care of a skilled trainer, and provided with all facilities for receiving honours and glory in future. (1)
Notes
Chāgaḥ, the goat going before the Horse. Purodāśam, preliminary offering of well-cooked food-stuff; an offering of cake and butter, (literally, that which is to be of fered first).
बंगाली (1)
विषय
পুনঃ কেন সহ কে পালনীয়া ইত্যাহ ॥
পুনঃ কাহার সহিত কে পালন করিবার যোগ্য, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–বিদ্বান্দিগের উচিত যে, (এষঃ) এই (পুরঃ) প্রথম (বিশ্বদেব্যঃ) সকল বিদ্বান্দিগের মধ্যে উত্তম (পূষ্ণঃ) পুষ্টিকারীদিগের (ভাগঃ) সেবনীয় (ছাগঃ) পদার্থসমূহকে ছিন্ন-ভিন্ন করে যে প্রাণী (বাজিনা) বেগবান্ (অশ্বেন) অশ্ব সহ (নীয়তে) প্রাপ্ত করা হয় এবং (য়ৎ) যাহা (অভিপ্রিয়ম্) সকল দিক দিয়া মনোহর (পুরোডাশম্) পুরোডাশ নামক যজ্ঞভাগকে (অর্বতা) পৌঁছাইয়া অশ্বসহ (ত্বষ্টা) পদার্থগুলির সূক্ষ্মকারী (এনম্) উক্ত ভাগকে (সৌশ্রবসায়) উত্তম কীর্ত্তিমান হইবার জন্য (ইৎ) ই (জিন্বতি) পাইয়া প্রসন্ন হয় উহা সর্বদা পালনীয় ॥ ২৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যদি অশ্বাদি সহ অন্য অজাদি পশুসমূহকে বৃদ্ধি করিবে তাহা হইলে সেই সব মনুষ্য সুখের উন্নতি করিবে ॥ ২৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
এ॒ষ ছাগঃ॑ পু॒রোऽঅশ্বে॑ন বা॒জিনা॑ পূ॒ষ্ণো ভা॒গো নী॑য়তে বি॒শ্বদে॑ব্যঃ ।
অ॒ভি॒প্রিয়ং॒ য়ৎপু॑রো॒ডাশ॒মর্ব॑তা॒ ত্বষ্টেদে॑নꣳ সৌশ্রব॒সায়॑ জিন্বতি ॥ ২৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
এষ ইত্যস্য গোতম ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । নিচৃজ্জগতী ছন্দঃ ।
নিষাদঃ স্বরঃ ॥
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