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  • यजुर्वेद - अध्याय 25/ मन्त्र 6
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - मरुतादयो देवताः छन्दः - निचृदतिधृतिः स्वरः - षड्जः
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    म॒रुता॑ स्क॒न्धा विश्वे॑षां दे॒वानां॑ प्रथ॒मा कीक॑सा रु॒द्राणां॑ द्वि॒तीया॑ऽऽदि॒त्यानां॑ तृ॒तीया॑ वा॒योः पुच्छ॑म॒ग्नीषोम॑यो॒र्भास॑दौ॒ क्रुञ्चौ॒ श्रोणि॑भ्या॒मिन्द्रा॒बृह॒स्पती॑ऽऊ॒रुभ्यां॑ मि॒त्रावरु॑णाव॒ल्गाभ्या॑मा॒क्रम॑ण स्थू॒राभ्यां॒ बलं॒ कुष्ठा॑भ्याम्॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒रुता॑म्। स्क॒न्धाः। विश्वे॑षाम्। दे॒वाना॑म्। प्र॒थ॒मा। कीक॑सा। रु॒द्राणा॑म्। द्वि॒ताया॑। आ॒दि॒त्याना॑म्। तृ॒तीया॑। वा॒योः। पुच्छ॑म्। अ॒ग्नीषोम॑योः। भास॑दौ। क्रुञ्चौ॑। श्रोणि॑भ्या॒मिति॒ श्रोणि॑ऽभ्याम्। इन्द्रा॒बृह॒स्पती॒ इतीन्द्रा॒बृह॒स्पती॑। ऊ॒रुभ्या॒मित्यू॒रुऽभ्या॑म्। मि॒त्रावरु॑णौ। अ॒ल्गाभ्या॑म्। आ॒क्रम॑ण॒मित्या॒ऽक्रम॑णम्। स्थू॒राभ्या॑म्। बल॑म्। कुष्ठा॑भ्याम् ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुताँ स्कन्धा विश्वेषान्देवानाम्प्रथमा कीकसा रुद्राणान्द्वितीयादित्यानान्तृतीया वायोः पुच्छमग्नीषोमयोर्भासदौ क्रुञ्चौ श्रोणिभ्यामिन्द्राबृहस्पतीऽऊरुभ्याम्मित्रावरुणावल्गाभ्यामाक्रमणँ स्थूराभ्याम्बलं कुष्ठाभ्याम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मरुताम्। स्कन्धाः। विश्वेषाम्। देवानाम्। प्रथमा। कीकसा। रुद्राणाम्। द्विताया। आदित्यानाम्। तृतीया। वायोः। पुच्छम्। अग्नीषोमयोः। भासदौ। क्रुञ्चौ। श्रोणिभ्यामिति श्रोणिऽभ्याम्। इन्द्राबृहस्पती इतीन्द्राबृहस्पती। ऊरुभ्यामित्यूरुऽभ्याम्। मित्रावरुणौ। अल्गाभ्याम्। आक्रमणमित्याऽक्रमणम्। स्थूराभ्याम्। बलम्। कुष्ठाभ्याम्॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 25; मन्त्र » 6
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! (মরুতাম্) মনুষ্যদিগের (স্কন্ধাঃ) স্কন্ধ (বিশ্বেষাম্) সকল (দেবানাম্) বিদ্বান্দিগের (প্রথমা) প্রথম ক্রিয়া এবং (কীকসা) নিরন্তর শাসনগুলি (রুদ্রাণাম্) রুদ্র বিদ্বান্দিগের (দ্বিতীয়া) দ্বিতীয় তাড়নরূপ ক্রিয়া (আদিত্যানাম্) অখণ্ডিত ন্যায়কারী বিদ্বান্দিগের (তৃতীয়া) তৃতীয় ন্যায়ক্রিয়া (বায়োঃ) পবন সম্পর্কীয় (পুচ্ছম্) পশুপুচ্ছ অর্থাৎ যদ্দ্বারা পশু নিজের শরীরকে বায়ু দেয় (অগ্নীষোময়োঃ) অগ্নি ও জল সম্পর্কীয় (ভাসদৌ) যাহারা প্রকাশকে দিবে উহারা (ক্রুঞ্চৌ) কোন বিশেষ পক্ষী বা সারস (শ্রোণিভ্যাম্) কটি প্রদেশ দ্বারা (ইন্দ্রাবৃহস্পতী) পবন ও সূর্য্য (ঊরুভ্যাম্) ঊরু দ্বারা (মিত্রাবরুণৌ) প্রাণ ও উদান (অল্াভ্যাম্) পরিপূর্ণ গমনরত প্রাণীদের দ্বারা (আক্রমণম্) চলন তথা (কুষ্ঠাভ্যাম্) নিষ্কর্ষ এবং (স্থূরাভ্যাং) স্থূল পদার্থ দ্বারা (বলম্) বলকে তোমাকে সিদ্ধ করা উচিত ॥ ৬ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগকে বাহুসকলে বল, নিজের অঙ্গের পুষ্টি, দুষ্টদিগকে তাড়না এবং ন্যায়ের প্রকাশাদি কর্ম্ম সর্বদা করা উচিত ॥ ৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - ম॒রুতা॑ᳬं স্ক॒ন্ধা বিশ্বে॑ষাং দে॒বানাং॑ প্রথ॒মা কীক॑সা রু॒দ্রাণাং॑ দ্বি॒তীয়া॑ऽऽদি॒ত্যানাং॑ তৃ॒তীয়া॑ বা॒য়োঃ পুচ্ছ॑ম॒গ্নীষোম॑য়ো॒র্ভাস॑দৌ॒ ক্রুঞ্চৌ॒ শ্রোণি॑ভ্যা॒মিন্দ্রা॒বৃহ॒স্পতী॑ऽঊ॒রুভ্যাং॑ মি॒ত্রাবর॑ুণাব॒ল্গাভ্যা॑মা॒ক্রম॑ণᳬं স্থূ॒রাভ্যাং॒ বলং॒ কুষ্ঠা॑ভ্যাম্ ॥ ৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - মরুতামিত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । মরুতাদয়ো দেবতাঃ । নিচৃদতিধৃতিশ্ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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