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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 10/ मन्त्र 22
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - विराट्पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त

    यश्च॑ कव॒ची यश्चा॑कव॒चो॒मित्रो॒ यश्चाज्म॑नि। ज्या॑पा॒शैः क॑वचपा॒शैरज्म॑ना॒भिह॑तः शयाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । च॒ । क॒व॒ची । य: । च॒ । अ॒क॒व॒च: । अ॒मित्र॑: । य: । च॒ । अज्म॑नि । ज्या॒ऽपा॒शै: । क॒व॒च॒ऽपा॒शै: । अज्म॑ना । अ॒भिऽह॑त: । श॒या॒म् ॥१२.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यश्च कवची यश्चाकवचोमित्रो यश्चाज्मनि। ज्यापाशैः कवचपाशैरज्मनाभिहतः शयाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । च । कवची । य: । च । अकवच: । अमित्र: । य: । च । अज्मनि । ज्याऽपाशै: । कवचऽपाशै: । अज्मना । अभिऽहत: । शयाम् ॥१२.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 22

    पदार्थ -

    १. (यः च कवची) = जो कवचवाला है, (यः च अकवच:) = और जो कवच नहीं पहने हुए है, (यः च अमित्र:) = और जो (शत्रु अज्मनि) = [अजति अनेन इति अज्म रथः] रथारूढ़ है, वह (ज्यापाशै:) = धनर्गत मौवीं के पाशों से, (कवचपाशै:) = कवच के पाशों से तथा (अज्मना) = रथगत पाशों से (अभिहत:) = हिंसित हुआ-हुआ (शयाम) = रणांगण में लेटे।

    भावार्थ -

    कवचधारी शत्रुसैनिक मौर्वी पाशों से हिंसित किये जाएँ, बिना कवचवाले कवचपाशों से हिंसित हों तथा रथस्थ रथपाशों का शिकार बनें। इसप्रकार हम शत्रुसैन्य को पराजित करें।

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