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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 22
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - विराट्पुरस्ताद्बृहती सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    85

    यश्च॑ कव॒ची यश्चा॑कव॒चो॒मित्रो॒ यश्चाज्म॑नि। ज्या॑पा॒शैः क॑वचपा॒शैरज्म॑ना॒भिह॑तः शयाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । च॒ । क॒व॒ची । य: । च॒ । अ॒क॒व॒च: । अ॒मित्र॑: । य: । च॒ । अज्म॑नि । ज्या॒ऽपा॒शै: । क॒व॒च॒ऽपा॒शै: । अज्म॑ना । अ॒भिऽह॑त: । श॒या॒म् ॥१२.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यश्च कवची यश्चाकवचोमित्रो यश्चाज्मनि। ज्यापाशैः कवचपाशैरज्मनाभिहतः शयाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । च । कवची । य: । च । अकवच: । अमित्र: । य: । च । अज्मनि । ज्याऽपाशै: । कवचऽपाशै: । अज्मना । अभिऽहत: । शयाम् ॥१२.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः च) जो कोई (कवची) कवचवाला है, (च) और (यः) जो कोई (अकवचः) बिना कवचवाला है, (च) और (यः) जो (अमित्रः) वैरी (अज्मनि) दौड़-झपट में है। (ज्यापाशैः) धनुषों की डोरी के फन्दों से और (कवचपाशैः) कवचों के फन्दों से (अज्मना) दौड़-झपट के साथ (अभिहतः) मार डाला गया वह [शत्रु] (शयाम्) सोवें ॥२२॥

    भावार्थ

    संग्राम के बीच सेनापति दौड़-झपट करके दौड़ते-झपटते शत्रुओं को घेरकर मारे ॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(यः) (च) (कवची) कवचधारी (यः) (च) (अकवचः) कवचरहितः (अमित्राः) पीडकः शत्रुः (यः) (च) (अज्मनि) अ० ६।९७।३। अज गतिक्षेपणयोः-मनिन्। गमनक्षेपणव्यवहारे। संग्रामे (ज्यापाशैः) मौर्वीपाशैः (कवचपाशैः) वर्मबन्धनपाशैः (अज्मना) गमनक्षेपणव्यापारेण (अभिहतः) विनाशितः (शयाम्) तलोपः। शेताम् ॥

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    विषय

    ज्यापाश-कवचपाश-रथपाश

    पदार्थ

    १. (यः च कवची) = जो कवचवाला है, (यः च अकवच:) = और जो कवच नहीं पहने हुए है, (यः च अमित्र:) = और जो (शत्रु अज्मनि) = [अजति अनेन इति अज्म रथः] रथारूढ़ है, वह (ज्यापाशै:) = धनर्गत मौवीं के पाशों से, (कवचपाशै:) = कवच के पाशों से तथा (अज्मना) = रथगत पाशों से (अभिहत:) = हिंसित हुआ-हुआ (शयाम) = रणांगण में लेटे।

    भावार्थ

    कवचधारी शत्रुसैनिक मौर्वी पाशों से हिंसित किये जाएँ, बिना कवचवाले कवचपाशों से हिंसित हों तथा रथस्थ रथपाशों का शिकार बनें। इसप्रकार हम शत्रुसैन्य को पराजित करें।

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    भाषार्थ

    (यः च) और जो (अमित्रः) शत्रु (कवची) कवच वाला, (यः च) और जो (अकवचः) विना कवच वाला, (यः च) और जो भी (अज्मनि) संग्राम में भृत्य आदि है वह, - (ज्यापाशैः कवचपाशैः) धनुष् की डोरीरूपी तथा कवचरूपी पाशों से बन्धा हुआ (अज्मना) संग्राम द्वारा (अभिहतः) मारा हुआ (शयाम्) युद्धभूमि में सो जाय।

    टिप्पणी

    [अज्म संग्रामनाम (निघं० २।१७)। शयाम्= शेताम् त् का लोप "लोपस्त-आत्मनेपदेषु" (अष्ट ७।२।४१) द्वारा, तथा 'शे' के ए को अय्]।

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    विषय

    शत्रुसेना का विजय।

    भावार्थ

    (यः च आमित्रः कवची) जो शत्रु कवच पहने है (यः च) और जो (अकवचः) कवच नहीं पहने है और (यः च अज्मनि) जो रथ पर सवार है, वह भी (ज्यापाशैः) डोरियों के फांसों और (कवचपाशैः) कवच के फांसों से और (अज्मना) रथ-पाश से ही (अभिहत्तः) ताड़ित होकर या बंध कर (शयाम्) धरती पर लेट जाय। बिना कवचवालों के लिये ज्यापाश, कवचवालों के लिये कवच पाश और रथियों के लिये रथ पाश या अज्म-पाश का प्रयोग करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (यः-कवची ) जो कवचधारी (च) और (यः कवची) जो कवच रहित (च) और (य:) जो (अज्मनि) जो गमन शील यान में रथ में सवार (अमित्रः) शत्रु है, वह (ज्यापाशैः) विद्युत् से युक्त डोरी- पाशों से (कवचपाशैः) कवचपाशों से (अज्मना) रथस्थ से (अभिहतः) मरा हुआ (शयाम्) हो जावे ॥२२॥

    विशेष

    ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    Whoever the enemy with corslet or without corslet, whoever on the move on chariot, all must fall in battle, hit by bow and arrow, by the warrior on chariot, or by a soldier in corslet.

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    Translation

    Whoever is mailed, and who without mail, and what enemy is in march (? ajman); by bowstring-fetters, by mail-fetters, smitten by the march let him lie.

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    Translation

    Let all those foemen, one who is wearing armor and who is not, and who is on chariot tied with the strings of bows, with the string of armor and with the sting of chariot, below on the ground.

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    Translation

    Low lie the warrior, mailed, unmailed, each foeman in the rush of war, down-smitten with the strings of bows, the fastenings of mail, the charge!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(यः) (च) (कवची) कवचधारी (यः) (च) (अकवचः) कवचरहितः (अमित्राः) पीडकः शत्रुः (यः) (च) (अज्मनि) अ० ६।९७।३। अज गतिक्षेपणयोः-मनिन्। गमनक्षेपणव्यवहारे। संग्रामे (ज्यापाशैः) मौर्वीपाशैः (कवचपाशैः) वर्मबन्धनपाशैः (अज्मना) गमनक्षेपणव्यापारेण (अभिहतः) विनाशितः (शयाम्) तलोपः। शेताम् ॥

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