अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
44
अवा॑यन्तां प॒क्षिणो॒ ये वयां॑स्य॒न्तरि॑क्षे दि॒वि ये चर॑न्ति। श्वाप॑दो॒ मक्षि॑काः॒ सं र॑भन्तामा॒मादो॒ गृध्राः॒ कुण॑पे रदन्ताम् ॥
स्वर सहित पद पाठअव॑ । अ॒य॒न्ता॒म् । प॒क्षिण॑: । ये । वयां॑सि । अ॒न्तरि॑क्षे । दि॒वि । चर॑न्ति । श्वाप॑द: । मक्षि॑का: । सम् । र॒भ॒न्ता॒म् । आ॒म॒ऽअद॑: । गृध्रा॑: । कुण॑पे । र॒द॒न्ता॒म् ॥१२.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अवायन्तां पक्षिणो ये वयांस्यन्तरिक्षे दिवि ये चरन्ति। श्वापदो मक्षिकाः सं रभन्तामामादो गृध्राः कुणपे रदन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठअव । अयन्ताम् । पक्षिण: । ये । वयांसि । अन्तरिक्षे । दिवि । चरन्ति । श्वापद: । मक्षिका: । सम् । रभन्ताम् । आमऽअद: । गृध्रा: । कुणपे । रदन्ताम् ॥१२.८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(वयांसि) वे गतिवाले [प्राणी] (अव अयन्ताम्) उतरें, (ये) जो (पक्षिणः) पंखवाले हैं और (ये) जो (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष के भीतर (दिवि) प्रकाश में (चरन्ति) चलते हैं। (श्वापदः) कुत्ते के से पैरवाले [सियार आदि], (मक्षिकाः) मक्खियाँ (सं रभन्ताम्) चढ़ें, (आमादः) मांसाहारी (गृध्राः) गिद्ध (कुणपे) लोथ पर (रदन्ताम्) नोंचें खरोचें ॥८॥
भावार्थ
पूरी हार होने से शत्रुओं की लोथों को मांसाहारी पशु-पक्षी खैंच-खैंच कर खावें ॥८॥
टिप्पणी
८−(अवायन्ताम्) अय गतौ। निपद्यन्ताम् (पक्षिणः) पक्षवन्तः (ये) (वयांसि) वय गतौ-असुन्। गतिमन्ति सत्त्वानि (अन्तरिक्षे) (दिवि) प्रकाशे (ये) (चरन्ति) (श्वापदः) अ० ११।९।१०। शृगालादयः पशवः (मक्षिकाः) कीटविशेषाः (संरभन्ताम्) आक्रमन्ताम् (आमादः) मांसाहारिणः (गृध्राः) (कुणपे) शवशरीरे (रदन्ताम्) विलिखन्तु ॥
विषय
मृत शत्रुसैन्य पर
पदार्थ
१. हमारी विजय होने पर मृतशत्रुसैन्य पर मांसभक्षण के लिए वे (पक्षिण:) = पक्षी अव अयन्ताम्-नीचे उतरें [अवाङ्मुखं निपद्यन्ताम्] ये वयांसि जो कौवे आदि पक्षी अन्तरिक्षे-अन्तरिक्ष में चरन्ति-गतिवाले होते हैं, तथा ये दिवि जो गिद्ध-चील आदि द्युलोक में-बहुत ऊपर आकाश में विचरते हैं। २. श्वापदः-कुते, गीदड़ आदि श्वापद, (मक्षिका:) = मक्खियाँ (संरभन्ताम्) = शवों के भक्षण के लिए उद्यत हों [अपक्रमन्ताम्] तथा (आमाद:) = कच्चा मांस खानेवाले (गधा:) = गिद्ध (कुणपे) = शवों पर (रदन्ताम्) = अपनी चोंचों व पञ्जों से विलेखन करें।
भावार्थ
मृतशत्रुसैन्य के शव पक्षियों, हिंसपशुओं, मक्खियों व गिद्धों का भोजन बनें।
भाषार्थ
(ये) जो (वयांसि पक्षिणः) कौवे तथा अन्य पक्षी हैं, (ये) जोकि (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष में (दिवि) दिन के समय (चरन्ति) विचरते हैं, वे (अवायन्तु) शव भक्षणार्थ नीचे आए। (श्वापदः) कुत्तों के सदृश पैरों वाले हिंस्रपशु, (मक्षिकाः) तथा मक्खियां (संरभन्ताम्) मिलकर खाना आरम्भ करें। (आमादः गृध्रा) कच्चा मांस खाने वाले गीध (कुणपे) शव पर (रदन्ताम्) चीर-फाड़ करें।
टिप्पणी
[संरभन्ताम् = अथवा खाने के लिये तीव्र वेग वाले हों। दिवि = दिन में। दिवेदिवे अहर्नाम (निघं० १।९)। रदन्ताम् = रद विलेखने]।
विषय
शत्रुसेना का विजय।
भावार्थ
(ये) जो (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष और (दिवि) और भी ऊंचे आकाश में (चरन्ति) विचरते हैं वे (वयांसि) पक्षी भी (अव अयन्ताम्) नीचे आ उतरें। (श्वापदः) कुत्ते के पञ्जों वाले मांसाहारी पशु और (मक्षिकाः) कच्चा मांस खाने वाले (गृध्राः) गीध (कुणपे) मुर्दो पर (रदन्ताम्) अपने नखों और चोचों से प्रहार करें, उनको काटें फाड़े।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अन्तररिक्षे ये पक्षिणः) पृथिवीस्थ अवकाश में जो पक्षी कौव्वे आदि (दिवि ये वयांसि) जो "लिङ व्यत्ययः" और भी ऊंचे गगन में ऊँची उडान वाले चील आदि विशेष पक्षी (चरन्ति) विचरते हैं (अवायन्ताम्) वे नीचे संग्राम स्थल पर आवें (श्वापदः) कुत्ते के समान पैर जिनके हैं वे शृगाल - गीदड़ आदि (मक्षिकाः) मक्खियां (कुणपे) मृत शत्रु सैनिक गल के शव पर (संरभन्ताम्) भीड रूप में जुट जावें (आमाद:-गृध्रः-रदन्ताम् ) कच्चा मांस खाने वाले गिद्ध भी चोंचों पक्षों से खरोंच करें ॥८॥
विशेष
ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
Let the birds that fly in the sky and higher air towards the regions of light come back here. Let carnivores and flies devour the corpses. Let carrion eating vultures feast upon the carcasses.
Translation
Let the winged ones descend, the birds, they that go about in the atmosphere, in the sky; let the wild beasts, the flies, take hold together; let the raw-flesh-eating vultures scratch at the human carrion.
Translation
Let the birds which move wings in heaven and in the midst of air come down and let the beasts of prey flies and vultures that eat raw fresh mangle and gna the carcass.
Translation
Let all the birds that move on wings, all fowls that roam the heaven and air's mid-regions, come downward upon the carcase. Let beasts of prey and flies attack, and vultures that eat raw flesh mangle and gnaw the corpse.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८−(अवायन्ताम्) अय गतौ। निपद्यन्ताम् (पक्षिणः) पक्षवन्तः (ये) (वयांसि) वय गतौ-असुन्। गतिमन्ति सत्त्वानि (अन्तरिक्षे) (दिवि) प्रकाशे (ये) (चरन्ति) (श्वापदः) अ० ११।९।१०। शृगालादयः पशवः (मक्षिकाः) कीटविशेषाः (संरभन्ताम्) आक्रमन्ताम् (आमादः) मांसाहारिणः (गृध्राः) (कुणपे) शवशरीरे (रदन्ताम्) विलिखन्तु ॥
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