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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 21
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - त्रिपदा गायत्री सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    46

    मू॒ढा अ॒मित्रा॑ न्यर्बुदे ज॒ह्येषां॒ वरं॑वरम्। अ॒नया॑ जहि॒ सेन॑या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मू॒ढा: । अ॒मित्रा॑: । नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒ । ज॒हि । ए॒षा॒म् । वर॑म्ऽवरम् । अ॒नया॑ । ज॒हि॒ । सेन॑या ॥१२.२१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मूढा अमित्रा न्यर्बुदे जह्येषां वरंवरम्। अनया जहि सेनया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मूढा: । अमित्रा: । निऽअर्बुदे । जहि । एषाम् । वरम्ऽवरम् । अनया । जहि । सेनया ॥१२.२१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 21
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    हिन्दी (6)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! [नित्य पुरुषार्थी राजन्] (अमित्राः) वैरी (मूढाः) घबड़ाये हुए हैं, (एषाम्) इनमें से (वरंवरम्) अच्छे को (जहि) मार। (अनया सेनया) इस सेना से [उन्हें] (जहि) मार ॥२१॥

    भावार्थ

    सेनापति अपनी सेना से शत्रुओं को अचेत करके उन के बड़े-बड़े वीरों को मारे ॥२१॥

    टिप्पणी

    २१−(मूढाः) अचेतसः (अमित्राः) शत्रवः (न्यर्बुदे) म० २०। हे नित्यपुरुषार्थिन् राजन् (जहि) मारय (एषाम्) (वरंवरम्) श्रेष्ठं श्रेष्ठं वीरम् (अनया) स्वकीयया (जहि) (सेनया) ॥

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    विषय

    जहि एषां वरं वरम्

    पदार्थ

    १. है (न्यर्बुदे) = निश्चय से शत्रुओं पर धावा बोलनेवाले सेनापते! (अमित्रा:) = जो शत्रुसेनाएँ मूढा-मोहावस्था में चली गई है, (एषाम्) = इनके (वरवरम् जहि) = श्रेष्ठ-श्रेष्ठ-चुने हुए वीरों को मार डाल । (अनया सेनया) = इस सेना के द्वारा (जहि) = इन्हें विनष्ट कर डाल।

    भावार्थ

    मूढ़ बनी हुई शत्रुसेनाओं के मुख्य व्यक्तियों को चुन-चुनकर मार डाला जाए। शत्रु को पराजित करने का यही सर्वोत्तम उपाय है।

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    भाषार्थ

    (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि! (अमित्राः) शत्रु (मूढाः) मोहग्रस्त अर्थात् कर्तव्याकर्तव्य ज्ञान शून्य हो गये हैं, संज्ञारहित हो गए हैं, (एषाम्) इन में से (वरंवरम्) प्रत्येक मुखिया का (जहि) तू हनन कर। (अनया सेनया) इस सेना की सहायता से (जहि) हनन कर।

    टिप्पणी

    [अथर्व० ११।९ के मन्त्रों में अर्बुदि तो साक्षात् लड़ने वाला है, और न्यर्बुदि है सेनासंचालक, सेनाधीश। अथर्व० ११।१० के सूक्त में त्रिषन्धि हैं सेनासंचालक, और अर्बुदि है साक्षात् लड़ने वाला, और मन्त्र २१ से न्यर्बुदि है अर्बुदि का सहायक। वैदिक युद्धनीति में सैनिकों का वध जहां तक सम्भव हो अनुमोदित नहीं। मुखियों के हनन का ही विधान किया है, जब कि शत्रुसेना पराजित हो जाय]।

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    विषय

    वैदिक युद्धवाद

    शब्दार्थ

    (न्यर्बुदे) हे शक्तिसम्पन्न सेनापते ! (अमित्राः) शत्रु लोग (मूढाः) चेतनारहित हो जाएँ (ऐषां वरं वरम्) इनके श्रेष्ठ-श्रेष्ठ सेनापतियों को (जहि) मार डाल, नष्ट कर दे । शत्रुओं को (अनया सेनया) अपनी इस विशाल-वाहिनी से (जहि) मार डाल

    भावार्थ

    वैदिक युद्धवाद किसी टिप्पणी का भिखारी नहीं है । वैदिक योद्धाओं को ऐसा भयंकर और घमासान का युद्ध करना चाहिए कि शत्रु लोग चेतनारहित हो जाएँ। शत्रु पक्ष के वीर योद्धाओं को चुन-चुनकर मार देना चाहिए ।

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    विषय

    शत्रुसेना का विजय।

    भावार्थ

    हे (न्यर्बुदे) न्यर्बुदे ! (अमित्राः) शत्रु लोग जब (मूढाः) मोह को प्राप्त हो जायं, चेतना रहित हो जांय तब (एषाम्) उनके (वरं-वरम्) श्रेष्ठ श्रेष्ठ सेनापतियों को (जहि) मार डाल। और उनको (अनया सेनया) इस सेना से (जहि) विनाश कर।

    टिप्पणी

    ‘मूढा अमित्रान् न्यर्बुदे’ इति सायणाभिमतः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (न्यर्बुदे) हे स्फोटक अस्त्र प्रयोक्ता सेनानायक जन ! (मूढा अमित्रा) शितिपदी अत्र से शत्रु जो मूर्छित हो गए (एषां वरं वरम्) इनके अच्छे अच्छे वीर (अनया सेनया जहि) सेना के द्वारा (जहि) मार ॥२१॥

    विशेष

    ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    O Nyarbudi, Chief Commander, bewildered and stupefied as the enemy forces are, destroy them all, the chief ones all, destroy them with this force.

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    Translation

    Confounded (be) our enemies, O Nyarbudi; slay thou of them each best man (vara); slay (them) with this army.

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    Translation

    O Nyarbudi when the enemies are mazed and confounded you be the bravest of them and kill them with this army (of ours).

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    Translation

    Amazed are the foemen, O ever-enterprising king! Slay thou each bravest man of them with this our army slaughter them.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २१−(मूढाः) अचेतसः (अमित्राः) शत्रवः (न्यर्बुदे) म० २०। हे नित्यपुरुषार्थिन् राजन् (जहि) मारय (एषाम्) (वरंवरम्) श्रेष्ठं श्रेष्ठं वीरम् (अनया) स्वकीयया (जहि) (सेनया) ॥

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