अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - विराट्पथ्या बृहती
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
248
उत्ति॑ष्ठत॒ सं न॑ह्यध्व॒मुदा॑राः के॒तुभिः॑ स॒ह। सर्पा॒ इत॑रजना॒ रक्षां॑स्य॒मित्रा॒ननु॑ धावत ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ति॒ष्ठ॒त॒ । सम् । न॒ह्य॒ध्व॒म् । उत्ऽआ॑रा: । के॒तुऽभि॑: । स॒ह । सर्पा॑: । इत॑रऽजना: । रक्षां॑सि । अ॒मित्रा॑न् । अनु॑ । धा॒व॒त॒ ॥१२.१॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्तिष्ठत सं नह्यध्वमुदाराः केतुभिः सह। सर्पा इतरजना रक्षांस्यमित्राननु धावत ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । तिष्ठत । सम् । नह्यध्वम् । उत्ऽआरा: । केतुऽभि: । सह । सर्पा: । इतरऽजना: । रक्षांसि । अमित्रान् । अनु । धावत ॥१२.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(उदाराः) हे उदार पुरुषो ! [बड़े अनुभवी लोगो] (उत् तिष्ठत) उठो और (केतुभिः सह) झण्डों के साथ (संनह्यध्वम्) कवचों को पहिनों [जो] (सर्पाः) सर्प [सर्पों के समान] हिंसक (इतरजनाः) पामर जन (रक्षांसि) राक्षस हैं, (अमित्रान् अनु) [उन] शत्रुओं पर (धावत) धावा करो ॥१॥
भावार्थ
महानुभवी शूर वीर पुरुष कवच आदि पहिनकर और ध्वजा पताका अस्त्र-शस्त्र लेकर शत्रुओं पर चढ़ें ॥१॥
टिप्पणी
१−(उत् तिष्ठत) उद्गच्छत (संनह्यध्वम्) सन्नाहान् धरत (उदाराः) महान्तः। महानुभविनः (केतुभिः) ध्वजैः (सह) (सर्पाः) सर्पतुल्यहिंसकाः (इतरजनाः) पामरपुरुषाः (रक्षांसि) राक्षसाः (अमित्रान्) शत्रून् (अनु) प्रति (धावत) शीघ्रं गच्छत ॥
विषय
शत्रुविद्रावण
पदार्थ
१.हे (उदारा:) = औदार्यगुण से युक्त सेनानायको! (केतुभिः सह) = अपनी ध्वजाओं के साथ (उत्तिष्ठत) = युद्ध के लिए उठ खड़े होओ। (संनह्यध्वम्) = कवच आदि धारण करके युद्ध के लिए उद्युक्त हो जाओ। हे (सर्पा:) = सर्पवत् कुटिल गतिवाले सैनिको! (इतरजना:) = सामान्य लोगों से भिन्न वीर पुरुषो! (रक्षांसि) = रक्षण समर्थ पुरुषो। (अमित्रान् अनुधावत) = शत्रुओं का शीघ्रता से पीछा करनेवाले बनो।
भावार्थ
देशरक्षा के लिए हम पताकाओं को लेकर उठ खड़े हों-सन्नद्ध हो जाएँ। हमारे वीर सैनिक शत्रुओं का पीछा करके उन्हें खदेड़ दें।
भाषार्थ
(उदाराः) हे उदार सैनिको ! (उत्तिष्ठत) उठो (केतुभिः सह) झण्डों के साथ। (संनह्यध्वम्) कवचादि बान्ध कर तैय्यार हो जाओ। (सर्पाः) हे सर्पवत् विष प्रयोग करने वालो ! (इतरजनाः) हे तत्सदृश अन्यजनो ! (रक्षांसि) तथा राक्षसी स्वभाव वालो ! (अमित्रान् अनु धावत) शत्रुओं का पीछा करो।
टिप्पणी
[उदाराः= औदार्यगुणोपेताः (सायण) सूक्त ९ के मन्त्र २५. २६ से युद्ध-समाप्ति प्रतीत होती है। यदि युद्ध की समाप्ति के पश्चात् शत्रु पक्ष पुनः युद्धोद्यत हो जाय, या कोई नया युद्ध उपस्थित हो जाय, तो ऐसे युद्ध का वर्णन सूक्त १० में जानना चाहिये]।
विषय
शत्रुसेना का विजय।
भावार्थ
हे (उदाराः) ऊपर से शत्रुओं पर शस्त्रों की वर्षण करने हारे वीर योद्धाओ ! आप लोग (केतुभिः सह) अपने अपने चिह्नों से युक्त झण्डों सहित (उत्तिष्ठत) उठ खड़े हो और (सं नह्यध्वम्) युद्ध के लिये कमर कस कर तैयार हो जाओ। हे (सर्पाः) सर्पो ! सर्प के समान विषैले शस्त्रों का प्रयोग करने हारे क्रूर या शत्रु के छिद्रों में प्रवेश करने वाले पुरुषो ! हे (इतरजनाः) इतर लोगों, अन्यों से विशिष्ट पुरुषो ! हे (रक्षांसि) रक्षाकारी लोगो ! तुम सब लोग (अमित्रान् अनु धावत) शत्रुओं पर चढ़ाई करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(उदाराः) स्फोटक पदार्थों को ऊपर फेंकने वाले अस्त्रों ! या ऐसे अस्त्रों के प्रयोग करने वाले सैनिको ! तुम (केतुभिः सह) अपने स्फोटक संकेतों के साथ (उतिष्ठत) उठो (सं नह्ययध्वम्) शत्रुनों पर प्रहार करने को सन्नद्ध हो जाओ तैयार हो जाओ (सर्पाः) सर्पणशील विषमय जन्तुओं के विषास्त्रों या उनके प्रयोक्ता जनो ! (इतरजना:) उनसे भिन्न जन्यमान वनस्पतियों के विषप्रयोगो या उनके प्रयोक्ता जनो ! (रक्षांसि) रक्षा जिनसे की जावे ऐसे खनिज विष के प्रयोगों ! या उनके प्रयोक्ताओ ! (अमित्रान् अनुधावत) शत्रुओं के प्रति दौड़ो ॥१॥
विशेष
ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O warriors of high order of chivalry, rise together in top gear with your banners, and O Sarpas, Rakshasas, and others, pursue the enemies and fall upon them.
Subject
To conquer enemies : to Trisandhi.
Translation
Stand ye up, equip yourselves, ye specters, together with ensigns; ye serpents, other folks, demons, run after our enemies.
Translation
O brave warriors rise, with your banners waving and prepare yourself for (battle). O snake-like swift warriors. O Demons-like men, O other people You charge and chase the enemies.
Translation
O munificent soldiers, rise up with your banners, put on the armour for battle! Ye violent, wicked, fiendish persons charge and pursue our enemies!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(उत् तिष्ठत) उद्गच्छत (संनह्यध्वम्) सन्नाहान् धरत (उदाराः) महान्तः। महानुभविनः (केतुभिः) ध्वजैः (सह) (सर्पाः) सर्पतुल्यहिंसकाः (इतरजनाः) पामरपुरुषाः (रक्षांसि) राक्षसाः (अमित्रान्) शत्रून् (अनु) प्रति (धावत) शीघ्रं गच्छत ॥
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