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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 16
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मत्यनुष्टुप् त्रिष्टुब्गर्भा शक्वरी सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    56

    वा॒युर॒मित्रा॑णामिष्व॒ग्राण्याञ्च॑तु। इन्द्र॑ एषां बा॒हून्प्रति॑ भनक्तु॒ मा श॑कन्प्रति॒धामिषु॑म्। आ॑दि॒त्य ए॑षाम॒स्त्रं वि ना॑शयतु च॒न्द्रमा॑ युता॒मग॑तस्य॒ पन्था॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वा॒यु: । अ॒मित्रा॑णाम् । इ॒षु॒ऽअ॒ग्राणि॑ । आ । अ॒ञ्च॒तु॒ । इन्द्र॑: । ए॒षा॒म् । बा॒हून् । प्रति॑ । भ॒न॒क्तु॒ । मा । श॒क॒न् । प्र॒ति॒ऽधाम् । इषु॑म् । आ॒दि॒त्य: । ए॒षा॒म् । अ॒स्त्रम् । वि । ना॒श॒य॒तु॒ । च॒न्द्रमा॑: । यु॒ता॒म् । अग॑तस्य । पन्था॑म् ॥१२.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वायुरमित्राणामिष्वग्राण्याञ्चतु। इन्द्र एषां बाहून्प्रति भनक्तु मा शकन्प्रतिधामिषुम्। आदित्य एषामस्त्रं वि नाशयतु चन्द्रमा युतामगतस्य पन्थाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वायु: । अमित्राणाम् । इषुऽअग्राणि । आ । अञ्चतु । इन्द्र: । एषाम् । बाहून् । प्रति । भनक्तु । मा । शकन् । प्रतिऽधाम् । इषुम् । आदित्य: । एषाम् । अस्त्रम् । वि । नाशयतु । चन्द्रमा: । युताम् । अगतस्य । पन्थाम् ॥१२.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 16
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (वायुः) वायु [बलवान् वा वायुसमान शीघ्रगामी राजा] (अमित्राणाम्) वैरियों के (इष्वग्राणि) बाणों के सिरों को (आ अञ्चतु) झुका देवे। (इन्द्रः) इन्द्र [बड़ा प्रतापी सेनानी] (एषाम्) इन [शत्रुओं] के (बाहून्) भुजाओं को (प्रति भनक्तु) तोड़ डाले, वे [शत्रु] (इषुम्) बाण (प्रतिधाम्) लगाने को (मा शकन्) न समर्थ होवें। (आदित्यः) आदित्य [अखण्ड ब्रह्मचारी, वा सूर्यसमान तेजस्वी सेनाध्यक्ष] (एषाम्) इनके (अस्त्रम्) अस्त्रों [भाले बाण तरवार आदि] को (वि नाशयतु) नष्ट कर देवे, (चन्द्रमाः) चन्द्रमा [आनन्ददाता व चन्द्रसमान शान्तिप्रद सेनापति] (पन्थाम् अगतस्य) मार्ग पर न चलनेवाले [शत्रु] का (युताम्) बन्धन करे ॥१६॥

    भावार्थ

    राजा आदि सब सेनापति लोग अपने-अपने बातों से शत्रुओं के विनाश का प्रयत्न करें ॥१६॥

    टिप्पणी

    १६−(वायुः) कृवापा०। उ० १।१। वा गतिगन्धनयोः-उण्, युगागमः। बलवान् शूरो वायुतुल्यशीघ्रगामी वा राजा (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (इष्वग्राणि) इषूणां शराणामग्राणि (आ अञ्चतु) अञ्चु गतिपूजनयोः, वक्रगतौ च। चक्रगतीनि करोतु (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनानीः (एषाम्) शत्रूणाम् (बाहून्) (प्रति) प्रतिकूलम् (भनक्तु) भञ्जो आमर्दने। भग्नान् करोतु (मा शकन्) ते शक्ता न भवन्तु (प्रतिधाम्) छान्दसं रूपम्। प्रतिधातुम्। आरोपितुम् (इषुम्) बाणम् (आदित्यः) अ० ११।९।२५। अखण्डव्रती सूर्यतुल्यतेजस्वी वा सेनाध्यक्षः (एषाम्) (अस्त्रम्) आयुधजातम् (वि नाशयतु) विनष्टं करोतु (चन्द्रमाः) अ० ५।२४।१०। आनन्दप्रदः। चन्द्रसमानशान्तिकरो वा सेनापतिः। (युताम्) युञ् बन्धने-लोटि छान्दसं रूपम्। युनीताम्। बध्नातु। बन्धनं करोतु (अगतस्य) अप्राप्तस्य (पन्थाम्) पन्थानम्। सन्मार्गम् ॥

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    विषय

    'वायु, इन्द्र, आदित्य व चन्द्र' देव-सम्बन्धी अस्त्र

    पदार्थ

    १. (वायु:) = हमारा वायव्यास्त्र (अमित्राणाम्) = शत्रुओं के (इषु अग्राणि) = बाणों के अग्रभागों को (आ अञ्चतु) = आभिमुख्येन प्राप्त हो-लक्ष्यप्राति से पूर्व ही शत्रुबाणों को गिरा दिया जाए। (इन्द्रः) = ऐन्द्र [विद्युत् का] अस्त्र (एषाम्) = इन शत्रुओं की (बाहून् प्रतिभनक्तु) = भुजाओं को भग्न कर दे, इसप्रकार भग्न कर दे कि वे (इषुं प्रतिधाम्) = बाण को पुन: धनुष पर धारण करने के लिए (मा शकन्) = मत समर्थ हों। २. (आदित्य:) = आग्नेयास्त्र [आदित्य का] (एषाम्) = इन शत्रुओं के (अस्त्रम्) = अस्त्रों को (विनाशयत) = नष्ट कर दे। इनके सामर्थ्य को कुण्ठित करके समाप्त कर दे। (चन्द्रमा:) = चन्द्र-सम्बन्धी-[वारुणास्त्र]-अस्त्र (अगतस्य) = हम तक आने की इच्छावाले, परन्तु हम तक न पहुँचे हुए शत्रु के (पन्थाम्) = मार्ग को (युताम्) = उससे पृथक् कर दे-शत्रु को हम तक पहुँचने का मार्ग ही प्राप्त न हो।

     

    भावार्थ

    विविध अस्त्रों के प्रयोग से हम शत्रु को हमपर आक्रमण के अयोग्य बना दें।

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    भाषार्थ

    (वायुः) वायुयानाध्यक्ष (अमित्राणाम्) शत्रुओं के (इष्वग्राणि) इषुओं के अग्रभागों को (आ अञ्चतु) पूर्णतया कुण्ठित कर दे; (इन्द्रः)१ सम्राट् (एषाम्) इन में से (प्रति) प्रत्येक की (बाहून्) बाहुओं को (भनक्तु) तोड़ दे, ताकि ये (इषुम्) बाण को (प्रतिधाम्) धनुष पर रखने को (मा शकन्) सशक्त न हो सकें, (आदित्यः) आदान करने वाला अर्बुदि (एषाम्) इन के (अस्त्रम्) अस्त्रागार को (विनाशयतु) विनष्ट कर दे, (चन्द्रमाः) चन्द्रमा के सदृश शीत स्वभाव वाला सेनाधिकारी (अगतस्य) जो अभी अपने राष्ट्र में बापिस नहीं गए उन के (पन्थाम्) मार्ग को (युताम्) खोल दे।

    टिप्पणी

    [वायुः = वायुयानों का अध्यक्ष, वायु से ऐसे अस्त्र फैंके,-जैसे कि तामसास्त्र या वारुणास्त्र आदि,-जिस से शत्रुओं के इषु कुण्ठित हो जांय, मानो कि शत्रुओं के इषुओं के अग्रभाग कुण्ठित हो गए हैं। इन्द्रः = सम्राट्। सम्राट् की आज्ञानुसार अर्बुदि शत्रुओं की बाहुओं को तोड़ दे, कुटिल कर दे। आदित्यः = शत्रुओं का आदान कर, उन्हें पकड़ कर उन्हें बान्धने वाला अर्बुदि (११।१०।४), इन के अस्त्रागार को विनष्ट कर दे। चन्द्रमाः= शीतल स्वभाव वाला सेनाध्यक्ष जिसे कि चन्द्रमा कहा है, वह उन शत्रु योद्धाओं के लिये, जो कि निज राष्ट्र में वापिस जाना चाहते हैं, मार्ग खोल दे]।

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    विषय

    शत्रुसेना का विजय।

    भावार्थ

    (वायुः) वायु से बना अस्त्र, उससे साधित अस्त्र (अमित्राणाम् इष्वग्राणि) शत्रुओं के बाणों के अग्र-भागों को (आ अञ्चतु) जाकर लगे, जिससे वे लक्ष्य से डिंग जांय। (इन्द्रः) इन्द्र विद्युत् से साधित अस्त्र (एषां बाहून्) उन शत्रुओं की बाहुओं को (प्रति भनक्तु) तोड़ डाले। जिससे वे (इषुम्) बाण को (प्रतिधाम्) हम पर फेंकने के लिये धनुषों में लगा भी (मा शकन्) न सकें। (आदित्यः) आदित्य या सूर्य से साधित अस्त्र (एषां अस्त्रम्) इन शत्रुओं के अस्त्र को (विनाशयतु) विनाश करदे और (चन्द्रमाः) चन्द्रमा नामक साधित अस्त्र (अगतस्य) हमारे तक न पहुंचे हुए शत्रु के (पन्थाम्) मार्ग को (युताम्) भ्रष्ट करदे, उनको पथ-भ्रष्ट करदे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (वायुः) वायव्य अस्त्र से प्रसारित वायु (अमित्राणाम्) शत्रुओं के (इष्वप्राणि) वाणों के अग्रभागों कों (आञ्चतु) दबा दें- मोड़ दें (इन्द्रः) वैद्युतास्त्र से क्षिप्त विद्युत् (एषां बाहून प्रति भनक्तु) इन शत्रुओं के बाहुओं को तोड दें, जिससे (इषुम्प्रतिधां मा शकन्) वाण को तं चढ़ा सकें (आदित्यः-एषाम्-अस्त्रं विनाशयतु) सौर अस्त्र द्वारा प्रयुक्त सूर्यकिरणसमूह इन शत्रुओं के अस्त्र को विनष्ट कर दे (चन्द्रमाः) चान्द्रमस अस्त्र शीतास्त्र से चन्द्रमा अथवा रात्रि तामसास्त्र से रात्रि का अन्धकार “रात्रिर्वै चन्द्रमाः" (शत० १२।४।४।७) इन अस्त्रों का वर्णन वाल्मीकि रामायण में भी है "विष्णुचक्रं तथाप्यमुग्रमैन्द्रं चक्रं तथैव च वज्रमस्त्रं नरश्रेष्ठं आग्नेयमस्त्रं सौम्यं च राघव सौरं तेजःप्रभं नाम परतेजोपकर्षणम्" (वाल्मीकि. रा. बाल. का. सर्ग २७।५, ६, १०, १४, १९) (गतस्य पन्थां युताम्) न गये हुए शत्रु के मार्ग को नियक्त करे ॥१६॥

    विशेष

    ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    Let Vayu bend and break the tips of enemy arrows, let Indra break their arms one by one, so that they may not even fix the arrow on the bow, let Aditya destroy their missiles, and let Chandrama block the path of the enemy before their advance, yet keep it open to facilitate the two-way communications to follow as possible and desirable for peace. (This mantra reveals the tactics of war as well as of peace. Vayu is the preventive power that forestalls the enemy advance, Indra is the power to break down the enemy before the strike, Aditya is the brilliant blazing power that intercepts and destroys the enemy’s latest missiles, and Chandrama is the power that defends as well as promotes peace.)

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    Translation

    Let Vayu bend up the arrow-points of the enemies; let Indra break back their arms; let them not be able to set the arrow; let Aditya make thier missile weapon astra disappear; let the moon put (yu) them on the track of what is not gone.

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    Translation

    Let vayu the gases destroy the front points of the arrows of enemies. Let the electricity break their arms so that they could not fix the shafts on their bows. Aditya, the heat created by scientific means destroy their armament and let the weapon producing water bar the path of those enemies who are lingering.

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    Translation

    Let a King fast like the air bend the arrow-points of those who are our enemies. Let à brave general break their arms away, and render them powerless to lift a shaft. Let a commander blazing like the Sun utterly destroy their missile. Let a general calm and cool like the Moon bar the path of the foe who follows not the right course of conduct.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १६−(वायुः) कृवापा०। उ० १।१। वा गतिगन्धनयोः-उण्, युगागमः। बलवान् शूरो वायुतुल्यशीघ्रगामी वा राजा (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (इष्वग्राणि) इषूणां शराणामग्राणि (आ अञ्चतु) अञ्चु गतिपूजनयोः, वक्रगतौ च। चक्रगतीनि करोतु (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनानीः (एषाम्) शत्रूणाम् (बाहून्) (प्रति) प्रतिकूलम् (भनक्तु) भञ्जो आमर्दने। भग्नान् करोतु (मा शकन्) ते शक्ता न भवन्तु (प्रतिधाम्) छान्दसं रूपम्। प्रतिधातुम्। आरोपितुम् (इषुम्) बाणम् (आदित्यः) अ० ११।९।२५। अखण्डव्रती सूर्यतुल्यतेजस्वी वा सेनाध्यक्षः (एषाम्) (अस्त्रम्) आयुधजातम् (वि नाशयतु) विनष्टं करोतु (चन्द्रमाः) अ० ५।२४।१०। आनन्दप्रदः। चन्द्रसमानशान्तिकरो वा सेनापतिः। (युताम्) युञ् बन्धने-लोटि छान्दसं रूपम्। युनीताम्। बध्नातु। बन्धनं करोतु (अगतस्य) अप्राप्तस्य (पन्थाम्) पन्थानम्। सन्मार्गम् ॥

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