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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 23
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    51

    ये व॒र्मिणो॒ येऽव॒र्माणो॑ अ॒मित्रा॒ ये च॑ व॒र्मिणः॑। सर्वां॒स्ताँ अ॑र्बुदे ह॒ताञ्छ्वानो॑ऽदन्तु॒ भूम्या॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । व॒र्मिण॑: । ये । अ॒व॒र्माण॑: । अ॒मित्रा॑: । ये । च॒ । व॒र्मिण॑: । सर्वा॑न् । तान् । अ॒र्बु॒दे॒ । ह॒तान् । श्वान॑: । अ॒द॒न्तु॒ । भूम्या॑म् ॥१२.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये वर्मिणो येऽवर्माणो अमित्रा ये च वर्मिणः। सर्वांस्ताँ अर्बुदे हताञ्छ्वानोऽदन्तु भूम्याम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । वर्मिण: । ये । अवर्माण: । अमित्रा: । ये । च । वर्मिण: । सर्वान् । तान् । अर्बुदे । हतान् । श्वान: । अदन्तु । भूम्याम् ॥१२.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (अमित्राः) शत्रु लोग (वर्मिणः) वर्म [कवच विशेष] वाले हैं, (ये) जो (अवर्माणः) विना वर्मवाले हैं, (च) और (ये) जो (वर्मिणः) झिलमवाले हैं। (अर्बुदे) हे अर्बुदि [शूर सेनापति] (तान् सर्वान्) उन सब (हतान्) मारे गयों को (श्वानः) कुत्ते (भूम्याम्) रणभूमि पर (अदन्तु) खावें ॥२३॥

    भावार्थ

    शूर सेनापति से मारे गये सब शत्रुओं की लोथों को कुत्ते आदि खावें ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(ये) (वर्मिणः) शस्त्रवारककवचविशेषेण युक्ताः (ये) (अवर्माणः) वर्मरहिताः (अमित्राः) शत्रवः (ये) (वर्मिणः) कवचवर्मव्यतिरिक्तेण शस्त्रनिवारकेण तनुत्राणेन युक्ताः (सर्वान्) (तान्) (अर्बुदे) अ० ११।९।१। हे शूरसेनापते (हतान्) मारितान् (श्वानाः) कुक्कुराः (अदन्तु) भक्षयन्तु (भूम्याम्) रणभूमौ ॥

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    विषय

    बर्मिण:-सादिन:

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (अमित्रा:) = शत्रु (वर्मिण:) = शस्त्रवारक कवच से युक्त हैं, (ये अवर्माण:) = जो कवचरहित हैं, (ये च वर्मिण:) = और जो कवचव्यतिरिक्त शस्त्रनिवारक साधन से युक्त हैं, हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते! (हतान् तान् सर्वान) = तेरे द्वारा मारे हुए उन सबको (भूम्याम्) = इस पृथिवी पर (श्वानः अदन्तु) = कुत्ते खाएँ। २. (ये रथिन:) = जो शत्रु रथी हैं, (ये अरथा:) = जो रथरहित हैं, (असादा:) = जो अश्वादि यानों से रहित पदाति हैं, (ये च सादिन:) = और जो अश्वारूढ़ हैं, (हतान् तान् सर्वान्) = मारे हुए उन सबको (गृधा:) = गिद्ध (श्येना:) = बाज और (पतत्त्रिण:) = चील-कौवे आदि पक्षी अदन्तु-खाएँ।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (अमित्राः) शत्रु (वर्मिणः) वर्म वाले हैं, (ये) जो (अवर्माणः) वर्म रहित हैं, (ये च) और जो (वर्मिणः) शत्रु के भृत्य आदि वर्म वाले हैं, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! (तान् सर्वान् हतान्) उन सब मरे हुओं को (श्वानः) कुत्ते आदि (भूभ्याम्) भूमि पर (अदन्तु) खाएँ।

    टिप्पणी

    [मन्त्र २२ में कवच का वर्णन है, २३ में वर्म का। सम्भवतः कवच लोहनिर्मित हो (कवच =कुङ् शब्दे भ्वादि), हिलने तथा गति करने पर जिस से शब्द पैदा हो; और वर्म चमड़े आदि द्वारा निर्मित हो, जैसे कि "बस्ताभिवासिनः” (११।९।२२) में बकरे के चर्म के वस्त्रों वाले कहा है। तभी "बस्तवासिनः" (अथर्व० ८।६।१२) में, बस्तवासियों को "दुर्गन्धीन्" भी कहा है, चमड़े से दुर्गन्ध आती ही है]।

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    विषय

    शत्रुसेना का विजय।

    भावार्थ

    (ये वर्मिणः) जो वर्म कवच पहने हैं और (ये अवर्माणः) जो कवच नहीं पहने हैं और (ये च अमित्राः) जो शत्रु लोग (वर्मिणः) कवच धारण किये हुये हैं (तान् सर्वान्) उन सब (हतान्) मरे हुओं को हे (अर्बुदे) अर्बुदे ! (भूम्याम्) पृथिवी पर (श्वानः) सियार, कुत्ते (अदन्तु) खावें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (ये वर्मिणः) जो कवच वाले शत्रु प्रहार के कारण शरीर पर पहने हुए (ये-वर्मिणः) जो कवचरहित (च) और (ये वर्मिणः) केवल हाथ में धारण किये हुए (अमित्राः) शत्रु जन हैं (अबुर्दे) हे 'वैद्य अस्त्र या उसके प्रयोक्ता' (तान् सर्वान् इतान्) उन सब मरे हुओं को (भूम्यां खान:-अदन्तु) पृथिवी पर नगर जङ्गल के कुत्ते गीदड भेडिये खाजावें ॥२३॥

    विशेष

    ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    Whoever the enemy in armour or without armour, or those who hold and provide the armour, let them fall and lie on the ground, O Commander, and the dogs would devour them when they are dead.

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    Translation

    Who have defenses, who have no defenses, and the enemies who have defenses — all those, O Arbudi, being slain, let dogs eat on the ground.

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    Translation

    Let all the foemen clothed with amour and armourless and clothed with the cout of amour be slain and let the dogs eat them on the ground. O Arbudi.

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    Translation

    The armor-clad the armourless enemies clothed with coats of mail, all these struck down, O enterprising Commander! Let dogs devour on the battlefield.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(ये) (वर्मिणः) शस्त्रवारककवचविशेषेण युक्ताः (ये) (अवर्माणः) वर्मरहिताः (अमित्राः) शत्रवः (ये) (वर्मिणः) कवचवर्मव्यतिरिक्तेण शस्त्रनिवारकेण तनुत्राणेन युक्ताः (सर्वान्) (तान्) (अर्बुदे) अ० ११।९।१। हे शूरसेनापते (हतान्) मारितान् (श्वानाः) कुक्कुराः (अदन्तु) भक्षयन्तु (भूम्याम्) रणभूमौ ॥

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