अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 24
ऋषिः - भृग्वङ्गिराः
देवता - त्रिषन्धिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
58
ये र॒थिनो॒ ये अ॑र॒था अ॑सा॒दा ये च॑ सा॒दिनः॑। सर्वा॑नदन्तु॒ तान्ह॒तान्गृध्राः॑ श्ये॒नाः प॑त॒त्रिणः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठये । र॒थिन॑: । ये । अ॒र॒था: । अ॒सा॒दा: । ये । च॒ । सा॒दिन॑: । सर्वा॑न् । अ॒द॒न्तु॒ । तान् । ह॒तान् । गृध्रा॑: । श्ये॒ना: । प॒त॒त्रिण॑: ॥१२.२४॥
स्वर रहित मन्त्र
ये रथिनो ये अरथा असादा ये च सादिनः। सर्वानदन्तु तान्हतान्गृध्राः श्येनाः पतत्रिणः ॥
स्वर रहित पद पाठये । रथिन: । ये । अरथा: । असादा: । ये । च । सादिन: । सर्वान् । अदन्तु । तान् । हतान् । गृध्रा: । श्येना: । पतत्रिण: ॥१२.२४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (6)
विषय
राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो [शत्रु] (रथिनः) रथवाले हैं, (ये) जो (अरथाः) विना रथवाले हैं, (ये) जो (असादाः) विना वाहनवाले [पैदल] हैं, (च) और जो (सादिनः) वाहनवाले [घुड़चढ़े, हाथी आदि पर चढ़े हुए] हैं। (तान् सर्वान्) उन सब (हतान्) मारे गयों को (गृध्राः) गिद्ध (श्येनाः) श्येन [वाज आदि] (पतत्रिणः) पक्षीगण (अदन्तु) खावें ॥२४॥
भावार्थ
रणक्षेत्र में मर कर पड़े हुए शत्रु के सेनादलों को मांसाहारी पक्षी खावें ॥२४॥
टिप्पणी
२४−(ये) शत्रवः (रथिनः) रथारूढाः (ये) (अरथाः) रथरहिताः (असादाः) अवाहनाः। पदातयः (ये) (च) (सादिनः) षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-णिनि। अश्वारूढाः। गजारूढादयः (सर्वान्) (अदन्तु) भक्षयन्तु (तान्) शत्रून् (हतान्) मारितान् (गृध्राः) मांसाहारिणः पक्षिविशेषाः (श्येनाः) अ० ३।३।३। शीघ्रगतयः श्येनादयः (पतत्रिणः) पक्षिणः ॥
विषय
बर्मिण:-सादिन:
पदार्थ
१. (ये) = जो (अमित्रा:) = शत्रु (वर्मिण:) = शस्त्रवारक कवच से युक्त हैं, (ये अवर्माण:) = जो कवचरहित हैं, (ये च वर्मिण:) = और जो कवचव्यतिरिक्त शस्त्रनिवारक साधन से युक्त हैं, हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते! (हतान् तान् सर्वान) = तेरे द्वारा मारे हुए उन सबको (भूम्याम्) = इस पृथिवी पर (श्वानः अदन्तु) = कुत्ते खाएँ। २. (ये रथिन:) = जो शत्रु रथी हैं, (ये अरथा:) = जो रथरहित हैं, (असादा:) = जो अश्वादि यानों से रहित पदाति हैं, (ये च सादिन:) = और जो अश्वारूढ़ हैं, (हतान् तान् सर्वान्) = मारे हुए उन सबको (गृधा:) = गिद्ध (श्येना:) = बाज और (पतत्त्रिण:) = चील-कौवे आदि पक्षी अदन्तु-खाएँ।
भावार्थ
'कवचधारी, बिना कवचवाले, रथी, अरथ, पदाति व घुड़सवार' सभी शत्रुसैनिक रणांगण में मृत होकर कुत्तों, गिद्धों, बाजों व चील-कौवे आदि का भोजन बनें।
भाषार्थ
(ये रथिनः) जो रथारोही हैं, (ये अरथाः) जो रथरहित हैं, (असादाः) जो पदाति हैं, (ये च सादिनः) और जो अश्वारोही है, (तान् सर्वान् हतान) उन सब मारे गयों को (गृध्रा, श्येनाः, पतत्रिणः) गीध, बाज आदि पक्षी (अदन्तु) खाएँ।
विषय
वैदिक युद्धवाद
शब्दार्थ
हे सेनापते ! (ये) जो शत्रु लोग (रथिन:) रथों पर सवार हैं और (ये) जो (अरथा:) रथ पर सवार नहीं हैं (असादा:) जो घोड़ों पर सवार नहीं हैं (च) और (ये सादिन:) जो घोड़ों पर सवार हैं उन सबको मार डाल जिससे ( तान् सर्वान् हतान्) उन सब मरे हुओं को (गृध्राः) गीध (श्येना:) बाज़ और (पत्रिण:) दूसरे चील-कव्वे आदि पक्षी (दन्तु) खा जाएँ ॥ २॥
भावार्थ
योद्धाओं को ही नहीं, सेना को भी समाप्त कर देना चाहिए । जो रथ पर चढ़कर लड़नेवाले हैं, घुड़सवार हैं, अथवा पैदल हैं-सबका सफाया कर देना चाहिए । शत्रु पर दया वैदिक मर्यादा के सर्वथा प्रतिकूल है।
विषय
शत्रुसेना का विजय।
भावार्थ
(ये रथिनः) जो रथों पर सवार हैं (ये अरथाः) और जो रथ पर सवार नहीं हैं, (असादाः) जो घोड़ों पर सवार नहीं हैं, ये च (सादिनः) और जो घोड़ों पर सवार हैं (तान्) उन (सर्वान्) सब (हतान्) मरे हुओं को (गृध्राः) गीध (श्येनाः) सेन, बाज और (पतत्रिणः) अन्यान्य चील, कौवें आदि पक्षी (अदन्तु) खावें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(ये रथिन:) जो रथ वाले (ये अरथाः) जो रथरहित (ये सादाः) जो अश्व आदि रहित (च) और (ये सादिन:) जो घोडे आदि पर आरूढ (तान् सर्वान् हतान्) उन सब मारे हुओं को (गृधाः श्येनाः पतत्रिणः-अदन्तु ) गिद्ध भास-वाज पक्षी खाजावें ॥२४॥
विशेष
ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
Those on chariot, those not on chariot, those on horse, those not on horse, vultures, hawks and other birds must devour them all as they lie dead.
Translation
Who have chariots, who have no chariots, those without seats and they who have seats (sada) - all those, being slain, let vultures, falcons, birds (patatrin) eat.
Translation
Let birds, vultures and kites eat all those enemies slain, who are on chariot and who are without chariot, who are riding on horse and who are walking on foot.
Translation
Car-borne and carless fighting men, riders and those who go on foot, all these killed, O enterprising general ! let vultures, kites, and all the birds of air devour.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२४−(ये) शत्रवः (रथिनः) रथारूढाः (ये) (अरथाः) रथरहिताः (असादाः) अवाहनाः। पदातयः (ये) (च) (सादिनः) षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-णिनि। अश्वारूढाः। गजारूढादयः (सर्वान्) (अदन्तु) भक्षयन्तु (तान्) शत्रून् (हतान्) मारितान् (गृध्राः) मांसाहारिणः पक्षिविशेषाः (श्येनाः) अ० ३।३।३। शीघ्रगतयः श्येनादयः (पतत्रिणः) पक्षिणः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal