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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 12
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - पञ्चपदा पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    68

    सर्वां॑ल्लो॒कान्त्सम॑जयन्दे॒वा आहु॑त्या॒नया॑। बृह॒स्पति॑राङ्गिर॒सो वज्रं॒ यमसि॑ञ्चतासुर॒क्षय॑णं व॒धम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सर्वा॑न् । लो॒कान् । सम् । अ॒ज॒य॒न् । दे॒वा: । आऽहु॑त्या । अ॒नया॑ । बृह॒स्पति॑: । आ॒ङ्गि॒र॒स: । वज्र॑म् । यम् । असि॑ञ्चत । अ॒सु॒र॒ऽक्षय॑णम् । व॒धम् ॥१२.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सर्वांल्लोकान्त्समजयन्देवा आहुत्यानया। बृहस्पतिराङ्गिरसो वज्रं यमसिञ्चतासुरक्षयणं वधम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सर्वान् । लोकान् । सम् । अजयन् । देवा: । आऽहुत्या । अनया । बृहस्पति: । आङ्गिरस: । वज्रम् । यम् । असिञ्चत । असुरऽक्षयणम् । वधम् ॥१२.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (सर्वान् लोकान्) सब लोकों [दृश्यमान पदार्थों] को (देवाः) विजय चाहनेवालों ने (अनया) इस (आहुत्या) आहुति [बलि वा भेंट] से (सम्) सर्वथा (अजयन्) जीता है। (आङ्गिरसः) विद्वानों के शिष्य (बृहस्पतिः) बृहस्पति [बड़े-बड़ों के रक्षक राजा] ने (यम्) जिस (असुरक्षयणम्) असुरनाशक (वधम्) शस्त्र (वज्रम्) वज्ररूप [सेनापति] को (असिञ्चत) सींचा है [बढ़ाया है] ॥१२॥

    भावार्थ

    जिस धर्मात्मा सेनापति का आश्रय लेकर विद्वानों ने शत्रुओं का नाश किया है, उसी से प्रीति करके चतुर मनुष्य सब विघ्नों को हटावें ॥१२॥

    टिप्पणी

    १२−(सर्वान्) (लोकान्) दृश्यमानान् पदार्थान् (सम्) सम्यक् (अजयन्) जयेन प्राप्नुवन् (देवाः) विजिगीषवः (आहुत्या) दानक्रियया (अनया) (बृहस्पतिः) बृहतां रक्षको राजा (आङ्गिरसः) म० १०। विदुषां शिष्यः (वज्रम्) वज्ररूपम् (यम्) (असिञ्चत) सिक्तवान्। वर्धितवान् (असुरक्षयणम्) दुष्टनाशकम् (वधम्) आयुधम् ॥

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    विषय

    बृहस्पति आङ्गिरस का वज्र

    पदार्थ

    १. (आङ्गिरसः) = अङ्ग-प्रत्यङ्ग में रसवाले शक्तिशाली शरीरवाले (बृहस्पति:) = ज्ञानी पुरुष ने (यम्) = जिस (असुरक्षयणम्) = असुरों का क्षय करनेवाले (वधम्) = आयुधभूत (वज्रम्) = वन को (असिञ्चत) = सिक्त किया-जिस क्रियाशीलतारूप वन को [वज् गतौ] अपनाया (अनया आहुत्या) = इस वज्ररूप आहुति के द्वारा (देवा:) = देवों ने (सर्वान्) = सब लोकों को (समजयन्) = जीत लिया। क्रियाशीलतारूपी वन से ही देव विजयी बनते हैं।

    भावार्थ

    जीवन में क्रियाशील बनकर हम सब आसुरभावों को परास्त करें और इसप्रकार शरीर में 'आङ्गिरस' तथा मस्तिष्क में बृहस्पति बनें। यही सब लोकों को जीतने का मार्ग है।

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    भाषार्थ

    (देवाः) विजिगीषु योद्धाओं ने (अनया आहुत्या) संग्रामाग्नि में इस निज आहुति द्वारा, समर्पण द्वारा (सर्वान लोकान्) सब लोकों को (समजयन्) मिल कर या सम्यक् प्रकार से जीता है। (आङ्गिरसः) युद्ध विद्या के अङ्गों के सार को जानने वाले (बृहस्पतिः) महती सेना के अधिपति त्रिषन्धि ने, (यम्) जिस (असुरक्षयणं वधम्) असुरों के क्षय करने वाले तथा वध करने वाले (वज्रम्) वज्र को (असिञ्चत) सींचा है॥

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    विषय

    शत्रुसेना का विजय।

    भावार्थ

    (आङ्गिरसः बृहस्पतिः) अङ्गिरसवेद, अथर्ववेद का विद्वान् वेदवित् ज्ञानी (यम् वज्रं) जिस महाविद्युत् को (असुरक्षयणम्) असुरों के नाशकारी (वधम्) हथियार के रूप से (असिञ्चत) निर्माण करता है (अनया आहुत्या) इस महान् वज्र की आहुति से (देवाः सर्वान् लोकान् अजयन्) देवगण विद्वान् लोग समस्त लोकों को विजय करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (आङ्गिरसः-बृहस्पतिः) अग्निविद्या वेत्ता विद्वान् जन (असुरक्षयणं यं वधं वज्रम्) असुरों का क्षय करने वाले जिस वधक त्रिषन्धि वज्रास्त्र को (असिञ्चत) भिरता है - छोड़ता है (अनया आहुत्या) इस आहुति-त्रिषन्धि के संग्राम प्रक्षेपण में (देवाः सर्वान् लोकान् जयन्) विजिगीषु विद्वान् सब लोकों का जय किया करते हैं ॥१२॥

    विशेष

    ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    All lokas, immortal lights, beauties and ecstasies of existence, devas, brilliant sagely people, have won with this offer of service and self-sacrifice in the state of triple harmony, the same unfailing thunderbolt of Dharmic action, destroyer of demonic evil, which Brhaspati and Angirasas lived and served with dedication.

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    Translation

    All worlds did the gods completely conquer by means of that offering (ahuti) -- the thunderbolt which Brhaspati of the Añgiras race poured, an Asura-destroying weapon.

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    Translation

    The natural forces operating their functions in the world are victorious in controlling over all the world by the same devouring electric weapon which the cloud created by the flames of celestial fire, produces as very thunderbolt highly destructive to Asuras, the clouds not yielding rainy waters.

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    Translation

    Lovers of conquest win for themselves all desirable objects through the help of this general, whom a learned king prepares, as a very thunderbolt, a weapon to destroy the fiends.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १२−(सर्वान्) (लोकान्) दृश्यमानान् पदार्थान् (सम्) सम्यक् (अजयन्) जयेन प्राप्नुवन् (देवाः) विजिगीषवः (आहुत्या) दानक्रियया (अनया) (बृहस्पतिः) बृहतां रक्षको राजा (आङ्गिरसः) म० १०। विदुषां शिष्यः (वज्रम्) वज्ररूपम् (यम्) (असिञ्चत) सिक्तवान्। वर्धितवान् (असुरक्षयणम्) दुष्टनाशकम् (वधम्) आयुधम् ॥

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