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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भृग्वङ्गिराः देवता - त्रिषन्धिः छन्दः - विराडास्तारपङ्क्तिः सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
    76

    अयो॑मुखाः सू॒चीमु॑खा॒ अथो॑ विकङ्क॒तीमु॑खाः। क्र॒व्यादो॒ वात॑रंहस॒ आ स॑जन्त्व॒मित्रा॒न्वज्रे॑ण॒ त्रिष॑न्धिना ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अय॑:ऽमुखा: । सू॒चीऽमु॑खा: । अथो॒ इति॑ । वि॒क॒ङ्क॒तीऽमु॑खा: । क्र॒व्य॒ऽअद॑: । वात॑ऽरंहस: । आ । स॒ज॒न्तु॒ । अ॒मित्रा॑न् । वज्रे॑ण । त्रिऽसं॑धिना ॥१२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयोमुखाः सूचीमुखा अथो विकङ्कतीमुखाः। क्रव्यादो वातरंहस आ सजन्त्वमित्रान्वज्रेण त्रिषन्धिना ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अय:ऽमुखा: । सूचीऽमुखा: । अथो इति । विकङ्कतीऽमुखा: । क्रव्यऽअद: । वातऽरंहस: । आ । सजन्तु । अमित्रान् । वज्रेण । त्रिऽसंधिना ॥१२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अयोमुखाः) लोहे समान [कठोर] मुखवाले, (सूचीमुखाः) सुई के तुल्य [पैने] मुखवाले, (विकङ्कतीमुखाः) शमी वृक्षों के से [कंटीले] मुखवाले, (क्रव्यादः) मांस खानेवाले (अथो) और (वातरंहसः) पवन के से वेगवाले [पशु पक्षी] (त्रिषन्धिना) त्रिसन्धि [म० २। विद्वान्] करके (वज्रेण) वज्र से [मारे गये] (अमित्रान्) वैरियों को (आ सजन्तु) चिपट जावें ॥३॥

    भावार्थ

    वीर सेनापति सब शत्रुओं को मार कर गिरा देवे कि उनकी लोथों को गीदड़ गिद्ध आदि चींथ-चींथ कर खा जावें ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(अयोमुखाः) लोहसदृशकठोरमुखाः (सूचीमुखाः) सूचीतुल्यतीक्ष्णमुखाः (अथो) अपि च (विकङ्कतीमुखाः) भृमृदृशि०। उ० ३।११०। वि+ककि गतौ-अतच्। विकङ्कत एव विकङ्कती शमीवृक्षः। तत्तुल्यबहुकण्टकयुक्तमुखाः (क्रव्यादः) अ० २।२५।५। मांसभक्षकाः (वातरंहसः) वायुतुल्यवेगयुक्ताः पशुपक्षिणः (आ) समन्तात् (सजन्तु) षञ्ज सङ्गे। श्लिष्यन्तु (अमित्रान्) शत्रून् (वज्रेण) वज्रायुधेन, हतान् इति शेषः (त्रिषन्धिना) म० २। सेनापतिना ॥

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    विषय

    अयोमुखाः सूचीमुखाः

    पदार्थ

    १. इस (वज्रेण) = वज्र-तुल्य दृढ़ शरीरवाले [यदश्नामि बलं कुर्व इत्थं वज्रमाददे] (त्रिषन्धिना) = जल, स्थल व वायु सेना के अध्यक्ष से प्रयुक्त हुए-हुए ये बाण (अमित्रान् आसजन्तु) = शत्रुओं को जा-जाकर लगें। जो बाण (अयोमुखा:) = लोहे के समान कठोर मुखवाले हैं, (सूचीमुखा:) = सूई के समान तीक्ष्ण चोंचवाले हैं (अथो) = और (विकङ्कतीमुखा) = कंघी के समान मुखवाले हैं, (क्रव्यादः) = कच्चे मांस को खा-जानेवाले हैं और (वातरंहसः) = वायु के समान वेगवाले हैं।

     

    भावार्थ

    हमारे वजतुल्य दृढ़ शरीरवाले त्रिषन्धि सेनानी से छोड़े गये तीक्ष्ण बाण शत्रुओं को विद्ध करनेवाले हों।

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    भाषार्थ

    (अयोमुखाः) जिन के मुख अर्थात् अग्रभाग में लोहा लगा है ऐसे बाण; (सूचिमुखाः) मुख अर्थात् अग्रभाग में सूची सदृश पैने नोकों वाले बाण, (अथो) तथा (विकीङ्कतीमुखाः) विशेष प्रकार की कङ्घी के सदृश नाना पैने मुखों वाले बाण, (क्रव्यादः) शत्रुओं के कच्चे मांसों को मानो खाने वाले ये बाण, (वातरंहसः) तथा वायु के वेग वाले ये बाण, (अमित्रान्) शत्रुओं को (आसजन्तु) आ लगें, (त्रिषन्धिना१ वज्रेण) वज्ररूप त्रिषन्धि नामक सेनाधिपति द्वारा प्रेरित हुए।

    टिप्पणी

    [कङ्कती= A comb nair comb (आप्टे)] [१. ११।१०।१-२७ में भी कहीं-कहीं न्यर्बुदि का वर्णन हुआ है (देखो मन्त्र २०,२१), परन्तु त्रिषन्धि के सहायक रूप में ही। ११/९/२३ में दर्शाया जा चुका हैं कि त्रिषन्धि कोई शस्त्रास्त्र विशेष नहीं, अपितु शत्रु सेना के साथ युद्ध के लिये 'तीन राष्ट्रों में पारस्परिक सन्धिरूप" है। इस सन्धि को मन्त्र (९।२५) में "सन्धा" कहा है। सन्धा और सन्धि समानार्थक हैं। सन्धा= Union, association, intimate, union, agreement, promise (आप्टे)। इस त्रिषन्धि को "युद्धसमिति" कह सकते हैं (military alliance या war alliance)। मन्त्रों में त्रिषन्धि के वर्णन से प्रतीत होता है कि त्रिषन्धि चेतन पुरुष है, कोई जड़ शस्त्रास्त्र नहीं। और युद्ध लड़ने के लिये "संन्धिबद्ध तीन मित्र राष्ट्रों के प्रतिनिधिरूप में त्रिषन्धि, सेनासंचालक आफिसर है। त्रिषन्धि अर्थात् युद्ध समिति के प्रतिनिधि होने के कारण इसे त्रिषन्धि कहा है। इसी लिये "त्रिषन्धरिय सेना" (४) तथा "त्रिसन्धेः सेनया" (६,७) में सेना को त्रिषन्धि-सम्बन्धी कहा है। मन्त्र (३, २७) में "वज्रेण त्रिषन्धिना" द्वारा त्रिषन्धि को बज्र कहा है। "शक्तिशाली तीन राष्ट्रों का प्रतिनिधि होने के कारण "त्रिषन्धि" जड़ वज्र सदृश महती शक्ति है, इस लिये त्रिषन्धि को वज्ररूपता दी गई है। गीता १०/२८ में आयुधों में वज्र के सदृश महासंहारी होने के कारण श्री कृष्ण ने "आयुधानामहं वज्रम्" द्वारा अपने-आप को वज्र कहा है। इसी प्रकार (३,२७) में त्रिषन्धिनामक सेना-संचालक को वज्र कहा है। शस्त्रास्त्र आदि शब्दों का गौणरूप में प्रयोग अन्यत्र भी हुआ है यथा "असङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्वा" (गीता) में असङ्ग अर्थात् अनाशक्ति को "दृढ़ शस्त्र" कहा है। तथा मुण्डक उपनिषद् में प्रणव को धनुः (मुण्डक २, खण्ड २, संदर्भ ४) कहा तथा मुण्डक (२।२।३) में प्रणव धनुः को महास्त्र कहा है। तथा "शरो ह्यात्मा" द्वारा मुण्डक में जीवात्मा को शर अर्थात्० बाण कहा है]।

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    विषय

    शत्रुसेना का विजय।

    भावार्थ

    (वज्रेण) वज्र के समान तीक्ष्ण शत्रुनिवारक (त्रिषन्धिना) त्रिसन्धि नामक बाण या अस्त्र के साथ (अयोमुखाः) लोह के समान कठोर मुख वाले, (सूचीमुखाः) सूर्य के समान तीक्ष्ण चोंच वाले, और (अथो) (विकङ्कतीमुखाः) कंघी के समान मुख वाले (क्रव्यादः) कच्चा मांस खाने वाले (वातरंहसः) वायु के समान वेगवान् बाण (अमित्रान्) शत्रुओं को (आसजन्तु) जा जा कर लगें।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘शूचीमुखा’, ‘शुचीमुखा’ इति क्वचित्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृग्वङ्गिरा ऋषिः। मन्त्रोक्तस्त्रिषन्धिर्देवता। १ विराट् पथ्याबृहती, २ त्र्यवसाना षट्पा त्रिष्टुब्गर्भाति जगती, ३ विराड् आस्तार पंक्तिः, ४ विराट् त्रिष्टुप् पुरो विराट पुरस्ताज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १२ पञ्चपदा पथ्यापंक्तिः, १३ षट्पदा जगती, १६ त्र्यवसाना षट्पदा ककुम्मती अनुष्टुप् त्रिष्टुब् गर्भा शक्वरी, १७ पथ्यापंक्तिः, २१ त्रिपदा गायत्री, २२ विराट् पुरस्ताद बृहती, २५ ककुप्, २६ प्रस्तारपंक्तिः, ६-११, १४, १५, १८-२०, २३, २४, २७ अनुष्टुभः। सप्तविंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (त्रिषन्धिना वज्रेण) त्रिषन्धि वज्र के या उनके प्रयोक्ता के प्रेरित (अयोमुखाः) लोहफलक मुख वाले (सूचिमुखा:) सुई के समान अणि श्लाका मुख वाले (विकङ्कती मुखाः) कधी के समान दन्तयुक्त मुख वाले वाणास्त्र (क्रव्याद:वातरंहसः) मांस भक्षक वायु पर उड़ने वाले पक्षी जैसे (अमित्रान्-आसजन्तु) शत्रुओं को समस्तरूप से लग जावें ॥३॥

    विशेष

    ऋषिः-भृग्वङ्गिराः (भर्जनशील अग्निप्रयोगवेत्ता) देवता – त्रिषन्धिः ( गन्धक, मनः शिल, स्फोट पदार्थों का अस्त्र )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    Let arrows, steel tipped, needle sharp, multipointed penetrative, hitting at the speed of storm and eating into the flesh, engage the enemies when fired by three-stage rocket of the order of a thunderbolt.

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    Translation

    Iron (ayas) mouthed, needle-mouthed, likewise thorn-tree (vikankat) mouthed, let the flesh-eaters, of wind-swiftness, fasten on our enemies with the three-jointed (trisandhi) - thunderbolt.

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    Translation

    Let the weapons with iron points, the weapon having needle in their front part, the weapon which have combing instrument in their front parts and which devour the flesh of persons whom they pierce and which are as swift as the gust of wind, fall on enemies added with the thundering instrument having three cornred effect.

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    Translation

    Let birds with faces dreadful like iron, with hills sharp like needles, and hard like combs, flesh-caters, rapid as the wind, cling closely to the corpses of our foemen killed by the thunderbolt of the general.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(अयोमुखाः) लोहसदृशकठोरमुखाः (सूचीमुखाः) सूचीतुल्यतीक्ष्णमुखाः (अथो) अपि च (विकङ्कतीमुखाः) भृमृदृशि०। उ० ३।११०। वि+ककि गतौ-अतच्। विकङ्कत एव विकङ्कती शमीवृक्षः। तत्तुल्यबहुकण्टकयुक्तमुखाः (क्रव्यादः) अ० २।२५।५। मांसभक्षकाः (वातरंहसः) वायुतुल्यवेगयुक्ताः पशुपक्षिणः (आ) समन्तात् (सजन्तु) षञ्ज सङ्गे। श्लिष्यन्तु (अमित्रान्) शत्रून् (वज्रेण) वज्रायुधेन, हतान् इति शेषः (त्रिषन्धिना) म० २। सेनापतिना ॥

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